ये उन दिनों की बात है,

ये उन दिनों की बात है,

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Kishaan
Kishaan 11 Jan, 2022 | 1 min read

ये उन दिनों की बात है, जब

जब मा की डाँट और पिताजी की लात से दिन की शुरुआत हुआ करती थी...

जब अंगिनत ख़्वाब यू ही सज जाया करते थे, तब "उठो थोड़ी पढाई कर लो" ईन लब्ज़ो से, टूट भी जया करते थे…

हम दोस्त साथ में स्कूल जाया करते थे, हर लम्हे को खुलकर जिया करते थे।

लट्टू कंचे साथ में खेला करते थे, और पुरानी साईकल से गांव के रास्ते नापा करते थे ।

ये उन दिनों की बात है, जब

आस पास के "परेशान बड़ों" को देख कर,बड़े होने से ही इतराते थे,

जब घासलेट के लिए लाइन लगाया करते थे, और सहपाठी  को देख कर नजरे चुरा लिया करते थे 

ये उन दिनों की बात है, जब

क्लास के कोनो मे बदमाशीया प्लान हुआ करती थी

जब स्कूल की लड़कीयो का मजाक यु ही बन जाया करता था;  

और स्कूल की टीचर से प्यार भी ऐसे ही, हो जाया करता था

दोस्त हमें दुसरे नाम से चिढाया करते थे, या कभी अच्छा लगता था या कभी गुस्सा कर के भाग भी जाया करते थे ..

ये उन दिनों की बात है, जब

जब प्यार करने पर जमाने की बंदिशे थी और बात करने पर बवाल मच जाया करता था, तब खामोशीया भी बाते करती थी ।

जब किसीको मिलने के लिए भगवान को जरीया बनाया जाता था,

तब मंदिर मे ही ऑखो से बात करने का हुनर भी सीखा जाता था

जब फ्रेंडशिप बेल्ट या कार्ड हुआ करते थे..और विज्ञान या गणित के नोट्स संदेश एक्सचेंज करने का जरिया हुआ करता था

ये उन दिनों की बात है, जब

हर महिने दिल के टुकडे हुवा करते थे, फिर बेवक्त उन टुकडो को उस गलियो में ढुढा करते थे,

कसम खाते के दिल को संभालेंगे, लेकीन अगली गली मे उसको देखकर फिर दिल तोडने का इंतजाम कर आते थे।

और कुछ वक्त गुजर ते ही… ये भी एक वक्त आया की….

दिल तुटने के इन अफसानों के साथ ये ख्याल भी आया करता था, जीवन मे आगे बढने के लीए पढ़ाई जरूरी है,

पर शर्दी यो के उन दीनो मे "कल से" बोलके चादर तान के सो जाया करते थे!

जब अंगिनत ख़्वाब यू ही सज जाया करते थे…..

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