"कल्लू का हक"

गरीब का त्यौहार

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Kirti Saxena
Kirti Saxena 23 Oct, 2020 | 1 min read

सुबह-सुबह सभी को कल्लू का इंतजार रहता है, पूरा मोहल्ला सुबह से कल्लू के आने का इंतजार करने लगता है, खास तौर पर महिलाएं, किसी भी उम्र की हो, उनकी नजरें हमेशा कल्लू का इंतजार करती रहती है, अभी तक कल्लू क्यों नहीं आया, कल्लू को आने में थोड़ी सी देर हो जाए तो सभी महिलाओं को बेचैनी होने लगती है, आप सोच रहे होंगे कल्लू कौन है, जिसके आने ना आने से सब बेचैन रहते हैं, खासकर महिलाएं, कौन है? कोई हीरो है क्या? नहीं कल्लू सुबह-सुबह कचरा उठाने वाली गाड़ी लेकर आता है, घर घर का कचरा उठाना उसके काम में शामिल है, जब से नगर निगम में कचरा बाहर फेंकने में फाइन लगाया है, कल्लू का भाव बढ़ गया है, अब हर किसी को कल्लू के आने का इंतजार रहता है, बड़ा मिलनसार है कल्लू, तमीज से बात करता है, सभी को सुबह सुबह नमस्ते करना, राम राम करना नहीं भूलता है, यहां तक कि बड़े बुजुर्गों को कचरा लेकर बाहर नहीं आने देता, उनके घर से ही ले लेता है, जबकि यह उसके काम में शामिल नहीं है, कॉलोनी के बीच में गाड़ी खड़ी कर सीटी बजा देना,और लोगों को अपने आप आकर गाड़ी में कचरा डालना होता है, मगर वह किसी की मदद करने से शर्माता नहीं है, इसलिए काफी लोकप्रियता था कल्लू|

आज लेट हो गया था, आया तो सीटी की आवाज थोड़ी कमजोर थी, चेहरा उदास थका हुआ था, मगर अपनी परेशानी छुपाते हुए सबको मुस्कुराकर नमस्ते करते हुए कचरा उठा रहा था, मैंने उसका चेहरा पढ़ लिया था, मैं कचरा डालकर थोड़ी देर खड़ी रही, जब सब लोग कचरा डाल कर चले गए तो मैंने पूछ लिया क्या बात है कल्लू भैया, कोई दिक्कत है, कल्लू ने पलटकर देखा बोला नहीं दीदी सब ठीक है, मैंने कहा नहीं भैया, आज सिटी मैं वह दम नहीं था, जैसे रोज होती है, क्या बात है कल्लू भैया, कल्लू की आंख भर आई बोला दीदी देखो ना कल दीपावली है, और आज तक हमको तनखा नहीं मिली, ₹6000 मिलते हैं, बिना पैसों के दीपावली कैसे मनाऊंगा, सुबह घर से निकला तो बच्चे बोले पापा पटाखे और मिठाई ले आना, अब आप ही बताइए, ठेकेदार बोलता है अभी 10 दिन और तनखा नहीं मिलेगी, क्या जवाब दूंगा बच्चों को, बोलकर कल्लू चला गया, मैं चुपचाप कल्लू को जाते हुए देखते रही, और सोचने लगी, 6000 तो मैं जेब खर्च लेती हूं, घर के खर्चों के अलावा, और यह कल्लू की तनखा है, वह भी दीपावली के बाद मिलेगी|

मैंने घर जाकर पतिदेव को सारी बात बताई, यह बच्चों को लेकर पटाखे लेने जा रहे थे, यह कुछ नहीं बोले लौटे तो बच्चों के पटाखों के अलावा एक पैकेट अलग से था, जिसमें पटाखे, मिठाई, कुछ लाइट और पूजा का सामान, दिए और तेल वगैरह था, कल्लू के लिए मैं, बहुत खुश हुई, दूसरे दिन सुबह से कल्लू का इंतजार करने लगी, बहुत देर हो गई, कल्लू जब नहीं आया तो मुझे याद आया, अरे बाप रे आज तो दीपावली है, कल्लू की तो छुट्टी होगी, मैंने पतिदेव से सारी बात बताई उन्होंने दरोगा को फोन लगाया, कल्लू का नंबर मांगा, उसके पास फोन नहीं था, ऑफिस रिकॉर्ड से उसका पता मांगा मगर दीपावली की छुट्टी के कारण वह भी नहीं मिला, मैंने सारे मोहल्ले में सभी से पता किया, शायद कोई जानता हो, कल्लू कहां रहता है, मगर कोई भी कल्लू के रहने की जानकारी जानकारी नहीं रखता था, ना ही किसी के पास उसका पता था, मेरा दिल बैठ गया, धीरे-धीरे शाम होने लगी, मैं सोच रही थी अब कोई उम्मीद नहीं थी, शाम को दरवाजे पर रंगोली बना रही थी, एक गरीब महिला फटे कपड़े पहने अपने बच्चे को लेकर जा रही थी, मैंने सोचा किसी की तो दीपावली मने, मैंने उस महिला को आवाज दिया, पास आई तो बच्चे से पूछा? तुमने पटाखे खरीदें? बच्चा अपनी मां का मुंह देखने लगा, मां बोली दीदी हमारे पास खाने को नहीं है, दीपावली क्या मनाएंगे, मैं दौड़ कर अंदर गई, कल्लू का पैकेट मैं अपने बच्चे के नए कपड़े डाल कर ले आई, हम उम्र था, इस बच्चे के तो उसको कपड़े आ जाते, नए कपड़े डालकर उस महिला को पैकेट पकड़ाया, बहुत खुश हुई, आंखों में आंसू थे और बच्चा भी खुशी-खुशी अपने घर चले गया|

सुबह कल्लू आया साथ में उसका बच्चा भी था, मैं दौड़ कर आई, सारी घटना बताई, और बोला आप आए क्यों नहीं कल्लू भैया, मुझे आपका सामान किसी और को देना पड़ा, बड़ा दुख लगा, कि आपने दीपावली कैसे मनाई होगी, तभी नजर बच्चे पर पड़ी यही कपड़ा तो मैंने रखा था, पैकेट में अरे! यह तो कल्लू का बेटा है, कल्लू की आंख भर आई, बोला दीदी जी, आपने दिल से मुझे मदद करनी चाहिए थी ना, देखो ना मेरी बीवी साहूकार के पास ₹500 में अपना मंगलसूत्र गिरवी रखने गई थी, दीपावली मनाने के लिए और उसे आपने रोक कर सब दे दिया, "मेरा हक" मेरे पास पहुंच गया, हम दोनों की आंखें नम थीं, कल्लू की खुशी से मेरी गर्व से|

 ( लेखिका - कीर्ति सक्सेना)



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Kirti Saxena

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Shubhangani Sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    Very nice

  • Virendra Pratap Singh · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत बढ़िया खुशी है हमें कि आप लोग हिंदी को आगे ले जाने का काम कर रहे हे

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