नारीवाद

नारीवाद कल आज और कल की नारी

Originally published in hi
Reactions 0
575
Jyoti agrawal
Jyoti agrawal 30 May, 2020 | 1 min read

नारीवाद का एक अलग ही रूतवा रहा है ,

अगर पौराणिक इतिहास को देखा जाए तो,

नारीवाद का सम्मान था और उनकी राय को

तवोज्जो भी खूब दी जाती थी।

पर कुछ लोगो ने मर्यादा मर्यादा कहते कहते,

नारियों के पैरो में बेड़ियां बांध दी।

कई सारी कुरीतियों को रिवाज परम्परा का नाम 

देने लगे और अत्याचार करने लगे।

पर हर काम की एक हद होती है सीमा होती है,

और जब वो पार होती है तो भूचाल आता है,

जब बेड़ियां ज्यादा कसी तो उनको तो टूटना ही था।

बहुत संघर्ष के बाद कुरीतियां दूर होना शुरू हुई,

जो अंधविश्वास को पटिया बधी वो खुलने लगी है,

अब नारीवाद आया है फिर से अस्तित्व में एक लंबे कड़े संघर्ष के बाद।

अब नारी को उसका हक, सम्मान ,इज्जत ,रूतवा 

मिलने लगा है फिर से उन अंधेरी रातों के बाद।

लेकिन जब नारीवाद का गलत फायदा उठाया जाता है,

उसको किसी से बदला लेने के लिए इस्तेमाल 

किया जाता है तो वो उनको चोट पहुंचता है 

जिन्होंने नारीवाद को सम्मान दिलाने के लिए अपनी जान दी है।

नारीवाद जरूरी है पर यहां भी कुछ सीमाएं है

जो पुरुषप्रधान समाज पर भी लागू होती है।

ज्योति अग्रवाल

0 likes

Published By

Jyoti agrawal

jyotiagrawal_m

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.