ओ भैया, सबसे बड़ा रुपैया !

सबसे बड़ा रुपैया !

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Juhi Prakash Singh
Juhi Prakash Singh 19 Jul, 2022 | 1 min read

आजकल रिश्तों का नहीं कोई मूल्य है भैया,

न बाप,न भैया औऱ ना ही मैया 

मतलब पूरा होता हो तो बना लें गधे को भी सैयां,

सैयां भी जब तक रहे वो जब तक हो उस पर लुटाने को रुपैया 

हो रुपैया उस पर तो वो डाल दें गधैया के गले में भी अपनी बहियाँ,

तारीफों के पुल बांधें जब तक दे वो गुलछरे उड़ाने के लिए रुपैया 

रिश्ते अब नहीं टिकते मोहब्बत, वफ़ा या उसूलों पर भैया !

कोई यूँ ही नहीं कह गया कि बाप बड़ा न भैया,

सबसे बड़ा रुपैया ! 

ईश्वर को भी खुश रखना है तो भी चाहिए पास में रुपैया, 

दान, ज़कात या डोनेशन की पेटी भी मांगती है सिर्फ रुपैया 

इसलिए कमाओ जम कर भाई तुम रुपैया,

नहीं तो देर नहीं लगेगी बनने में सैया से भैया या सजनी से गधैया 

भैया बनकर भी नहीं पाओगे छुटकारा तुम, भैया,

भाई दूज, रक्षा बंधन मनाने में भी लगते हैं रुपैया 

नहीं हो पाता कोई रिश्ता इस रुपैये के राज में अनमोल

बिक जाता है हर नाता मजबूरी के सामने कौड़ियों के मोल 

इस व्यंग्य में छिपी है एक सीख अतिकर भारी व महत्त्वपूर्ण, 

इस संसार में नहीं प्रेम, ममता , मित्रता औऱ वफ़ा का कोई मोल यदि हो न जेब आपकी इस रुपैये से परिपूर्ण 

-©️जूही प्रकाश सिंह 

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