आखिर कब तक??

थर- थर काँप रही थी धरती हैवानियत लूट रही थी आबरू

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Ektakocharrelan
Ektakocharrelan 16 Feb, 2021 | 1 min read
#1000 poems

पद्य-रचना

शीर्षक- आखिर कब तक?? 

थर- थर काँप रही थी धरती

हैवानियत लूट रही थी आबरू

न पसीजा हृदय दरिंदों का

रुंदन सुन कर भी मासूम का

हर पिता आज फिर सहम गया

माँ का कोमल हृदय 

फिर दहशत में आ गया

निकले कैसे बेटी घर से

आज फिर दरिंदों ने 

प्रशन- चिन्ह लगा दिया?? 

इंसाफ की देवी अब तुम ही बोलो

अपनी आँखों की पट्टी खोलो

कब तक सहेगी बेटी ये अत्याचार

अब तो करो कुछ ऐसा प्रहार

पहुंचे जो सोच हैवानियत तक

उस सोच को तुम जला दो

जब- जब जो हाथ गल्त छुएं

उन हाथ के टुकड़े- टुकड़े कर

पक्षियों के आगे फिकवा दो

हैवानियत को अब ठहरने न दो

अब उसे सूली पर चढ़ा दो

क्षुब्ध हुआ जन-जन

न जाने क्या सोचे

आज ये द्रवित मन

एकता कोचर रेलन

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Ektakocharrelan

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