आंटी आप बहुत अच्छी मैम हैं

दोस्तों क्या आपको नहीं लगता कि आजकल स्कूल और मां बाप जिस तरह से भेड़ चाल में चल रहे हैं क्या वह हमारे बच्चों के लिए ठीक है। क्या बच्चों को अपने सपने देखने और जीने का कोई अधिकार नहीं है।क्या बच्चों को किताबी ज्ञान के देने के अलावा उनके सर्वांगीण विकास की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए

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Chetna Arora Prem
Chetna Arora Prem 21 Dec, 2020 | 1 min read


"मम्मी,मम्मी जल्दी उठो कल साइंस का टेस्ट है मुझे जल्दी से याद करवाओ।कहते हुए सानवी कभी आधी रात को ही नींद से उठ जाती तो कभी सुबह चार पांच बजे। अब तो रोज-रोज उसका यही काम हो गया था कभी टेस्ट तो कभी होमवर्क की चिंता उसे दिन रात सताती थी।उसके अंदर पढ़ाई को लेकर भय बैठ गया था। सानवी अभी पहली कक्षा में ही पढ़ती थी और उसका यह हाल था।उसकी हालत देखकर रचना बहुत दुखी हो जाती थी राजीव से भी सानवी की हालत छुपी नहीं थी। दोनों को समझ नहीं आ रहा था आखिर उनकी बेटी को हुआ क्या हुआ है। ऐसा क्या हो रहा है कि वो ऐसा व्यवहार कर रही है।उसके बदले व्यवहार को जानने के लिए वह दोनों स्कूल भी गए लेकिन उन्हें कुछ खास पता नहीं चला। दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कुछ दिन बाद तो वो स्कूल जाने के नाम से भी डरने लगी।अब वो ना कुछ खेलना चाहती थी ना कहीं घूमना चाहती थी बस उसे अपनी पढ़ाई की चिंता थी। होमवर्क भी इतना मिलता था कि सारा समय लिखने में बीत जाता।


एक दिन रचना को पता चला उसकी फ्रेंड ज्योति ट्यूशन पढ़ाने लगी है तो उसने तुरंत ज्योति को फोन लगाया और सानवी को पढ़ाने के लिए बात की। और साथ-साथ सानवी के बदले हुए व्यवहार के बारे में भी सब बता दिया पहले दिन जब सानवी ज्योति के पास पढ़ने आई तो वह काफी डरी हुई थी। उसे तो मैम के नाम से ही डर लगता था तो उसने डरते डरते मैम बोला तो ज्योति ने कहा," आप मुझे मैम मत बोलो।मैं तो आपकी आंटी हूं ना आप मुझे आंटी बोल सकते हो।" यह सुनकर सानवी का डर कुछ कम हुआ दो-चार दिन तक वह थोड़ी झिझकते हुए पढ़ती रही।ज्योति बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ कभी चुटकुले सुनाती या कोई कहानी तो कभी डांस करवाती।जिससे बच्चो का मनोरंजन भी होता।धीरे-धीरे सानवी को ट्यूशन पर मजा आने लगा।


एक दिन शनिवार को ज्योति ने बच्चों को ट्यूशन पर मूवी टाइम के लिए बुलाया मां बाप भी बच्चों को खुशी-खुशी भेज देते थे क्योंकि उन्हें ज्योति के पढ़ाने के ढंग पर पूरा भरोसा था। ज्योति ने अपने लैपटॉप पर सब बच्चों को तारे जमीन पर फिल्म दिखाई। जिसे देख कर सब बच्चे बहुत खुश हुए व कुछ दृश्य देखकर भावुक भी।फिल्म खत्म होने के बाद ज्योति ने सब बच्चों को समझाया कि आप सब में अपने गुण हैं। किसी के भी नंबर कम ज्यादा हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता। सिर्फ हमें मेहनत करनी है जिस विषय को हम पढ़ रहे हैं उसका हमें ज्ञान होना जरूरी है। और इसके लिए हमें किसी से डरना नहीं है। सब बच्चे प्रश्न पूछने लगे ज्योति उनके जवाब देने लगी।फिर ज्योति ने सानवी से पूछा," सानवी आपके मन में कोई प्रश्न नहीं आ रहा।"


डरते डरते सानवी ने कहा," आंटी हमारी क्लास में तो हमारी मैम सब बच्चों को टेस्ट पेपर देते हुए नंबर भी बताती हैं और जिनके नम्बर कम आते हैं उन्हें डांटती भी हैं।और फिर बच्चे एक दूसरे का मजाक बनाते हैं। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता जब मेरे नंबर कम आए। मेरा रोने का दिल करता है मैं सोचती हूं कि मैं सारा पढ़ लूं सोंऊ भी ना।"


अब ज्योति को सानवी की समस्या समझ आ गई थी और उसके बदले हुए व्यवहार के पीछे क्या कारण था ये भी समझ आ गया।उसने सानवी से पूछा,"आपकी मैम को ऐसा नहीं करना चाहिए।इसका भी हम कोई हल जल्द ही निकालेंगे।वैसे पढ़ाई के अलावा आपको क्या करना अच्छा लगता है क्या शौक हैं आपके।"


सानवी ने कहा," कि मुझे डांस करना बहुत पसंद है मुझे ड्राइंग भी बहुत पसंद है लेकिन पढ़ाई करनी होती है तो मेरे मम्मी-पापा भी बोलते हैं कि सारा ध्यान पढ़ाई पर होना चाहिए ।"


सब बच्चों के साथ बात करने के बाद ज्योति ने उन्हें घर भेज दिया और सोमवार को ट्यूशन आने को कहा।


इस बीच रविवार को उसने सानवी के मम्मी पापा को अपने घर बुला कर उन्हें सब बताया कि कल सानवी ने मुझे ये सब बताया है कि स्कूल में सानवी के ऊपर क्लास टीचर द्वारा प्रेशर डाला जा रहा है कक्षा में जिन बच्चों के नंबर कमाते हैं तो वो सब बच्चों के सामने नम्बर बताती हैं व उनको डांटती हैं। जिससे उन बच्चों का मनोबल टूट जाता है। मैं चाहूंगी इस बारे में आप क्लास टीचर से बात करें और उन्हें समझाएं पहली कक्षा के बच्चे के लिए जो प्रेशर दिया जा रहा है वह शायद हमें दसवीं कक्षा के बच्चों को भी नहीं देना चाहिए। अगर फिर भी क्लास टीचर नहीं समझती तो प्रिंसिपल से मिले अगर वह भी इस बात को ना समझ पाएं तो मैं ये सुझाव दूंगी कि आप सानवी को दूसरे स्कूल में डालें।


क्योंकि अगर एक बार बच्चे का मनोबल गिर गया और बच्चे का आत्मविश्वास खत्म हो गया तो जिंदगी में कभी वह कुछ नहीं कर सकता। इतने छोटे बच्चे को इतना ज्यादा प्रेशर देना ठीक नहीं है अगर बच्चे का आत्मविश्वास ही खत्म हो गया बच्चा दब्बू बन गया तो इतना पढ़ लिख कर भी वह क्या कर लेगा। हमें अपने विषय का पूरा ज्ञान होना चाहिए। आगे चलकर यह ज्ञान ही काम आता है ना की नंबर। मैं मानती हूं कि नंबरों की भी अपनी वैल्यू है लेकिन एक हद तक। उन नंबरों को पाने के लिए हमें किस हद तक जाना पड़ेगा यह बात मायने रखती है। क्यों आजकल बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं उनके पीछे सबसे बड़ा कारण उन पर दिया गया प्रेशर है कभी अध्यापकों के द्वारा, कभी मां-बाप के द्वारा तो कभी सहपाठियों के द्वारा।आप भी याद करके बताइए जब हम लोग पढ़ते थे तो क्या हमारे मां-बाप भी इस तरह प्रेशर देते थे हम पर? तो हम क्यों अपने बच्चों को ऐसे वातावरण में रहने पर मजबूर कर रहे हैं जहां उनके अपने गुण, अपना व्यक्तित्व खो रहा है। क्या लता मंगेशकर, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली से कोई उनके नंबर पूछ रहा है बस वह जो काम कर रहे हैं उसकी कदर की जा रही है। हम जितनी जल्द से जल्द ये बात समझ ले अच्छा होगा और एक बच्चे को मां बाप से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता। मैं चाहूंगी कि आप सानवी के अंदर बैठे इस डर को निकालने में मेरी मदद करें और उस पर अत्यधिक अपेक्षाएं ना बनाएं ना ही किसी बाहर वाले को उस पर कोई दबाव बनाने दें।और उसे कहें कि जियोअपनेसपने।सानवी को इस डर से बाहर निकालने में मैं भी अपको पूरा पूरा सहयोग करूंगी।"

यह सुनकर सानवी के मम्मी पापा को बहुत दुख हुआ कि उनकी बेटी के साथ इतना सब हो गया। अब उन्होंने फैसला कर लिया था क्लास टीचर व प्रिंसिपल से मिलने का व अपनी बेटी का साथ देने का जो उन्होंने किया भी।स्कूल वालों ने अपनी गलती नहीं मानी तो उन्होंने उसका स्कूल ही बदल दिया और ऐसे स्कूल में एडमिशन करवाया जहां बच्चों की प्रतिभा को निखारा जाता था ना कि सिर्फ नंबरों के बल पर उन्हें आंका जाता था।


ज्योति ने भी ट्यूशन पर हर शुक्रवार को ट्यूशन के बाद आधा घंटा डांस क्लास के लिए रख दिया। जिससे बच्चे पढ़ने के बाद रिफ्रेश हो जाते थे। कभी-कभी वो बच्चों को ड्राइंग भी सिखाती।


सानवी अब उस डर के वातावरण से बाहर आ चुकी थी और उसका आत्मविश्वास भी बढ गया। एक दिन वह बोली," आंटी आप बहुत अच्छी मैम हो, क्या मैं आपको मैम बोल सकती हूं? यह सुनकर ज्योति को बहुत अच्छा लगा उसके मुँह से हां निकला और साथ-साथ आंखों से खुशी के आंसू भी।आज उसकी तपस्या सफल हो गई थी उसने एक बच्चे को उसका बचपन लौटा दिया था।


दोस्तों क्या आपको नहीं लगता कि आजकल स्कूल और मां बाप जिस तरह से भेड़ चाल में चल रहे हैं क्या वह हमारे बच्चों के लिए ठीक है। क्या बच्चों को अपने सपने देखने और जीने का कोई अधिकार नहीं है।क्या बच्चों को किताबी ज्ञान के देने के अलावा उनके सर्वांगीण विकास की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए उनके व्यक्तित्व को निखारने में मदद नहीं करनी चाहिए ताकि वह अपने जीवन में हर परिस्थिति का सामना कर सकें।इस बारे में आपके क्या विचार हैं जरूर बताइएगा।


(एक सच्ची घटना पर आधारित)

धन्यवाद।

कॉपीराइट@चेतना अरोड़ा प्रेम।

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Chetna Arora Prem

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