कोरोना काल और बच्चों के भविष्य का सवाल

Published By Paperwiff

Thu, Apr 7, 2022 12:25 AM

आज से कुछ साल पहले कोई भी नहीं जानता था जीवन थमना क्या होता है,किसी ने कोविड का नाम नहीं सुना था, आज बच्चा- बच्चा जानता है कि, कोविड क्या है? किस वायरस से होता है? इसके क्या लक्षण हैं? उन बच्चों के चेहरे के भावों से भी आप इस कोरोना काल की भयाभयता समझ जायेंगे। सामान्य जनजीवन अस्त व्यस्त हो चुका था। बहुत जनहानि हुई। सभी के जीवन पर असर पड़ा। अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा।

 जीवन का यू टर्न — जीवन गतिशील है मगर कोरोना ने दुनिया को 20 साल पीछे लाकर खड़ा कर दिया कोरोना काल ने प्रत्येक जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया विकास होना तो छोड़िए हमने जितनी तरक्की की थी उससे भी हम पिछड़ गए। अक्सर मां-बाप सब कुछ अकेले सहकर अपने बच्चों को कठिनाइयों से बचा लेते हैं मगर इस बार माता-पिता भी असहाय थे ।कोरोना काल बच्चों के बचपन को एक दर्दनाक यादें दे गया। उन्हें बंधक की तरह घर के अंदर रख पाना माता पिता के लिए भी आसान नहीं था मगर जीवन बचाने के लिए जरूरी था।

कोविड की दस्तक — सन 2019 में कोरोना ने दस्तक दी और पूरी दुनिया स्तब्ध हो गई किसी को समझ नहीं आया कि किस विधि से यह नियंत्रित होगा आनन-फानन में इसका टीका तैयार किया गया मगर, कोरोना की आती हुई हर एक नई लहर, कहर बरपा रही थी।

संक्रमण— संपर्क से होने वाली बीमारी कोविड, कोरोना वायरस से फैलने वाली थी ।यह बीमारी दिन पर दिन भयंकर रूप ले रही थी। 

लॉकडाउन— इस बीमारी की रोकथाम के लिए पूरे विश्व को लॉकडाउन के द्वारा बचाया जाना है एक समाधान था अतः समस्त देशों ने लॉकडाउन का पालन किया शुरुआत में आंशिक लॉकडाउन मगर, अनियंत्रित स्थिति के बाद पूर्णत: लॉक डाउन की स्थिति निर्मित हो गई।

वर्क फ्रॉम होम— इस निर्जन सडकों से होते हुए केवल पुलिस गाड़ी और एम्बुलेंस ही गुजरती थी । नौकरी,बिजनेस,फेक्ट्री,स्कूल,कॉलेज सब बंद हो गए सारा काम धाम सब ठप्प हो चुका था। निर्माण रुक चुका था। प्रोडक्शन रुक जाने से सप्लाई भी बंद थी ,जैसे तैसे काम चल रहा था । 90% लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे। सभी अपने- अपने घरों में, कैद हो चुके थे।

बच्चों के भविष्य का निर्माण पर संकट — इन सबके बीच एक वर्ग बहुत ही परेशानी से जूझ रहा था..वह था बच्चों का वर्ग! ना खेलने के लिए बाहर जाने मिल रहा था, ना पढ़ने के लिए स्कूल जाने मिल रहा था। बच्चों की प्रकृति बहुत ही चंचल होती है और उनके पास उर्जा का अथाह भंडार होता है यदि, वह इस्तेमाल नहीं होता तो, बच्चों के अंदर चिड़चिड़ापन आना स्वभाविक है और वही हुआ बच्चे परेशान होने लगे साथ में अभिभावक भी परेशान हो रहे थे।

ऑनलाइन स्कूल का कांसेप्ट आनन-फानन में ऑनलाइन स्कूल का संचालन शुरू किया गया। शुरू शुरू में बड़े-बड़े स्कूलों ने इस व्यवस्था को शुरू किया जो कि इतना आसान नहीं था सबसे बड़ी परेशानी थी डिवाइस की, एप्लीकेशन की.. आखिर कैसे यह ऑनलाइन क्लास चलाई जाए, जिससे बच्चे पढ़ सके गूगल क्लास, जूम क्लास या क्लासरूम... ऐसे कई एप्लीकेशन डाउनलोड करवाए गए बच्चों को एक्सप्लेन करने के लिए...ऑडियो विजुअल तरीके से समझाया जाने लगा, नोट्स देने के लिए पीडीएफ भेजे जाने लगे।

लाभ— जीवन हर हाल में चलता रहता है कभी रुकता नहीं इस बात को बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस ने साबित कर दिया था। बच्चे भी नई- नई चीजों को सीखने के प्रति काफी उत्सुक रहते हैं । ऑनलाइन क्लासेस को भी उन्होंने काफी उत्साह से अपनाया, प्रतिदिन वह नई -नई विधा सीख रहे थे। लिंक के थ्रू अपनी क्लास ज्वाइन करना, मोबाइल में टीचर को देखकर उनको फॉलो करना, कॉपी कंप्लीट करना, आंसर देना, साथ ही अपना होमवर्क चेक कराना, ऑनलाइन टेस्ट देना ,अपनी टेस्ट कॉपी की फोटो खींचकर उसको सबमिट करना इत्यादि ऐसी बहुत सारी लिस्ट है जिसे बच्चों ने सीखा और नई दुनिया की तरफ एक कदम बढ़ाया। बच्चे फास्ट फॉरवार्ड मोड में विकास कर रहे हैं ।

ऑनलाइन शिक्षा की समस्या— बच्चों को यह समझना या समझाना टेढ़ी खीर थी कि, दरअसल ऑनलाइन पढ़ाई होती क्या है? जिनके घरों में अभिभावक पढ़े लिखे थे या संपन्न परिवारों से थे, वहां पर इतनी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा मगर जहां अभिभावक कम पढ़े लिखे या निम्न मध्यम आय वर्ग से थे वहाँ बहुत दिक्कतें आई । आधा साल तो समझने और समझाने में ही बीत गया  फिर गरीब स्कूलों के बच्चों की हालत का अंदाजा खुद लगा लिजीये क्यो कि उनके पास ना तो डिवाइस था, ना इंटरनेट,और ना ही ऑनलाइन स्कूल का कांसेप्ट काफ़ी समय वे वही ठहर गए वापस वही डर अशिक्षा और गरीबी का उनके लिए ऑनलाइन पढ़ाई लगभग नामुमकिन थी।

मोबाइल का अत्यधिक उपयोग- छोटे बच्चों से लेकर बड़े बच्चों तक का पूरा समय मोबाइल पर ही बीतने लगा। मोबाइल पर पहले होने वाली ऑनलाइन क्लासेस, उसके बाद कॉपी कंप्लीट करने के लिए मोबाइल पर आने वाले नोट्स, बच्चों के एवं टीचर के व्हाट्सएप ग्रुप, हर एक चीज के लिए वे मोबाइल के मोहताज हो गए । बच्चे ज्यादातर समय मोबाइल के संपर्क में रहने लगे।

मोबाइल एडिक्शन- यह कहना गलत ना होगा कि बच्चे मोबाइल के एडिक्ट हो गए ।अब उन्हें मोबाइल से दूर रखना संभव नहीं, इंटरनेट की आवश्यकता अब जोरों पर है,जहां हर काम ऑनलाइन हो रहे वही ऑनलाइन क्लासेस और जूम मीटिंग जोरों पर हो रही है। इंटरनेट की आवश्यकता दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।

स्थिति तब और अब - तब भी दुनिया एक अजब दौर से गुजर रही थी, सभी घरों में कैद ,अवसाद से ग्रस्त, उबाऊ जिंदगी से त्रस्त हो चुके थे बच्चों का हाल और भी बुरा था और अब भी वही माहौल बना हुआ है। रोज रोज नई खबर आती रहती हैं कभी कोरोना के नये वर्जन आने की, लॉकडाउन के हालात की या इंजेक्शन की नई डोज़ की । छोटे मासूम बच्चों की इंजेक्शन की कशमकश अब भी बनी हुई है। कोई करे भी तो क्या? उसी ऊहापोह में बच्चों की शिक्षा के 2 साल निकल गए हैं ।

शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन- वर्तमान के समय को देखते हुए तथा टेक्नॉलॉजी के इस युग में हमें शिक्षा पद्धति में आवश्यक परिवर्तन करने होंगे हालांकि यह परिवर्तन बहुत पहले हो जाने चाहिए लेकिन फिर भी जब आंख खुले तब सवेरा। हमें सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों को वर्तमान समय में होने वाली घटनाओं से रूबरू कराया जाए ताकि, बदलते हुए परिदृश्य से वह सामंजस्य बिठा सकें। जैसे जापान में भूकंप से बचने के व्यावहारिक उपाय बच्चों को सिखाए जाते हैं वैसे ही अन्य देशों में वहां की पृष्ठभूमि के हिसाब से आपदाओं से बचने के लिए अभ्यास कराये जाएं।

— बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखा जाए उन्हें स्वच्छता के बारे में ज्ञान प्रदान किया जाए।

— योगा, मेडिटेशन, पीटी इत्यादि की नियमित कक्षाएं लगाई जाए।

— बच्चों के अंदर क्रिएटिविटी बढ़ाने के लिए उन्हें उत्साहित किया जाए।

— बच्चों को प्ले वे मेथड से पढ़ाया जाए

हो सकता है फिर ऑनलाइन क्लासेस शुरू हो जाए उसके लिए भी हमें अपने बच्चों की मानसिकता तैयार करनी चाहिए।

— आठवीं कक्षा के बाद से ही वोकेशनल कोर्स शुरू होने चाहिए ताकि बच्चा अपने भविष्य के प्रति रुचि का निर्माण कर सकें और उस और ज्ञान अर्जित कर सके विकास जरूरी है मगर उससे भी ज्यादा...जरूरी है जीवन ।

कुछ दिनों से यह बातें जोर पकड़ रही है कि इन दो सालों में पास आउट हुए बच्चों की मार्कशीट को कोई महत्व नहीं दिया जाएगा, उनको किसी भी जॉब के लिए अतिरिक्त परीक्षाएं देनी होंगी, अपने आप को साबित करना होगा। क्या मार्कशीट ही सब कुछ है? माना परीक्षा ऑनलाइन थी तो क्या इतनी आसान थी? कितने घरों मैं पैसों की किल्लत थी, कितनों के घर लोग मारे गए थे, कितनों के घर के घर बीमारी से ग्रस्त थे हॉस्पिटल से घर और घर से हॉस्पिटल बस यही दिनचर्या थी, तो क्या? परीक्षा देना इतना आसान था ?

 मेरा आप सब से बस इतना अनुरोध है मानवता के सबक को ना भूलें, स्वहित, जनहित मे कार्य करें,सबके कल्याण के लिये निर्णय लें। ये समय बहुत कठिन है मजबूती से हाथ थाम कर चलें,अपने बच्चे के कोमल मन का विशेष ध्यान रखें आज है तो कल है। जान है तो जहान है।

 

पल्लवी वर्मा

एलएलबी, परा स्नातक (फूड & न्यूट्रिशन) 

रायपुर, छत्तीसगढ़