"Poet of Pain” : Jaun Elia an Indo-Pakistani poet

Published By Paperwiff

Sun, Jan 8, 2023 5:01 PM

अभी पिछले महीने यानी दिसम्बर की 14 तारीख़ को हमने उर्दू के एक बे-इंतिहा मक़बूल और बा-कमल शायर का जन्मदिन मनाया था। वो शायर जिसकी शायरी इन्द्रधनुष की मानिंद तमाम रंग समेटें हुए हैं। उसकी शायरी में इश्क़ भी है, फ़लसफ़ा भी, उदासी भी है, और ऐसी बे-फ़िक्री भी-

  मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस

  ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं

पढ़ने वालों को जितनी उसकी शायरी हैरत-अंगेज़ और दिलचस्प लगती हैं उतनी ही उसकी ज़िन्दगी भी। ये शेर उसके तआरुफ़ के लिए बिल्कुल सटीक है कि

ये है इक जब्र इत्तेफ़ाक़ नही  जौन होना कोई मज़ाक़ नहीं

 जी हाँ! हम बात कर रहे हैं हज़रत जौन एलिया की।

जौन एलिया का जन्म उत्तर प्रदेश के शहर अमरोहा में सन 1931 ईस्वी में हुआ था। उनके वालिद सय्यद शफ़ीक़ हसन एलिया एक शायर और फ़ारसी के विद्वान थे। सो अदब और किताबें उन्हें अपने वालिद से विरसे में मिली थीं और किताबों से उन्हें बेहद लगाव भी था-

मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें

मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं

बँटवारे के बाद उनके बड़े भाई पाकिस्तान चले गए और माँ-बाप के इन्तिक़ाल के बाद न चाहते हुए भी जौन एलिया को सन् 1956 में पाकिस्तान जाना पड़ा। मगर उनका दिल हिन्दुस्तान में ही रह गया और वे पाकिस्तान में बराबर हिन्दुस्तान को याद करते रहे। वे हमेशा कहते "मैं पाकिस्तान आकर हिन्दुस्तानी हो गया"

 क्या पूछते हो नाम-ओ-निशान-ए-मुसाफ़िराँ

 हिन्दोस्ताँ में आए हैं हिन्दोस्तान के थे

 ये और बात है कि जौन से अमरोहा छूट गया मगर अमरोहे ने जौन को कभी नहीं छोड़ा-

 मत पूछो कितना ग़मगीं हूँ, गंगा जी और यमुना जी   

ज़्यादा तुमको याद नहीं हूँ, गंगा जी और यमुना जी

अमरोहा में बान नदी के पास जो लड़का रहता था   

अब वो कहां है? मैं तो वही हूँ, गंगा जी और यमुना जी

अमरोहा में बहने वाली बान नदी का ज़िक़्र उनकी ग़ज़लों में बार-बार आया है

ऐ! मेरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क   

तू नहाती है अब भी बान में क्या?

पाकिस्तान में समन्दर किनारे बसे शहर कराची में रहते हुए जौन कितनी शिद्दत से बान को याद करते है

इस समन्दर पे तिश्ना-काम हूँ मैं

बान तुम अब भी बह रही हो क्या?

जौन एलिया अमरोहा के जिस मोहल्ले में पैदा हुए वहाँ के उनके जानने वाले बताते हैं कि जौन जब भी अमरोहा आते तो हर बार बान के किनारे पर जाते और उसके पानी को माथे से लगाते थे। अपनी मौत से तीन साल पहले यानी सन 1999 में जौन आख़िरी बार अमरोहा आए थे।

ये इत्तेफ़ाक़ ही है कि अमरोहा में बहने वाली बान नदी आज की तारीख़ में लगभग सूख चुकी है। स्थानीय प्रशासन उसे दोबारा ज़िन्दा करने की कोशिश कर रहा है और शायद वो नदी दोबारा बह निकले मगर हमें पता है वो कोई दूसरी ही बान होगी क्योंकि जौन एलिया की बान तो उनके साथ ही चली गई।

-- मयंक शुक्ला 

 


   


 

  

 

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