Hindi Diwas !!!

Published By Paperwiff

Wed, Sep 15, 2021 11:05 AM

हिन्दी साहित्य की विधा

हिन्दी साहित्य अर्थात्‌ हिन्दी भाषा का सृजनात्मक रचना संसार। हिन्दी भाषा का साहित्य सर्वदा ही स्वांतः सुखाय के साथ-साथ परिजन हिताय को परिभाषित करता आया है। यहाँ हम देखते हैं कि गद्य एवं पद्य साहित्य की अनेक विधाएँ हैं जो रचनाओं के गुण धर्म के आधार पर निर्मित होती आई हैं।

गद्य साहित्य - गद्य हमारे विचारो की स्वाभाविक और सहज अभिव्यक्ति है। यद्यपि साहित्य में गद्य लेखन, पद्य लेखन के बाद आया है तथापि गद्य लेखन सहज रूप से जनसामान्य में प्रचलित और प्रशंसित भी हुआ क्योंकि यह छंद, ताल, लय, एवं तुकबंदी से मुक्त रहा है। गद्य साहित्य के विषय विचार प्रधान होते हैं। दैनिक जीवन में गद्य साहित्य के प्रमुखता से प्रयोग के कारण इसमें निरन्तर नवीन विधाएँ जुड़ रही हैं। कुछ प्रमुख विधाएँ इस प्रकार से हैं —

१). कहानी — कहानी गद्य साहित्य की प्राचीन एवं लोकप्रिय विधा है। जब से कुछ भी कहने की शुरुआत हुई होगी कहानी तब से है। किसी घटना/भावना/विचार पहलू को दूसरे के समक्ष रचनात्मक एवं कलात्मक रूप से रखने के साथ ही कहानी का जन्म हो गया होगा। ऐसा चित्रण जो लघु होते हुए भी प्रभावी हो। हालाँकि हिन्दी में मौलिक कहानियाँ बाद में लिखी गईं, प्रारम्भ अनूदित कहानियों से हुआ था। कहानी विधा के प्रमुख छः तत्व — कथावस्तु, चरित्र चित्रण, शैली, कथोपकथन, देशकाल एवं उद्देश्य हैं। आधुनिक युग में समय के साथ-साथ कहानियों का स्वरुप बदलता रहा है। 

२). उपन्यास — यह साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है। उपन्यास में लेखक कथानक के माध्यम द्वारा कहानी को व्यापक और विस्तृत रूप से वर्णित करता है कि पाठक उसमे खो जाता है और स्वयं को उसी उपन्यास का एक हिस्सा पाता है। हिन्दी में उपन्यास विधा का आरम्भ भारतेन्दु युग से माना जाता है। उपन्यास विधा के भी कुछ तत्व है जिनके आधार पर वह कसौटी पर खरा उतरता है। इन तत्वों को ध्यान में रखते हुए रचनाकार सत्य और कल्पना दोनों का सहारा लेकर जीवन की झाँकी प्रस्तुत करता है।

३). नाटक — यह गद्य साहित्य की सबसे प्राचीनतम विधा है। जिस नाटक की विधा को हम जानते हुए बड़े हुए है वह दृश्य काव्य है। यानी सुनने के साथ ही देखकर अभिनय से भावों का अनुभव करते हैं। नाटक करने वाला अर्थात्‌ नट किसी अन्य व्यक्ति विशेष की विभिन्न अवस्थाओं का अपने अभिनय द्वारा अनुकरण करता है। नाटक वस्तुतः रूपक का एक भेद है। पात्रों एवं संवादों के साथ लिखी गई इस रचना में एक से अधिक अंक होते है जिनपर बाद में अभिनय किया जा सके। हिन्दी में मौलिक नाटकों का आरम्भ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है। बाद में अन्य साहित्यकारों ने इस विधा को विकसित किया। 

४). एकांकी — नाटक का एक महत्वपूर्ण रूप एकांकी है। यह किसी एक घटना, परिस्थिति या समस्या के आधार पर रचा जाता है जिसकी समाप्ति या पटाक्षेप एक ही अंक में हो जाता है। एकांकी पठनीय एवं अभिनय, दोनों योग्य होता है। इसका प्रमुख गुण इसकी संक्षिप्तता और गतिशीलता है। एकांकी के प्रमुख तत्व भी नाटक के समान होते हैं। हिन्दी में एकांकी नाटकों का विकास छायावाद युग के समय से माना जाता है। 

५). निबन्ध — यह गद्य साहित्य की सर्वोत्तम विधा मानी जाती है, यह गद्य की कसौटी कही जाती है। निबन्ध का अर्थ ही ठीक प्रकार से बंधी हुई रचना है। सीमित आकार में ही आवश्यकत संगति के साथ क्रमबद्ध रूप में विषय का वर्णन मिलना निबन्ध का गुण है। निबन्ध लेखन के लिए विषय का ज्ञान एवं अध्ययन होना आवश्यक है। भाषा की सजीवता एवं स्वच्छता भी होनी चाहिए। आधुनिक गद्य साहित्य में निबन्ध विधा का गौरवपूर्ण स्थान है। इस विधा का आरम्भ भी भारतेंदु युग से माना जाता है। 

६). आलोचना — साहित्य में आलोचना का अर्थ भली प्रकार से देख कर निष्पक्ष रूप से उसके गुण दोष को प्रकट करना जिसे आजकल समीक्षा भी कहा जाता है। यह कार्य समीक्षक को व्यक्तिगत मान्यताओं और राग द्वेष से उपर उठकर करना होता है। हिन्दी समीक्षा के विकास में भारतेन्दु हरिश्चंद्र, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि का विशेष योगदान है। 

७). लघुकथा — शाब्दिक अर्थ से अंग्रेजी के 'शॉर्ट स्टोरी' की तरह लगने वाली लघुकथा के मायने हिन्दी साहित्य में भिन्न है। यह हिंदी साहित्य की आधुनिक विधा है। लघुता इसकी प्रमुख विशेषता है। लघुकथा कार की दृष्टि अपने उद्देश्य पर टिकी होती है और वह तीव्र गति से अपने अंत की ओर बढ़ता है। लघुकथा किसी बड़े परिपेक्ष्य के किसी विशेष क्षण का सूक्ष्म निरीक्षण की तरह है। यहाँ एक से अधिक कालखंड नहीं होते हैं। घाव करे गम्भीर को चरितार्थ करती हुई इस विधा में लक्ष्य सधा हुआ होता है तथा विस्तार का कोई स्थान नहीं रह जाता है। लघुकथा का आरम्भ बीसवीं सदी के आठवे दशक से माना गया है। अन्य विधाओ की तरह लघुकथा के भी मानक तत्व होते हैं जिनके आधार पर खरी उतर कर लघुकथा तैयार होती है। 

गद्य साहित्य में इन विधाओ के अलावा आत्मकथा, जीवनी, रिपोर्ताज, डायरी, यात्रा वृत्त, एवं रेखाचित्र, संस्मरण आदि विधाएँ भी आती हैं। 

पद्य साहित्य — हिन्दी साहित्य में पद्य का प्रादुर्भाव गद्य साहित्य के बहुत पहले से है। काव्य रचना में भाव एवं कल्पना की प्रधानता होती है। यह छंद युक्त और छंद मुक्त दोनों ही तरह की हो सकती है। काव्य साहित्य का एक अभिन्न अंग है जो एक विचार को व्यक्त करता है, एक दृश्य का वर्णन करता है या एक कहानी को शब्दों द्वारा गायन व्यवस्था में बताता है। काव्य की रचना कई तरह से हो सकती है परंतु कलात्मक, भावात्मक और लयात्मक शब्दों का चयन इसे खूबसूरत बनाता है वर्ना आजकल पद्य और गद्य में ज्यादा फर्क नहीं रह गया है। वैसे काव्य छंद मुक्त, लय मुक्त भी हो सकती हैं। हालाँकि छन्द कविता के पदों में सक्रियता और प्रभावशीलता लाता है। वह हमारी अनुभूतियों को लय तान और राग से स्पंदित करता है।वहीं छंदमुक्त कविता में आने वाली नई कविता विम्बों और प्रतीकों के माध्यम से पाठक मन में विषय को बहुत खूबसूरती से प्रतिबिंबित करती है। 

आज काव्य , कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। काव्य के जरिए अपनी बात को प्रभावी ढंग से सही श्रोता या समाज तक पहुंचाई जा सकती है। काव्य का इतिहास बहुत ही पुराना और समृद्ध है, लगभग चार हजार साल पुराना। हमारे धर्मग्रंथ भी खण्डकाव्य में लिखे गए हैं। कविता की मुख्य विधाएँ —

मुक्तक — मुक्तक नाम से मुक्त है अर्थात इसके छंद आपस में एक दूसरे से मुक्त है पर कविता के नियम से मुक्त नहीं। मतलब ये कि इन्हें जब चार पंक्तियों में सजाया जाएगा तो मात्रा भार और लय का ध्यान रखना ही होता है। 

कह मुकरी — कह-मुकरी’ जैसा कि नाम से ही पता चलता है कहके मुकर जाना ! इसे ग्रामीण क्षेत्रों में कही जाने वाली पहेली का ही थोड़ा विकसित रूप कह सकते हैं।कह-मुकरी मनोरंजक काव्य की पुरानी विधा है जो लगभग खत्म होने के कगार पर पहुंच गई थी किन्तु कुछ जागरूक साहित्यकारों के प्रयास से पुनः अस्तित्व में आ रही है। इस विधा का अस्तित्व भारतेंदु युग की समाप्ति और द्विवेदी युग के आरम्भ के साथ ही लुप्तप्राय हो गया था और इस विधा पर अमीर खुसरो द्वारा सबसे ज्यादा काम किया गया था।

त्रिवेणी — त्रिवेणी सिर्फ तीन लाइन वाली कविता गागर में सागर है। ऐसा माना जाता है कि प्रसिद्ध गीतकार और कवि गुलज़ार साहब ने इस त्रिवेणी विधा को विकसित किया था। 

हाइकु — हाइकु हिंदी काव्य का नवीनतम छंद है। इसमें तीन चरण या पद होते हैं। पहले चरण में पाँच वर्ण, दूसरे में सात वर्ण एवं तीसरे में पाँच वर्ण होते हैं। इस तरह तीनों चरणों में कुल सत्रह वर्ण( स्वर या स्वर युक्त व्यंजन होते हैं। स्वर रहित व्यंजन (हलन्त) की गिनती नहीं की जाती, जैसे सत्कार में त् की गणना नही की जाएगी । इस शब्द में स, का और र की ही गणना की जाएगी । इस गणना में लघु/दीर्घ मात्राएँ समान रूप से गिनी जाती हैं।वास्तव में हाइकु का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गम्भीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है।

दोहे — दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं। इसके कई प्रकार बताए गए हैं। 

तुकांत /अतुकांत कविताएं — सम तुकांत शब्दों के माध्यम से लिखी गई कविता तुकांत कविता कहलाती है। अतुकांत कविता में तुकांत का अभाव होता है। 

साहित्य के अन्य रूपों की तरह, कविता विचारों को साझा करने, भावनाओं को व्यक्त करने और कल्पना का कलात्मक चित्रण करने के लिए है।

-सुषमा तिवारी