Grammar (लिखते समय भाषा में व्याकरण एवं वर्तनी विचार)

Published By Paperwiff

Sun, Mar 21, 2021 10:04 AM

लिखते समय भाषा में व्याकरण एवं वर्तनी विचार

मान लीजिए कि आप किसी खूबसूरत सफर पर निकले है और रास्ते में एक के बाद एक गड्ढे आते जाते हैं। क्या वो सफर उतना ही खूबसूरत रह जाएगा? नहीं ना? बस ऐसा कुछ ही है किसी पाठक द्वारा अपने प्रिय लेख या कहानी पढ़ने का सफर जिसका मजा किरकिरा कर देती है व्याकरण एवं वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ।

आज हम बात करेंगे अपनी रचना को सरलता से पठनीय बनाने के लिए लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। रचना निर्माण के समय कुछ आधारभूत चीजों का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि हमारे द्वारा जो कुछ लिखा जाए, वह बिल्कुल स्पष्ट सार्थक और व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध हो। वाक्यों के विभिन्न अंग यथास्थान होने चाहिए। साथ ही विराम-चिह्नों का भी उचित जगहों पर प्रयोग होना चाहिए।

        हालांकि हम कम्प्यूटर और मोबाइल के युग में लेखन कर रहें है जहां हिन्दी लिखते समय टंकण में अब कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अलग - अलग कीबोर्ड में शब्दों का पहले से ही 'ऑटो करेक्ट ' हो जाना असमंजस में डाल देता है या भूलवश हम वैसे ही टाइप कर देते हैं। इसी कारण सामान्य जीवन में हर स्थान पर, कम्प्यूटर, इण्टरनेट तथा लेखों में हिन्दी में वर्तनी सम्बंधी अनेक गलतियाँ देखी जाती हैं। चाहे जो हो, हम सब लेखक होने के साथ पाठक भी है और ये स्वीकारना गलत नहीं होगा कि अशुद्ध वर्तनी भाषा की सुन्दरता को खराब करती है। वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ शब्द से निकलने वाले अर्थ को भी प्रभावित करती हैं। ऐसे अनेक शब्द हैं जिनकी मात्रा यानी वर्तनी संबंधी अशुद्धि हुई और अर्थ का अनर्थ हो जाएगा। हमें सदैव सचेत रहना चाहिए।

तो आइये कुछ ऐसी छोटी - छोटी अशुद्धियाँ जो हम जाने अनजाने अपने हिन्दी लेखन के दौरान करते है।

1. विराम चिह्नों का सही प्रयोग

— विराम चिह्नों के प्रयोग मे सबसे आसानी से होने वाली चूक है - स्पेस देना।

हिन्दी में किसी भी विराम चिह्न यथा पूर्णविराम, प्रश्नचिह्न आदि से पहले स्पेस नहीं आना चाहिए। परंतु चिह्नों के पश्चात स्पेस अवश्य दें।

विस्मयादिबोधक चिह्नों का प्रयोग

विस्मयादिबोधक चिह्न (Sign of Interjection) ( ! )- इसका प्रयोग हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए किया जाता है। हालाँकि अतिशयता को प्रकट करने के लिए कभी-कभी दो-तीन विस्मयादिबोधक चिह्नों का प्रयोग किया जा सकता है परंतु इसका ज्यादा प्रयोग लेख की खूबसूरती छीन लेता है। पाठक भाव को पहचानता है और एक विस्मयादिबोधक चिन्ह भी भाव प्रस्तुतीकरण के लिए पर्याप्त है।

2. अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न (Inverted Comma)(''... '') का प्रयोग

किसी की कही हुई बात को उसी तरह प्रकट करने के लिए अवतरण चिह्न ( ''... '' ) का प्रयोग होता है।

जैसे- वृंदा ने कहा, ''पेपरविफ सभी भाषा के लेखकों का स्वागत करता है।''

उद्धरणचिह्न के दो रूप है- इकहरा ( ' ' ) और दुहरा ( '' '' )।

अब जहाँ किसी पुस्तक से कोई वाक्य या संवाद ज्यों-का-त्यों लिया जाए, वहाँ दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है और जहाँ कोई विशेष शब्द, पद, वाक्य-खण्ड इत्यादि लिए जायें वहाँ इकहरे उद्धरण लगते हैं। जैसे-

'' तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा ''- सुभाष चंद्र बोस

'गोदान' की कथा संक्षेप में लिखिए।

महत्त्वपूर्ण कथन, कहावत, संवाद आदि को उद्धत करने में दुहरे उद्धरणचिह्न ( '' '' ) का प्रयोग होता है।

पुस्तक, समाचारपत्र, लेखक का उपनाम, लेख का शीर्षक इत्यादि लिखते समय इकहरे उद्धरणचिह्न ( ' ' ) का प्रयोग होता है।

इसलिए लिखते समय ध्यान से पात्रों के संवादों को दुहरे उद्धरणचिह्न ( '' '' ) से इंगित करना चाहिए। शीर्षक या महत्वपूर्ण नामों के लिए इकहरे उद्धरणचिह्न ( ' ' ) का प्रयोग करना चाहिए।

3. अनुस्वार तथा अनुनासिक के उपयोग

हमारे द्वारा बहुधा अनुस्वार (ं) के स्थान पर अनुनासिक (ँ) तथा अनुनासिक (ँ) के स्थान पर अनुस्वार (ं) लिख दिया जाता है। विशेषकर अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार को लिखे जाने की गलती अधिक होती है और यह एक प्रकार की आदत भी बन गयी है जिसके तरफ कोई ध्यान नहीं देना चाहता है।

जैसे 'आँखों ' के स्थान पर 'आंखों ' लिखना और 'चंदन' के स्थान पर 'चँदन' लिखना।

यहां विस्तार से उसकी चर्चा सम्भव नहीं है क्योंकि उसके लिए हिन्दी व्याकरण से तत्सम - तद्भव शब्दों को पूरा समझना होगा। आग्रह यही है कि हम सभी समय - समय पर अपनी भाषा के व्याकरण का अध्ययन करे और लेखन में उसका पालन करें।

4. लोप चिह्न (Mark of Omission)(...) का अतिशय प्रयोग

लोप चिह्न का प्रयोग तब किया जाता है जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो जैसे आपको पात्र को कुछ सोचते हुए या अधूरा कथन कहते हुए दिखाना है। मानकों के अनुसार सिर्फ तीन डॉट का प्रयोग किया जा सकता है वो भी एक सीमित मात्रा में। आप वाक्य का अंत करके नए वाक्य शुरू कर सकते हैं। लोप चिह्न का ज्यादा प्रयोग पाठन प्रक्रिया में अवांछित स्पीड ब्रेकर बन जाता है। इसका ज्यादा प्रयोग हमारी बुरी आदत बनते जा रहा है जो हमारे लेखन को एक अच्छे साहित्य बनने से दूर कर सकता है। उदाहरण के लिए आप अपने बहुचर्चित साहित्य को उठा कर देख सकते हैं, इनका सीमित प्रयोग देखने को मिलेगा।

एक सुन्दर रचना निर्माण में भाषाई शुद्धता, वर्तनी, व्याकरण, वाक्य संयोजन आदि के विषय हम सभी को ध्यान देना चाहिए। अगर और विस्तृत चर्चा हुई तो लेख उबाऊ हो जाएगा। आगे भी हम इस विषय पर चर्चा करते रहेंगे। पेपरविफ का उद्देश्य है साथ लिखना और साथ सीखना। अलग अलग विषयों पर आप सभी के सुझाव आमंत्रित है।

-सुषमा तिवारी