Dr. Rahat Indori : Legend of Poetry

Published By Paperwiff

Sat, Oct 1, 2022 10:29 PM

किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी हैं 
इस टाइटल से आप समझ ही गए होंगे के आज हम राहत इंदौरी की बात करने वाले हैं। वही राहत इंदौरी जिनकी शायरी में भी राहत का ऐसा दरिया है कि आप ख्यालों की नाँव में बैठ कर सुख़न की सैर कर सकते हैं। 
राहत इंदौरी का बेबाक-अंदाज इस शेर से हमें समझ आता हैं-
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी हैं - राहत इंदौरी 
इस शेर ने तमाम मुल्क में और मुल्क के बाहर भी एक अलग ही शोहरत बटौरी उन सभी लोगों का मुँह बंद करके रख दिया जो मुल्क को बाँटने चले थे और इस शेर ने साबित कर दिया के राहत साहब बेबाक क़लम के बादशाह थे। वो अपनी बात कहने से कभी नहीं चूकें और मुल्क को लेकर उनकी मुहब्बत उनकी शायरी में हर सम्त नज़र आई ।
इस बात पर उनका एक मशहूर शेर पेश हैं 
मैं जब मर जाऊँ तो मेरी अलग पहचान लिख देना लहू से मेरी पेशानी पर हिन्दुस्तान लिख देना - राहत इंदौरी 
बात सिर्फ़ मुल्क से मुहब्बत की नहीं उन्होंने मुल्क की आवाम और तमाम बाशिंदा-ए-हिन्द को भी मुहब्बत करने का पैग़ाम दिया। कभी भी इम्तियाज़ (भेद-भाव) को बढावा नहीं दिया।  ये शेर इस बात का सबूत है ।
वो हिंदू , मैं मुसलिम, ये सिक्ख, वो ईसाई यार ये सब सियासत है चलो इश्क़ करे- राहत इंदौरी 
इंदौर की गलियों में खेलने वाले राहत का जन्म 1 जनवरी 1950 में रानीपुरा मे हुआ और नन्हें राहत का नाम पड़ा "राहत कुरैशी"। इस बात मे कोई दो राह नहीं के नए साल के तोहफ़े मे हिन्दुस्तान को नए रंग का शायर मिला। राहत की ज़िन्दगी बहुत ही ग़ुरबत में गुज़री लेकिन उन्होंने अपने हौंसले के हाथों अपनी मेहनत और लगन के दम पर, हालातों के मुँह पर तमाचा जड़ दिया और लोगों के लिए नई मिसाल कायम की। उनके ड्रामाई अंदाज़ के लोग फेन हो गए। उन्होंने अपनी क़लम के दम पर लोगों की हौसला अफ़जाई की।
सो राहत साहब के दो शेर पेश-ए-ख़िदमत-
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे- राहत इंदौरी 
जो दुनिया को सुनाई दे उसे कहते है ख़ामोशी जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफ़ान कहते है - राहत इंदौरी
11 अगस्त 2020 को राहत इंदौरी हमें छोड़ कर चले गए और उनके जाने के बाद उनके कुछ चुनिंदा अश्'आर ने बहुत रुलाया।
दो गज़ सही मगर ये मेरी मिल्क़ियत तो हैं ऐ मौत तूने मुझको ज़मींदार कर दिया - राहत इंदौरी 
जनाज़े पर मेरे लिख देना यारों मुहब्बत करने वाला जा रहा है- राहत इंदौरी 
हाथ खाली है तेरे शहर से जाते जाते जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते- राहत इंदौरी
एक दफ़ा अनवर जलालपुरी जो राहत इंदौरी के बहुत अच्छे दोस्त है उन्होंने कहा था कि एक वक़्त था अगर राहत का नाम किसी मुशायरे में नहीं होता था तो वो मुशायरा 'ऑल इंडिया मुशायरा' नहीं समझा जाता था।उनके जाने के बाद ये बात हर मुशायरे में उनके चाहने वालों के ज़हन में आती रहेगी।

- फ़िरदौस ख़ान (Paperwiff)