Chaw ki talash
जबसे मां पापा नहीं रहे, गांव आने का समय ही नहीं निकाल पाया। कईं सालों बाद आज मैं अपने गांव जा रहा हूं।
Published By Paperwiff
Tue, May 27, 2025 5:34 AM

कईं सालों बाद आज मैं अपने गांव जा रहा हूं।
जबसे मां पापा नहीं रहे, गांव आने का समय ही नहीं निकाल पाया। पहले तो जब भी जीवन की धूप महसूस होती थी, तो माता-पिता के स्नेह की छांव में आकर तरो-ताजा हो जाता था लेकिन जब वे इस दुनिया से गये, ऐसा लगा जैसे मैंने खुद को ही खो दिया हो।
बहुत समय लगा मुझे ये कमी संभालने में।
लोग कहते हैं बच्चे माता पिता का अंश होते हैं। मैंने महसूस किया कि माता-पिता ही बच्चों का सब कुछ होते हैं, उनके रहने से जो सुरक्षा महसूस होती है उसका कोई प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) नहीं है इस दुनिया में, कल ये सब सोच रहा था तो अचानक गांव याद आया । गांव की वो सड़क दोनों और खूब घने नीम के पेड़। आम के बाग, खेत, खलिहान.. फूलों से भरी आंगन की क्यारी। एकदम ऐसा लगा कि उन सभी में माता पिता सा स्नेह है। तो क्यों न गांव हो आऊं?
वैसे भी जीवन की तपिश इतनी बढ़ गई है, काम का प्रेशर, सोने जागने का कोई वक्त नहीं। ऊपर से ये गर्मी, शहरों में बड़े बड़े फ्लाईओवर, मॉल सब कुछ तो मिलता है। कहीं कहीं कृत्रिम हरियाली भी दिख जाती है। लेकिन वो गांव की देशी हरियाली दूर दूर तक देखनें को नहीं मिलती। ये सब सोचते सोचते गांव मेरी आंखों में उतर आया। वो बड़े बड़े घर आंगन उनमें आम अमरूद शहतूत के पेड़, सोचते सोचते मीठे मीठे शहतूत का स्वाद जीभ में घुलने लगा।
बस इसी मीठी याद के साथ मैंने अपने लैपटॉप को बंद किया और अपने बॉस से दो दिन की छुट्टी मांग ली, उनको रिक्वेस्ट किया कि लम्बे समय से गांव नहीं जा पाया, जाना चाहता हूं, वहां अपने पुश्तैनी घर को भी देखना चाहता हूं।
बॉस शायद अच्छे मूड़ में थे, तुरंत छुट्टी मिल गई। और आज अब मैं अपने गांव को जाने वाली सड़क पर आ गया हूं।
लेकिन ये क्या?
यहां वे छायादार नीम शीशम के पेड़ दिखाई नहीं पड़ रहे है।
बस एक धूप में तपती पक्की सड़क है, जिसके किनारे दूर दूर तक कोई पेड़ दिखाई नहीं देता।
तो क्या?
सारे पेड़ इस सुंदर और चौड़ी सड़क की भेंट चढ़ा दिये गये। बहुत अनमने मन से मैं गांव के अपने घर पहुंचा। मकान पर ताला पड़ा था, मां की याद हूक बनकर दिल में जाग गई, क्यारी में जो फुलवारी खड़ी थी वो भी सूख गयी थी। पड़ोस के कुछ बच्चे गाड़ी देखकर जरूर आ गये, साथ में ठंडा पानी भी लाये।
मैंने पूछा, "मटके का पानी है?"
वो एकदम उत्साह से बोले नहीं भैया फ्रिज का है एकदम ठंडा, ये बोलते हुए उनकी आंखों की चमक देखते ही बन रही थी, और मेरी आंखों की चमक फीकी पड़ रही थी।
गांव में अब गांव नहीं रहा, चारों तरफ बड़े बड़े सुंदर घर हैं, घरों से आंगन गायब है। पेड़ पौधे नाम मात्र के रह गये हैं।
ताला खोला ...
कि घर में बैठू थोड़ा सुस्ता लूं जिस छांव की तलाश में यहां आया था वो यहां मिसिंग है।
घर में झाड़ पोंछकर थोड़ी बैठने की जगह बनाई और आंख मूंदकर सोने की कोशिश करने लगा, उन बच्चों को कुछ बिस्किट वगैरा देकर वापस भेज दिया।
लेकिन नींद नहीं आई, लगा जैसे ग्लोबल वार्मिंग ने इस पूरी धरती की नमीं सोख ली है , इस विकास ने हमसे जंगल, खेत और पेड़ सब छीन लिये हैं। कैसे बचेगी ये धरती ?
मैं अकेला कर भी क्या सकता हूं?
बस ये सब सोच रहा था कि
बाहर से हरी काका की आवाज़ आई, हरि काका पहले पिता जी के साथ हमारे खेतों पर काम करते थे, अब खेत तो रहे नहीं, लेकिन मैं जब भी गांव आता हूं, काका मुझसे मिलने आ ही जाते हैं।
मैंने कहा, काका प्रणाम, आओ बैठो..!
"कैसे हो बेटा?
बहुत दिन बाद आये इधर..!"
हां काका, आया था वही पुराना गांव और हरियाली देखने लेकिन गांव अब गांव न रहा काका।
"हां बेटा, सही कह रहे हो..!"
काका, ये बिजली की सुविधा, सड़कें, तो ठीक है, इतना तो होना चाहिए ही था, लेकिन कुछ पेड़ तो बचाने थे, कम से कम घरों में आंगन तो बच ही जाते। सब शहर जैसा कैसे हो गया।
"पता नहीं बेटा क्या हुआ..?
पहले गांव से बच्चे शहर गये और अब शहर गांव में आ गया।"
आप क्या कर रहे हो काका आजकल?
बेटा गांव के कुछ खेत बचे हैं उन्हीं में कोई मजदूरी कर लेता हूं।"
एक काम करोगे काका?
"हां बेटा बताओ..!"
आप इस घर की चाबी रखो, यहीं रहो, और इस आंगन को पेड़ों से भर दो, शहतूत, अमरूद, आम, ऐसे पेड़ जिनसे बच्चे तोड़कर फल खायें।और मां ने जो फूलों की क्यारी बनाई थी उन्हें फूलों से भर दो।
मैं आपके खाते में हर महीने सैलेरी भेजूंगा, बस आपको यही करना है, कोई जरूरत नहीं इस उम्र में मजदूरी करने की, आराम से रहो।
क्या बात कर रहे हो बेटा?"
एकदम सही बात कर रहा हूं, आप मुझे अपने खाते का नम्बर और मोबाइल नम्बर दो, मैं आपको फोन करता रहूंगा। और हर महीने दो महीने यहां आता रहूंगा।
"लेकिन बेटा..! इस तरह बिना कुछ काम करें.. मैं तुमसे पैसे कैसे ले सकता हूं..!"
संकोच मत करो काका, बेटा भी कहते हो और ....! और फिर काम तो ये बहुत बड़ा है पेड़ लगाना, उन्हें संभालना .!
और हम यहीं नहीं रूकेंगे काका,
मैं जब भी आऊंगा, आसपास की कुछ जगहों पर भी हम पेड़ लगायेंगे, आप शुरुआत तो करों।
जो जरूरी सामान चाहिए अभी मुझे बताओ मैं लाकर देता हूं।
इस तपती धरती के कोने को ठंडा रखने के लिए भी मैं कुछ कर सकूं तो मेरे मन को शांति मिलेगी काका, ये कहते हुए मैंने काका की आंखों में देखा, मुझे वहां भी शांति महसूस हुई।
अब मन की तपिश थोड़ी कम हुई, महसूस हुआ जैसे मां मुस्कुरा रही हो कि उनके आंगन की क्यारियां फिर से फूलों और तितलियों से सज जायेंगी। पेड़ों पर गौरेयां फिर घोंसला बनायेगी।
मैंने मां के फोटो की तरफ़ देखकर कहा..!
"ये जल्दी होगा मां " और मैं खुशी खुशी काका ने जो सामान कागज़ पर लिखकर दिया, वो लेने चल दिया।