जलती हुई शायरी

Published By Paperwiff

Sun, Dec 11, 2022 11:36 PM

आज हम बात कर रहे है डाॅ. बशीर बद्र की इनका जन्म 15 फ़रवरी सन् 1935 में कानपुर में हुआ।

डाॅ. राहत बद्र ने डाॅ. बशीर बद्र की किताब मुसाफ़िर में लिखा कि ग़ज़ल मतलब "डाॅ. बशीर बद्र"। इस बात में वैसे कोई दो राह नहीं उनका सुख़न को पेश करने का अंदाज़, लफ़्ज़ों को शायरी में ढ़ालने का फ़न, अलग-अलग ज़बान के दायरों को तोड़ कर अपनी बात आसानी से सामाईंन को पेश करना ऐसा जादू है जो हर एक शख्स नहीं कर सकता। 

आज मैं आपको उनकी शायरी या उनकी ज़िन्दगी के बारे मे नहीं सुनाने वाली बल्कि एक ऐसी कहानी सुनाने वाली हूँ जिसे मैं मानती हूँ कि ये कहानी ही डाॅ. बशीर बद्र की पूरी ज़िन्दगी है।

कहानी का नाम है शायर का जलता घर और इसे लिखा है "हिमान्शु प्रदीप कालिया" ने।

शायर का जलता घर

एक शायर था मोहब्बत की नज़्मे ग़ज़लें लिखता था कौमी रवादारी गंगा जमुनी तहज़ीब का पैगाम देता था

पर यह बाते कौमी ठेकेदारों सियासतदानो को नागवार गुज़रनी थी ही

अदब की पाकीज़गी अक्सर वोटो की फसले बोने वाली नस्लों को फूटी आँख नहीं भाति

एक रात उन्मादी भीड़ ने दंगे कराकर शायर के मकान मे आग लगा दी

शायर तो खैर बच गया किसी तरह पर ज़ालिमों ने शायरी की चिता जला दी

एफ़.आई.आर. हुई पुलिस ने चश्मदीदों से पूछा शायर का घर जला किसने देखा

भीड़ की शक्ल कहाँ होती है जनाब ना ज़ेहन ना दिल ना ईमान

भीड़ ने शायर के लॉन मे लगी हरी डूब को अपने जूतों से कुचला था

सुना है घास की बद्दुआओ से वो जूते कुछ दिन मे सड़ गए

पर उस लॉन मे अब भी कुछ नहीं उगता

घर तो खैर दोबारा बन सकता है मगर

वो मशालो से निकली आग की लपटों ने सिर्फ ईट गारे से बने मकान को नहीं जलाया बल्कि

वो अलमारी वो दराज वो मेज़ वो कलम

जिसमे ज़िन्दगी भर के जज़्बातो को शायर ने उढ़ेल कर नज़्मे ग़ज़लें लिखी थी वो इल्म वो ख़ुलूस वो मोहब्बत वो रिश्ते वो एहसास वो ख्याल वो माहौल वो जज़्बातो का उबाल कहाँ से लाए वो शायर जो ज़ेहन के ख्याल को शायर की शफ़्फ़ाक़ उंगलियों से होते हुए कलम से बयाँ हो सके |

उस शायर की ज़ेहन की हालत क्या रही होंगी जब उसने यह शेर लिखा होगा

"लोग टूट जाते है एक घर बनाने मे

तुम तरस नहीं खाते बस्तिया जलाने मे "

वो शायर उस हादसे के बाद डिप्रेशन मे चला गया

तभी उसकी ज़िन्दगी मे एक लड़का आया 20 साल का, उसने हादसे से कुछ रोज़ पहले ही शायर की बेटी सबा से शायर की डायरी एक रात के लिए मांग ली थी और ऊपर वाले का करम देखिये उस लड़के ने वो सारी शायरी कण्ठस्त कर ली थी उसको 95 फ़ीसदी हूबहू नज़्मे याद थी

वो रोज़ शाम शायर के साथ बैठता उनकी लिखी नज़्मों ग़ज़लों को याद दिलाता इस तरह उसने 40-50 जल चुकी नज़्मों को दोबारा जिया दिया और शायर को जीने की वजह दे दी | वो लड़का उस शायर का हाथ पकड़कर ना जाने कितने मुशायरो मे ले गया

यकीन मानिये अगर कुरान पुराण गीता रामायण पढ़ने का पुण्य होता होगा कही तो वह सब इस लड़के को लग गया होगा |

वो मशहूर शायर बशीर बद्र साहब है और वो लड़का कोई और नहीं मशहूर फ़िल्म डायरेक्टर राइटर म्यूजिक डा"विशाल भारद्वाज है |अगर कही अक़ीदत मुरीद शाग़िर्दगी इस ज़माने मे ज़िंदा है तो वो बशीर बद्र साहब साहब और विशाल भरद्वाज जी के रिश्ते मे है |

वो शायर अब वो शहर मेरठ छोड़ के भोपाल मे बस चुके है और अब याद्दाश्त भी खो चुके है

भोपाल ही उनका वो घना जंगल है जहाँ उन्हें सुकून मिलता है

"मुझे सुकून घने जंगलो मे मिलता है

मैं रास्तो से नहीं मंज़िलो से डरता हूँ "

वो शायर जो पूरी रात महफ़िलो कि शान होता था मुशायरे लूट लेता था पौ फटने तक कद्रदान जिसकी आवाज़ सुनने का इंतेज़ार करते थे अब उसको बोले कई साल हो गए और नींद ना आने कि बीमारी से झूझ रहा है ।

ग़ज़ल का मतलब बशीर बद्र और इन्ही की लिखी हुई ग़ज़लों को जला दिया गया था। उस हादसे के बाद उनकी रूह तक इस ग़ुबार मे आज भी जल रही होगी।

-फ़िरदौस (Paperwiff)