क्या शब्दाहुति दूं

क्या शब्दाहुति दूं

Originally published in hi
Reactions 2
361
Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 06 Oct, 2021 | 1 min read
Prem Bajaj

उनकी आज़ादी के लिए सदियों पहले प्रारंभ हुए यज्ञ में शब्दाहुति क्या दूँ, 

निरंतर धूनी जलती हो जिसकी रीढ़ पसीजते उम्र की वेदी पर बलि चढ़ते। 


विमर्श के समिध कब तक जलाऊँ आग के बदले जब धुआँ ही उठता हो। 

भर जाती है किरकिरी आँखों में कहानी नारी की सुनते ही।


अँजुरी भर भरकर अश्कों का घी बहाया हकदार नहीं कहलाई फिर भी मीठा फल चखने की, 

और कितनी बलि लेगा ये महायज्ञ कमज़ोर कहलाने वाली कुछ वामा की।


उठे कोई आग ऐसी दावानल सी ख़ाक़ कर दे जो आँखों से उठती नारी के प्रति नफ़रत को,

बहे कोई आबशार मीठा जो धो डाले दमन से उठे दाग को।  


कहने को बहुत कुछ बदला है वक्त के चलते, बस नहीं बदली कुछ नारियों की किस्मत जिनकी लकीरों में मर्दाना अहं की बेड़ी पड़ी है।


मत इंतज़ार करो उम्मीद की लौ जलाए उस आहटहीन पथ पर बैठे जिस पर सन्नाटे की जंजीर पड़ी है, 

दूर है वो भोर उजली जिसकी आस में कुछ स्त्रियों की टकटकी लगी है।

#भावु

2 likes

Published By

Bhavna Thaker

bhavnathaker

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.