रियालिटी शो कितने रियल

रियालिटी शो कितने रियल

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 13 May, 2022 | 1 min read

ज़िंदगी की आपाधापी से निढ़ाल इंसान चंद पलों का आनंद पाने टीवी और फ़िल्मों का रुख़ करते है। मस्त सोफ़े पर तन को फैलाकर, पैर पर पैर चढ़ाकर मनोरंजन की दुनिया में खो जाते है। पर कई बार हम कुछ सीन या रियालिटी शो में किसी प्रतिभागी की भावपूर्ण और दु:खद कहानी सुनकर देखकर इमोशनल हो जाते है, कुछ महिलाओं की आँखें नम हो जाती है तो ज़रा रुकिए, सुनिये ये जो मनोरंजन का माध्यम है उसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं होती। फ़िल्म या टीवी शो देखकर बस हल्का सा फ़्रेश हो जाईये दिमाग पर ज़ोर मत डालिए। हम फ़्रेश होने के लिए बैठते है टीवी के सामने तो इमोशनल में बहकर दु:खी क्यूँ होना।

इनका तो काम ही है दर्शकों की भावनाओं के साथ खेलना तभी तो शो का टीआरपी आसमान छुएगा। गर हम शो के भीतर तथ्य ढूँढने जाएंगे तो ओंधे मुँह गिरेंगे, क्यूँकि भारत में सारे के सारे रियलिटी शो स्क्रिप्टेड होते है। वास्तविकता से इसका कोई लेना-देना नहीं। अपने शो को चलाने का फंड़ा होता है चैनल वालों का। दर्शकों की रग को समझ चुके प्रोड्यूसर, डायरेक्टर वही परोसते है जो बाज़ार में चल रहा होता है, दर्शकों के दिमाग को आकर्षित करने वाले हर मसाले ड़ालकर इमोशनल तड़का लगाते है।

सीरियलों के सारे किरदारों को और रियालिटी शो के प्रतिभागियों को इस हद तक स्क्रिप्टेड बना दिया जाता है कि वे दर्शकों के दिलों दिमाग पर छा जाते है।

कहाँ होता है किसी घरों में ऐसा जो आजकल सीरियलों में दिखाया जाता है। अनैतिक संबध, धोखा, कत्ल, षड्यंत्र, प्लास्टिक सर्जरी वगैरह और वेब सिरीज़ों की बात करें तो परिवार के साथ बैठकर देखने के लायक ही नहीं होती। सेक्स का खुलेआम प्रदर्शन और बिना वजह माँ बहन वाली गंदी गालियों का अतिरेक सुनकर, देखकर ख़याल आता है की समाज कहाँ जा रहा है। 

एक ज़माना था जब दूर दर्शन के साथ कुछ गिनी चुनी चैनलों का उद्धव हुआ था, तब जो सीरियलें बनती थी वो वाली बात आज के एक भी शो या सीरियल में नहीं। बुनियाद, हमलोग, नुक्कड़, श्रीमान-श्रीमति, देख भाई देख और रामायण, महाभारत जैसी सीरियलों के साथ अनू कपूर और पल्लवी जोशी की अंताक्षरी और सिद्धार्थ काक और रेणुका शहाणे की सुरभी दर्शकों के दिमाग पर एक छाप छोड़ जाती थी। आज भी सबको याद है।

पर आज तो बिग बाॅस जैसे रियलिटी शो समाज को न जानें क्या संदेश देना चाहता है वही समझ में नहीं आ रहा। प्रतिभागियों के बीच तू तू-मैं मैं, झगड़े और एक दूसरे को नीचा दिखाने वाली हरकतें जैसे प्रमाणिकता और पारदर्शिता जैसा कुछ बचा ही नहीं। इंडियन आइडल और डांस शो में भी सब फ़िक्सिंग लगता है, जैसे चैनल वालों ने तय किया हो कि इसे ही विजेता बनाया जाए। डांस शो या टेलेंट हंट वाले शो में गरीब और झोंपड़ पट्टी के बच्चों को सिलेक्ट करके ऐसी कहानियां पेश करते है कि दर्शकों की सारी हमदर्दी बटोर ली जाए। 

साथ ही ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसे बड़े और मशहूर रियालिटी शो पर भी आरोप लगे थे कि इस शो में प्रतिभागियों के संघर्ष की झूठी कहानियां दिखाई जाती हैं। ऐसा दर्शकों की सहानुभूति पाने और शो की टीआरपी बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा रकम ज्यादा होने पर ऑडियंस पोल में इधर-उधर करने के आरोप भी इस शो पर लगे थे।

शो के जज को भी कहा जाता है नकली आँसू बहाने के लिए, या कभी किसी सेलिब्रिटी मेहमान को निमंत्रित करते है तो उनसे भी प्रतिभागियों की झूठी तारीफ़ और वाहवाही करने को बोला जाता है। और वह करते भी है जिनके लिए उनको अच्छी खासी रकम जो दी जाती है।

चलो मान लेते है ये रियालिटी शो सबको मौका देते ह, पर शो जितने वाले एकल दुकल आगे बढ़ पाते है बाकी कुछ ही समय में न जानें कहाँ गुम हो जाते है। सोचिए उन बच्चों के दिमाग पर क्या असर पड़ता होगा जो एलिमेंट हो जाते है या हार जाते है। सच में कुछ बच्चें अवसाद के भोग बन जाते है।

रियलिटी शो कोई भी हो उसमें आप वही देखते हैं जो आपको दिखाया जाता है। यानी शो बनाने वाले रियलिटी के नाम पर एक अधूरा सच हमारे सामने रखते है वास्तविकता से परे। पूरा कैसे रख सकते हैं? वो शो है जिसका एक निर्धारित समय होता है। उस एक घंटे में आकर्षित करते दर्शकों को घसीट ले जाते है। शो को इस लायक बनाना होता है जिसमें टीआरपी का ध्यान रखा जाता है। क्योंकि अगर टीआरपी न रही, तो ऐसे शो टीवी पर दिखाए ही नहीं जाएंगे।

इसलिए रियलिटी शो स्क्रिप्टेड भी होते है थोड़े इमोशन्स का तड़का भी होता है, थोड़ी गोलमाल भी होती है और कुछ हद तक झूठ भी परोसा जाता है, क्योंकि दर्शकों को भी यही चाहिए होता है। एक शो को परफ़ेक्ट बनाने के लिए टीवी का बिज़नेस ऐसे ही चलता है, ये भी एक रियलिटी है। इसलिए ज़्यादा सोचिए मत सिर्फ़ देखें और आनंद उठाकर चैनल वालों को भी दिखा दीजिए कि ये पब्लिक है भैया सब जानती है। 

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

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