"चलो ना कुछ अर्थ निकालते है तुम्हारे बोल से"
कितना प्यारा बोलते हो तुम एक तीखे से लहजे में समुन्दर सी गहराई को घूँटते हुए आवाज़ की धार को तेज करके कश भरते सिगरेट की..!!
आदेशात्मक आवाज़ से थरथर्राती मैं सुनती रहती हूँ,
मुझे देखते ही तुम्हारे दिमाग की संदूक से आग उठकर आँखों में ठहरती है..!!
मेरी कौन सी गलती पर कब क्या कह जाते हो बिना सोचे समझे,
तुम तो हवा में सिगरेट के धुएँ का छल्ला उछालकर जैसे कुछ हुआ ही नहीं एसे हल्के हो जाते हो,
मेरी रूह कतरा कतरा बन बिखर जाती है..!!
तुम्हारे अस्तित्व से ओरा बहती है मेरे प्रति गुस्सा, नफ़रत, ओर तिरस्कार की वो भी बिना कोई वजह,
कोई मनचाही खुशबू नहीं बहती, बस जब तक झाड़ नहीं लेते एक शिकन सिमटी रहती है तुम्हारे मुखौटे पर..!!
पर झूठे मोतियों वाली वो रंग बिरंगी शब्दों की माला पहनाते रहो ना मेरे मुर्झाए वजूद को कभी-कभी, अच्छा लगता है..!!
किसी ओर की मौजूदगी में जो नर्म लहजा तुम्हारी ज़ुबाँ पर आन बसता है ना उसे मैं बावरी सी ढूँढती हूँ,
किसीका हमारे घर आना मुझे यूँही नहीं भाता..!!
"आज करीब बैठो ना"
तुम्हारे मर्दाना अहं से उभरते एक-एक शब्दों का चलो ना अर्थ ढूँढते है जो बिना वजह फूट पड़ते है इस मासूम पर।।
(भावना ठाकर)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice💙
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