कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं

कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 06 May, 2022 | 1 min read

"कहो कैसे कह दूँ"

जिस कोख में नौ महीने रेंगते मैं शून्य से सर्जन हुई उस माँ की शान में क्या लिखूँ, लिखने को बहुत कुछ है पर आज बस इतना ही लिखूँ कि,


लिखी है मेरी माँ ने अपनी ममता की कलम से मेरी तकदीर, रात-रात भर जाग कर मेरी ख़ातिरदारी में अपनी नींद गंवाई है कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं..


सिंचा है अपने खून से मेरी नस नस को, सहा है मेरी लातों को हंस-हंसकर जन्म पर मेरे तोड़ा है तन उस माँ की ममता के बदले कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं..


मेरे हंसने पर हंसी मेरे रोने पर तिलमिलाई है, मेरी माँ के उत्कृष्ट व्यक्तित्व का मैं आईना हूँ कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं..

 

तराशा है मेरी शख़्सियत को संस्कारों के गहनों से आँचल की छाँव देते रक्षा है ज़िंदगी के थपेडों से, कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं..

 

अपने हिस्से के निवालों से पाल पोष कर बड़ा किया उस माँ के अहसानों को भूलकर कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं..

 

हर ग्रंथों का सार समझाते मेरे विचारों को समृद्ध किया, मेरे हर हुनर में हौसलों का तेल सिंचकर मुझे काबिल बनाया कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं..


मैं जो कुछ हूँ अपनी माँ की बदौलत हूँ, संसार रथ की सारथी ने मुझे नखशिख तराशा जब मैं अपने आप में काबिले तारीफ़ हूूँ तो कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं।

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

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