बातुक (भाग 1-6)

अलग अलग समस्याओं पर कहानी

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Ashutosh kumar  Jha
Ashutosh kumar Jha 18 Jul, 2020 | 1 min read


बातुक भाग-1

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एक था बातुक

उसे दोस्ती थी 

राज कुमार से

वह जब कहीं जाता

बातुक को अपने साथ ले जाता।

एक दिन वे दोनों

जा रहे थे

धने जंगल सून-सान

विरान राहों पर

राजकुमार ने पूछा?

बातुक कुछ बोलो!

ऐसे चुप क्यो हो?


बातुक कुछ सोचकर

बोला! राजकुमार-


"हम तुम एक दोस्त ठहरे

फिर भी हमारी दूरियाँ है

तुम्हारी जिम्मेदारी अलग

और हमारी मजबूरियाँ है"


राजकुमार को कुछ समझ 

नही आया।

अतः राजकुमार ने समझाने को कहा?


बातुक बोला !

"तुम राजकुमार हो

राजा तो एक दिन बन ही जाओगे

मै ठहरा एक आम आदमी

मजबूरी का मारा हुआ 

तेरे सिवा कहा जाएँगे"



राजकुमार को यह बात अटपटी लगी।

अतः राजकुमार चुप रहे ।


"बातुक समझ गया था

राजकुमार नाराज हो गये है

लेकिन बातुक तो सच्चाई 

बोला था जो कडवी थी"


यही तो होता आया है

जो जितना बडा है वह

और बडा हो जाता है।

पीढी-दर-पीढी होता चला जाता है

ये किसी राजधराने की बात हो या

राजनेताओ की या अमीर घरानो की

अपनी बात ही सब करते है 

लोगो की कौन सुनता है।

                 

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बातुक भाग-2

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सभी लोग नववर्ष की तैयारी में लगे हुए थे।राजकुमार अपने मित्र बातुक से मिलने गया वह बैठा पता नहीं किन ख्यालो में गुम था। 

राजकुमार ने पूछा? बातुक! कहाँ खोए हुए हो? 

बातुक बोला ! 

राजकुमार ! यह नया साल, हर वर्ष यू ही आता है और आएगा लेकिन बीते हुए वर्ष का अनुभव हमें आनेवाली समय से परिचित करवाएगा।यही सब सोच रहा हूँ ।

वाह! 

तू तो कवि बन गया बातुक?


तो वो कहने लगा नही राजकुमार! जानते हो?

बस बैठकर मैं अपने उलझनों खट्टे मीठे एहसासों,उतार-चढ़ाव से भरी ज़िंदगी के लिए सोच रहा हूँ। कैसे इतने साल देखते ही देखते बीत गये?कैसे मिलने वाले मिले और बिछड गये? कैसे हमें जीवन की प्रेरणा गुजरे हुए वक्त ने दी?


राजकुमार बोला तू कवि की तरह ही बात करेगा या कुछ करेगा भी?


उसने कहा! राजकुमार यह जो बीत रहा है इसमें न जाने कितनी नई चीजें होगीं नए लोग, नई जगह, नये पहचान, पर पुरानों से बिछडना हमें दुखदायी कर रहा जिस तरह चंद लम्हो में यह वर्ष बीत जाएगा जैसे एक दिन मेरे पिताजी और चाचाजी बीते वर्ष की भाँति चले गये ऐसा क्यूँ होता है? क्या हर वो चीज जो समय के साथ चलती है एक दिन अतीत के पन्नो में दर्ज होगी ?हम तुम सब ! ऐसा कयों है?


राजकुमार के लिए बातुक को समझाना मुश्किल हो रहा था वो आज इमोशनल लग रहा था और राजकुमार को भी उसकी बातों ने झकझोर दिया इसलिए सुनने के सिवा कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था इसलिए चुप रहना ही राजकुमार के लिए उचित था।


तो क्या लोग भी गिनती करने के लिए होते है पर जीते जी कभी ऐसा महसूस नही होता एक छोटी सी घटना कैसे पूरा जीवन बर्बाद कर देती है कभी हँसाती है तो कभी रूलाती है बीते हुए हर लम्हे तडपाती क्यो ? कभी वक्त गुजारना भी मुश्किल होता है तो कमी पता ही नहीं चलता।लोग एक मुसाफिर है तो वर्ष उनकी बाॅगी सभी को एक ही स्टेशन जाना होता है फिर लोग इतना झूठ फरेब मक्कारी से भरे क्यू होते है?लेकिन अच्छे भी है मौसम की तरह औरों की खुशी से खुश होते है बसंत की तरह,कुछ जलन शील है पतझड की तरह कुछ बुद्धिहीन है बरसाती नदी की तरह एक ही धरती पर कितने तरह के लोग है पर सबका मंजिल तो एक ही है।आशाएँ और निराशाएँ जीवन के दो पहलू है पर आशा से ही बसंत है और निराशा से पतझड़ क्योंकि पतझड़ के वगैर प्रकृति कभी रूपवान नहीं हो सकती उसी तरह मनुष्य भी निराशा से ही आशा की उम्मीद करता है शायद बातुक सही कह रहा था, पर राजकुमार को तो नये साल के जश्न का इंतजार था।उनके समझ में ये बाते कहाँ आने वाली।

                

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बातुक भाग-3

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बातुक की बाते कड़वी जरूर होती थी लेकिन राजकुमार सोचने के उपरान्त अक्सर कह देते थे बातुक तुमने ठीक कहा बातुक इतने में खुश हो जाता था।

एक दिन दोनो चलते-चलते अपनी राज्य की सीमा से बाहर चले गये।बातुक की नजर झाड़ियो पर गयी।वहाँ एक किशोरी की लाश थी राजकुमार ने कहा बातुक यह कैसे हुआ?

बातुक बोला!

  

वहशियों का मन डोला

फूल सी नाजुक किशोरी को

मसल कर इन झाडियो में छोडा।


राज काज सब राम भरोसे

जिसे देखो जेब टटोले।


बिना नोट के न रपट लिखते

पकडे भी जाते तो

साक्ष्य के अभाव में

छुट जाते ।


किशोरियो की लाशें आये दिन

झाडियो मे पाये जाते।।


खबरो की सच्चाई भी

नापतौल कर दिखाई जाती।


राजा को हर बात न बतायी जाती

नजर पर जाती जब राजा की

लिपा पोती कर दी जाती।


थोडे जुलुस प्रदर्शन होते

थक हार कर जनता भी

सारा गम वक्त के साथ भूल जाती।


सृष्टि पर आने से पहले ही

जाँच होता फिर भी उन पर

अत्याचार होता।


जो सामने आपके है

वही कहानी है वही कहानी है।


राजकुमार तुम्हारे कविता ने तो मेरी समझ ही भूला दी समझाकर कहो

बातुक बोला!राजकुमार ये अपनी रियासत नहीं है यहाँ के नौजवान मनचले हो गये है आज अन्याय तंत्र इस रियासत पर हावी है औरतो और किशोरियों पर ज्यादा जुल्म हो रहे है सिपाही भी बिना पैसों के रपट नहीं लिखते दुराचारी साक्ष्य के अभाव मे छुट जाते है इसलिए मै बातुक आपको कविता से ही समझाने का कोशिश कर रहा हूँ।

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बातुक भाग-4

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एक दिन राजकुमार ने

बातुक से पूछा?

बातुक! तुम इतना कविता

भरे अंदाज में बाते कैसे कर

लेते हो?

बातुक बोला!

राजकुमार अपनी रियासत में

एक कवि है मै उनके पास 

अक्सर जाता हूँ

वही उनकी बातो को सुनकर

थोडा बहुत बोल लेता हूँ

राजकुमार ने कहा!

बातुक मुझे भी ले चलो

अतः बातुक राजकुमार 

को लेकर कवि के घर आये

राजकुमार ने पूछा?

बताईये आपका नाम क्या है?

कवि कविता भरे लहजे में बोला!


मैं एक कवि अलवेला

रहता हूँ जहाँ में अकेला

रचनाओं का लगा अंबार

जल रहा मेरे अंदर अंगार।


बताओ राजकुमार!

कैसे आना हुआ?

राजकुमार बोला!


राजकुमार कवि को

देने लगा प्रलोभनो

का उपहार।

पहला वादा किया

राजकवि बनाने का

दूसरा किया 

माली हालत सुधारने का।

तीसरा किया 

अकेले नही रहने दूँगा?


लेकिन बदले में पूछ लिया

बताओ कवि कैसे बनते है?

पहले बताने का।


वह कवि बोला!

धधक रहे अंगार

अब जाओ तुम

बदले की लेन-देन

करने से बच जाओ तुम

जो माँग रहे है

वो क्या देंगे मुझको

आओ कवि का पाठ

समझ जाओ तुम।

तुम राजकुमार होकर भी

माँग रहे मुझसे

मुझे कुछ नही चाहिये

कविराज बन जाओ तुम

हालत हमारी और कितनी

अच्छी होगी

जब सामने राजकुमार 

और मेरी कविता होगी

मै कहाँ अकेला हूँ

शब्दों के शहर में

मै एक कविता हूँ।

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बातुक वचन मास्क जरूरी -(5)

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एक था बातुक! 

उसे दोस्ती थी 

मिहनती से।

वह जब कहीं जाता? 

मेहनती को अपने साथ ले जाता।

एक दिन वे दोनों

जा रहे थे।

धने जंगल सून-सान

विरान राहों पर! 

मेहनती को आरामदायक मिल गया

मेहनती ने पूछा?

बातुक से? 

मैं मेहनती हूँ 

और ये आरामदायक 

मुझे काम करने पड़ते

जबकि ये आराम करता है।

ऐसा क्यों है? 


बातुक बोला!

यह तुम्हारा कर्म है 

अलग अलग समस्याओ की कहानी

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और तुम उसे करते हो।

यह उसका भी कर्म है

लेकिन वह नही करता।

इसकी दंण्ड उसे अवश्य मिलेगी? 

मेहनती बोला! कौन देगा? 

खुद प्रकृति देगी।

क्योंकि यह प्रकृति कर्मवीरो की है।

कैसे? 

यह समय आने पर पता चलेगा।

मेहनती बोला! कब आएगा वह समय? 

कभी भी आ सकता है? 

जंगल में एक दुर्गंध फैल रही थी

जो किसी विषैले गैस की भांति 

असर कर रही थी।

मेहनती ने तुरंत पत्तो के तीन मास्क बनाये।

एक अपने पहन ली, दूसरा बातुक को दिया, बातुक ने भी पहन ली, तीसरा आरामदायक को दिया लेकिन आराम दायक ने नही पहनी? उसने सोचा यह थोड़ी देर मे खुद समाप्त हो जाएगा? कुछ समय पश्चात आरामदायक को सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी, और वह जहरीली गैस उसके शरीर में फैल चुका था वह छटपटाने लगा फिर मिहनती ने उसे मास्क पहनाया और वैद्य के पास ले गया जहाँ उसका इलाज चल रहा है।लेकिन आरामदायक की जीवन शैली भी उस घटना के बाद बदल चुकी है अब वह सबकी सुनता है और बात भी मानता ह

आप भी मिहनती की तरह बने! मास्क का प्रयोग करे। जहरीली गैस और संक्रमम से बचें। सरकार के द्वारा जारी नियमों का पालन करें। आरामदायक कतई न बनें?            

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आत्म हत्या का कारण 

बातुक-संवाद (भाग-6)

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बातुक और रोजकुमार की दोस्ती प्रगाढ़ हो चली थी। ऐसा लगता था, मानो दो जिस्म एक जान हों।कोई भी समस्या होती तो राजकुमार बातुक से अवश्य पूछते।एक दिन राजकुमार ने बातुक से पूछा? 

 

बातुक! लोग आत्म हत्या क्यों इतनी ज्यादा करने लगे हैं?


बातुक कुछ समय तो सोच में पड़ गया जबाब तो देना था, वो भी राजकुमार के मन के अनुरूप तो वह सोचकर बोला? 


कई कारण है आत्महत्या के

कहीं गरीबी तो कही अमीरी 

कोई किसान तो कोई सेलेब्रिटी

लेकिन सभी कारण नस ढीली।


राजकुमार झुंझला गये अर्थात उन्होंने कहा ये क्या बोला हमें तो तुम्हारी भाषा कभी सरल नहीं लगती।सरल भाषा में समझाकर कहो।


हजूर! यब आत्म हत्या करने वाले कोई भी हो सकते है। पर वे दो ही तरह के होते है गरीब या अमीर।गरीबी से तंग आकर तो कोई अमीरी से लेकिन आत्म हत्या की वजह एक ही होती है वो है मानसिक कमजोरी जिसे डिप्रेशन पागलपन अवसाद जो भी कहें ।ऐसी स्थिति किसी भी इंसान के साथ हो सकती है ज्यादा खुशी होने पर या ज्यादा दुखी होने पर।


इससे बचने का उपाय क्या है बातुक? 


बातुक बोला! 


वृहत की  चाहत छोडिए

संतोष की आदत डालिए

धन  मन  त्रिया  चरित्र 

से  दूर   ही   भागिये।


अर्थात ज्यादा बनाने का आदत त्यागना ही होगा जितना मिल जाय उसमें संतोष करना परम आवश्यक है। धन की जिज्ञासा छोड़कर कर कर्म में मन लगाना होगा।जिससे आपके मन पवित्र रहेंगे और मन स्वस्थ रहेंगे। चरित्रहीन से प्रेम प्यार चरित्रहीन स्त्री, चरित्रहीन लोगों से बचना होगा। तभी इस डिप्रेशन रूपी अवसाद से बचा जा सकता है वर्ना ऐसे ही नित आत्महत्या की रस्सी पीछा कर निगलती जाएगी जीवन को।


राजकुमार बोले ! 


वाह बातुक हम तुम्हारी बातें सुनकर अति प्रसन्न हुए।


                 आशुतोष

                 पटना बिहार 


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Ashutosh kumar Jha

ashutoshjha

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