हे सुशांत!

मेरी यह प्रथम कविता स्वर्गीय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत को समर्पित है

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ARUN SHUKLA Arjun
ARUN SHUKLA Arjun 17 Jun, 2020 | 1 min read

हे सुशान्त!

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नहीं हो रहा है यकीन, मन दुख से बहुत भरा होगा।

कुछ तो बात रही होगी, वो जिससे बहुत डरा होगा।

यूं मृत्यु-वरण कर लेना कोई फिल्मी सीन नहीं होता,

आज मृत्यु से पहले भी वह सौ - सौ बार मरा होगा।

धन दौलत की कमी नहीं थी बेशक नाम कमाया था,

पटना से बॉलीवुड तक वो निज परचम लहराया था।

युवा वर्ग के दिल दिमाग में बजता वह इकतारा था।

फिल्म जगत में तो जैसे वो उगता एक सितारा था।

फिर ऐसी क्या वज़ह रही, क्यों मन उसका था उद्विग्न?

डिप्रेशन और अकेलेपन में नहीं रह सका वह निर्विघ्न।

हे! मन के मेरे सुशांत तुम, क्यों इतने कमजोर हुए?

सबके दिल में बस करके तुम खुद इतने क्यों बोर हुए?

हे राजपूत! तुम जाते -जाते सबको सबक सिखाया है।

दवा अकेलेपन की अब तक नहीं कोई कर पाया है।

तपना सीखो, लड़ना सीखो जीवन तभी हरा होगा।

बिना तपन के आखिर सोना कैसे कभी खरा होगा?

आज मृत्यु से पहले भी, वह सौ सौ बार मरा होगा।

अरुण शुक्ल अर्जुन 

रत्यौरा करपिया प्रयागराज

(पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)

अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि!??

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