क्योंकि औरतें पगार नहीं लेतीं

औरतों की कहानी एक औरत की जुबानी

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 04 Jun, 2020 | 1 min read
#Social issues




क्योंकि औरतें पगार नहीं लेतीं,

इसलिए मोल नहीं होता उनकी रहमतों का

मखमल सी मुुलायम हथेलियों से 

हथेलियों जैसा ही चिकना और चमकदार बनाती हैं आपका घर 

वो घर जो कभी उसका अपना न हुआ 

जहाँ गाहे बगाहे एहसास कराते हैं आप उन्हें पराए होने का 

सजाती हैं आपके ख़्वाबगाह को अपनी धड़कनों से 

अपने दिल के कतरों से रौशन करती हैं आपकी उम्मीदों के दीयों को 

अपनी मुस्कान से मिटाती आपकी पेशानी की सिलवटों को 

कि आपके अपनों को बना लेती हैं आपसे भी ज़्यादा अपना

 लम्हा दर लम्हा दिल में दफ़न करती जातीं मायके की यादें 

ज़िम्मेदारियाँ हैं ये मेरी,ये लोग हैं मेरे 

आपके अपनों को बना लेती हैं कुछ यूँ अपना

कि भूल जाती हैं अपने मायकेेे की पीर 

अपनी माँ के हाथों की सोंधी सी खीर 

कि अब उन्हें आपके घर आने से पहले 

आपके लिए गरमागरम खाना जो बनाना है,

आपकी थकावटों को दूर करने को 

अपनी बाँहों का हार जो पहनाना है 

धीरे धीरे दूर होती जाती इनके मायके की दहलीज 

कि आपका घर होता जाता है इनको अजीज

दफ़नाती जाती हैं दम-ब-दम ख़्वाहिशें अपनी 

घोंटती जाती गला अपने अरमानों का

 इनके काम के घंटे कभी तय नहीं होते 

आहिस्ता आहिस्ता खुरदरी होती जाती हैं इनकी हथेलियाँ भी

 और छलनी हुए मन पर बेपरवाही की पर्त सी जम जाती है 

और आपको लगता है कि ये बदल गई हैं 


तानों की तनख़्वाह और ख़ुद को साबित करने की जद्दोज़हद में

फ़ना होती जाती हैं ख़ुद भी, खर्च करती हुई ख़ुद को 

लड़की से औरत ,औरत से बीवी, और बीवी से माँ के सफ़र में अक्सर खो देती हैं वजूद अपना 

वजीफ़े में मिलते हैं नाशुकराने आपके,

तानों से छलनी करते हुए उन्हें नज़रअंदाज़ करते जाते हैं

 आप उनकी नेमतों को

 क्योंकि इन नेमतों का कोई मोल नहीं होता 

क्योंकि औरतें पगार नहीं लेतीं।


मौलिक एवं स्वरचित

अर्चना आनंद भारती

आसनसोल, पश्चिम बंगाल


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