जब रिक्त हृदय हो जाएगा
तूणीर तुम्हारे जब छूटें
श्रद्धा का मैं इक घट हूँ प्रिय
आशा मेरी ये ना टूटे
मैं प्रेम प्रेम कहती जाऊँ
तुम घृणा घृणा कहते रहना
हम - तुम दोनों दो ध्रुववासी
मुश्किल अपना संग संग रहना
मैं अपने मन के भावों को
यूँ ही तुमपर बरसाऊंगी
मैं पीड़ा का यह गहन ज्ञान
प्रिय, तुमसे ही तो पाऊँगी
एक दिन जब बींध चुकोगे तुम
अपने शर से ये अंतस्थल
इक स्रोत प्रेम का फूटेगा
भर जाएगा यह मरूस्थल
रिक्तता कितनी भी क्रूर रहे
भरना तो उसको पड़ता है
हो चाहे जितना दग्ध ज्वाल
मरना तो उसको पड़ता है
तब शेष कुछ न रह जाएगा
न घृणा और न मैं और तुम
केवल कुछ पुष्प बिछे होंगे
कहलाएंगे कानन कुसुम
मैं कष्ट प्रसूता धरती हूँ
रौंदी चाहे जितनी जाऊँ
श्रद्धा का यह अंचल विशाल
तुमको पूजूं,तुमको चाहूँ
ईश्वर अगाध श्रद्धा ही है
प्रस्तर का ईश्वर नहीं नाम
जो ज्ञान नहीं ये मानेंगे
हैं व्यर्थ उनके आडंबर तमाम !
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाह
धन्यवाद आपका
बहुत बढ़िया...☺️
बहुत आभार आपका
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