मत्स्यगंधा

रिश्तों के उधेड़बुन को सुलझाती कहानी

Originally published in hi
Reactions 1
480
ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 01 Jun, 2020 | 1 min read
#Social issues

पलाश आँखें मूंदे पड़ा था।पलकें भीगी हुई थीं और वो कहीं खोया हुआ सा - इरा,उसकी बड़ी बड़ी आँखें, उसके व्यक्तित्व का ठहराव... पर माँ,माँ को कैसे मनाऊँ?

यूपी की ब्राह्मण महिला जिसने कभी माँस - मछली को हाथ ही नहीं लगाया, उसकी बहू बनाकर ले आया एक बंगाली लड़की को ,अपराधी की तरह महसूस हो रहा था उसे।

" पर क्या प्यार करना इतना बड़ा जुर्म है? "

" मैं, मैं नहीं रह सकता इरा के बिना

" तो,तो माँ के बगैर रह सकते हो? " जैसे अंतरात्मा ने धिक्कारा था उसे।आख़िर पिताजी के देहांत के बाद उसका माँ के सिवा था ही कौन?

माँ ने कितनी मुश्किलों से पाला था उसे।नौकरी और घर दोनों को ही तो संभालती आई थीं।

उधर अपने कमरे में लेटी सुलभा जी के मन में जाने कैसी उधेड़बुन थी।बारिश की बूंदों ने मन का अवसाद बढ़ा दिया था।

" तू इस माँस - मछली खाने वाली को मेरे घर की बहू बनाकर ले आया है?मैं इसे कभी अपनी बहू नहीं मान सकती।" उन्होंने तुगलकी फरमान जारी कर दिया था।उनका दिल जीतने को कितना कुछ तो किया था इरा ने,माँस - मछली खाना छोड़ दिया, बांग्ला में बड़बड़ाना भी,नृत्य जो कि उसका पहला प्यार था, उसे भी पर सुलभा जी के अंदर की सास को न रिझा पाई।हारकर इरा अपने मायके जाकर रहने लगी थी।

तभी छपाक की आवाज़ आई।सामने एक्वेरियम में रखी रंगीन मछलियां जैसे बाहर आने को तड़प रही थीं।उन्हें बेटे - बहू के उदास चेहरे, उनकी कोशिशें, मिन्नतें सब याद आने लगे।

" उफ्फ्, क्या कुछ नहीं किया उस मासूम ने?" सुलभा जी ने बेचैनी से खिड़की के परदे सरका दिए।पीछे का छोटा सा तालाब बारिश के पानी से लबालब भरा था।जाने क्यों उनके अंदर की ममता तड़प उठी।

हौले से पलाश के कमरे में कदम रखा।पलाश की पलकें अब भी भीगी थीं।मासूम चेहरे को उदासी ने ढंक रखा था।क्षण भर को उन्हें लगा जैसे वो अपने पिता का ही प्रतिरूप हो।उन्होंने धीरे से पलाश के माथे को छुआ।

पलाश उठ बैठा था।

'माँ' , जैसे कहीं दूर से आवाज़ आई।

" इरा को घर कब लाएगा बेटा? " उन्होंने जैसे अपनी कश्मकश से निकलते हुए पूछा।पलाश ने हैरानी से उन्हें देखा।

" हाँ बेटा, ले आ मेरी बहू को,मेरा मन नहीं लगता।"

पलाश की आँखों से मोती गिर पड़े।सुलभा जी हौले से उसकी नज़र बचा एक्वेरियम को तालाब में खाली कर आईं।अब वो मछलियाँ बड़ी शान से उसमें तैर रही थीं।

मौलिक एवं स्वरचित

अर्चना आनंद भारती

आसनसोल, पश्चिम बंगाल


1 likes

Published By

ARCHANA ANAND

archana2jhs

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.