एक पत्नी होने के नाते मैं भी अपने पति को लेकर काफी पज़ेसिव हूं और उनकी जासूसी करने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती हूं मसलन,पति कब किस महिला से कहाँ मिले, किसे कितनी देर घूरा, किससे कितनी बातें कीं वगैरह वगैरह | सोसाइटी की जलकूकड़ियों से भी मैं अतिरिक्त सावधान रहती हूं जो भैया-भैया कहकर मेरे पति पर लट्टू हुई फ़िरती हैं।हालांकि मैं जानती हूं कि उनके मन में क्या खिचड़ी पक रही होती है।
ख़ैर, पर शादी के बाद मुझे जिस बात ने सबसे ज्यादा परेशान किया है वो है पति के द्वारा बारंबार की गई एक मोहतरमा मिस छुई मुई की तारीफ़ (वास्तविक नाम बताने पर विस्फोटक परिणामों की आशंका है) ये मोहतरमा पति के कालेज के दिनों की सहपाठी थीं,पति के मुताबिक बला की खूबसूरत और ज़हीन थीं और दुनिया की सबसे शालीन लड़की थीं। संक्षेप में कहें तो पति के दिल के एक कोमल कोने में विराजमान थीं या शायद हैं।मसलन, मैं इन्हें मन ही मन अपनी सौतन मान बैठी थी जिनके ज़िक्र से मुझे ख़ासी कोफ़्त होती थी।
हां, तो बात उन दिनों की है जब पति के तबादले के बाद वर्तमान शहर में आए। पता चला कि मोहतरमा छुई मुई पास ही के शहर में ब्याही गई हैं अरसा पहले। उनका डर तो पहले ही मेरे दिलो दिमाग पर हावी था ऊपर से उनका इतने पास होना मानो ख़तरे की घंटी बजा गया।
रही-सही कसर इस सोशल मीडिया ने पूरी कर दी। पति ने उनकी प्रोफ़ाइल ढूंढ निकाली। नाम से और मित्र सूची से तय हो गया कि वही हैं पर तस्वीर नहीं मिली पर पति भी कहां हार मानने वाले थे। मित्रों से और मित्रों के मित्रों से किसी प्रकार उनका पता ठिकाना मालूम कर लिया और एक दिन दफ़्तर से आते ही घोषणा कर दी कि आज रात मिस छुई मुई, जो अब मिसेज छुई मुई पाण्डे हो चुकी थीं, अपने परिवार के साथ डिनर पर आ रही हैं।
मुझे तो काटो तो ख़ून नहीं। ख़ैर, जैसे भी हो, वो आज के लिए हमारी मेहमान थीं और जैसी कि परंपरा है हमारी, अतिथि देवो भव। मैं भारी मन से मेहमानों के आगमन की तैयारियों में जुट गई। मन ही मन डर भी लग रहा था। आख़िर समस्या जब तक सामने ना आ जाए, तब तक बड़ी ही लगती है।
मोहतरमा संध्या 8 बजे अवतरित हुईं। मैंंने उन्हें गौर से देखा (घूरा)। कोई 40 वर्ष की गोरी चिट्टी, स्थूलकाय, गहनों से लदी प्रौढ़ा चली आ रही थी। उस छुई मुई का, जिसने बरसों से मेरी रातों की नींद ख़राब कर रखी थी, इस भद्र महिला मेंं अवशेष भी शेष ना था। संक्षेप में, मिस छुई मुई अब मिसेज हरी भरी मेंं तब्दील हो चुकी थीं। साथ में उनके छह फुटे पतिदेव और दो किशोरवय के बच्चे भी थे। ख़ैर, मैंंने उनकी अगुवानी की और घर लेकर आ गई।
खाने की मेज पर बातों के सिलसिले चल पड़े और जैसा कि मैं डर रही थी, वैसी कोई बात नहीं हुई। पहले तो हल्की-फुल्की बातें हुईं, फ़िर मोहतरमा ने अपने पति की तारीफ़ों के पुल बांधने शुरू किए और फ़िर मेरे पति और मिसेज हरी भरी कालेज के दिन, चाचा-चाची, ताया-ताई और दशकों पहले दिवंगत हो चुकी आत्माओं के चर्चे करने लगे। इस पूरे प्रकरण में मिसेज हरी भरी के पति बस हां-हूं करते रहे और मैं मेज पर बैठी ऊंघती रही। फ़िर बातचीत के अंतिम बिंदु पर मिसेज हरी भरी के बच्चों की गर्लफ्रेंड्स के चर्चे चलने लगे। एक हल्के-फुल्के माहौल के बाद मिसेज हरी भरी ने मेरी मेहमान नवाज़ी की तारीफ़ की और हमें अपने घर आने का आमंत्रण दे डाला।
कहना न होगा कि कब मेरे मन से ये सौतन का भूत गायब हो गया, मुझे पता ही नहीं चला।और अब मेरे पति की गर्लफ्रैंड हमारी पारिवारिक मित्र बन चुकी हैं और अब उनके बच्चों की गर्लफ्रेंड्स की चर्चाएं हुआ करती हैं। मतलब, ये समय ना सब कुछ ठीक कर देता है पर इस प्रकरण से मैंने जो सीख ली वो ये कि समस्या चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, उसका डटकर मुकाबला करें, फ़िर चाहे वो पति की गर्लफ्रैंड ही क्यों न हो। हाहाहा
मौलिक एवं काल्पनिक हास्य
कापीराइट, अर्चना
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Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice writeup
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