उस उदास कोठी का वारिस

इस तिलिस्मी दुनिया का एक अजीब दस्तूर है कि जीतेजी भले ही लोग आपको न पूछें पर आपके मरते ही सब आपकी लाश को......

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 13 Jul, 2020 | 1 min read
#Social issues

दो दिन से ज्वर था और आज चलने का भी साहस नहीं मिल रहा था।जी बहुत घबरा रहा था।मोहन को आवाज़ लगाई और वकील को बुला लाने को कहा कि फ़िर खांसी।

"मैं पहले डॉक्टर को बुला लाता हूं बाबूजी,आपकी तबीयत ठीक नहीं",मुंह लगे नौकर ने कहा।

"जो मैं कहता हूं वो सुना कर",डपटते हुए बाबूजी ने कहा।यूं तो मोहन उनका ख़याल दिलो जान से रखता था पर एक नौकर कहीं बच्चों की जगह ले सकता है भला?

मोहन पलक झपकते ही वकील के साथ हाजिर था।"चल अब जा यहां से",बाबूजी ने मोहन को फ़टकार लगाई।मोहन चुपचाप वहां से चला गया।

"क्या आप जानते हैं,आप क्या कह रहे हैं"?वकील ने आश्चर्य से पूछा था।

"मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं।तुम बस कागज़ात तैयार कर दो।" 

"जी, बहुत अच्छा"कहते हुए वकील साहब पूरी तल्लीनता से जुट गए।

शाम गहरा गई थी।वकील साहब जा चुके थे।थकान और क्षोभ ने बाबूजी को आ घेरा था।मोहन आकर देख गया था।उन्हें सोया जान वो भी पिछवाड़े में बने सर्वेंट क्वार्टर में जाकर सो गया था।

सुबह कोठी में एक नीरव शांति थी।सुबह के दस बज गए थे।"बाबूजी इतनी देर तक तो नहीं सोते",सोचते हुए मोहन ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया था।दरवाज़ा अपने आप खुल गया था।"बाबूजी,बाबूजी",कहते हुए मोहन ने उनके कंधे झिंझोड़े पर बर्फ सी ठंडक पाकर उसके होश उड़ गए।घबराहट में पहले दोनों बेटों को फ़िर डॉक्टर,पुलिस सबको इत्तला कर दी।

दोपहर तक डॉक्टर,वकील,पुलिस और दोनों बेटे पहुंच गए थे।जिन बेटों को उनके जीते जी कभी फुर्सत ना मिली थी वो उनके मरने के बाद प्रकाश की गति से पहुंच गए थे।अब ये पिता की मृत्यु का शोक था या संपत्ति का लोभ,निश्चित तौर पर नहीं कह सकते।डॉक्टर ने चेकअप करके मृत्यु को सामान्य बताया।छानबीन में मिले सभी कागज़ात पुलिस ने ज़ब्त कर लिए।

दोनों बहुएं दहाड़ मार-मार कर रो रही थीं।सभी पड़ोसी भी जमा हो गए थे।इस तिलिस्मी दुनिया का एक अजीब दस्तूर है कि लोग जीते जी भले आपका हाल ना पूछें पर मरने के बाद ज़रुर सब के सब आपकी अर्थी को कंधा देनेेेे आ जाएंगे।कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता है मानो बहुत सी लाशें अपने समुदाय के सदस्य को साहचर्य देने पहुंची हों।

"बाबूजी अपनी वसीयत छोड़ गए हैं।" वकील ने सबकी मौजूदगी में कहा।अब सबकी निगाहें वकील पर थीं।सब जानना चाहते थे कि बाबूजी की संपत्ति का अधिकार किसे और कितना मिला है।पहले चार पन्नों पर कुल संपत्ति का ब्यौरा था।आखिरी पन्ने पर वसीयत लिखी थी।वकील ने पढ़ना शुरू किया।"मैं रघुनाथ पूरे होशो-हवास में यह वसीयत लिख रहा हूं। मेरे मरने के बाद मेरी संपत्ति के तीन हिस्से किए जाएं।20प्रतिशत हिस्सा शहर के वृद्धाश्रम में दे दिया जाए जहां के बुजुर्ग मेरे सुख-दुख के साथी रहे हैं।20 प्रतिशत हिस्सा शहर के अनाथालय में दे दिया जाए। बाकी बचे साठ प्रतिशत हिस्से को और इस कोठी को मेरे बेटे के समान लड़के मोहन को दे दिया जाए जिसने आजीवन मेरी सेवा की है।हां मोहन,मैं जीते जी तो तुझे कभी गले ना लगा पाया,ज़मींदारी खून आड़े आ जाता था,पर तुमने जितना मेरे लिए किया है,मेरी सगी औलाद भी ना करती।इसलिए मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरी अंत्येष्टि तुम्हारे हाथों हो।"-तुम्हारा बाबूजी

वसीयत में दोनों बेटों का कोई ज़िक्र ना था।दोनों बेटे मोहन को इस साज़िश का जिम्मेदार ठहरा रहे थे।"हम हाईकोर्ट में चुनौती देंगे।" रोना भूल वे बहस पर आमादा हो गए थे पर पुलिस ने उनकी एक न सुनते हुए कागज़ात जांच के लिए भेज दिए थे।इस अचानक मिली कृपा और स्नेह से मोहन जैसे काठ हो गया था।वह घुटनों में सिर छुपाए रोता जा रहा था।"उठो जी",बाबूजी की अंतिम इच्छा पूरी करने का समय आ गया है।मोहन के कंधे झिंझोड़ते हुए उसकी पत्नी लाखो ने कहा।अब वह इस उदास कोठी का वारिस जो था।

-समाप्त(एक सच्ची घटना पर आधारित)


कॉपीराइट,अर्चना आनंद भारती

https://www.paperwiff.com/me/posts/883f06e3-d571-4676-b126-6ab66e075948/कहानी का पहला भाग पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें





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ARCHANA ANAND

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Nice story with a great hidden message.

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thank you so much ma'am

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