अनुगामी नहीं ,गौरवशाली बनें

इतना ही नहीं, भाषायी स्वरूप इतना तरल और सहजग्राह्य है कि हर भाषा को आत्मसात कर लेती है।कोई बैर नहीं, कोई मनोमालिन्य नहीं...पढ़ें हिन्दी दिवस पर लिखा ये ज्वलंत,विचारोत्तेजक और ज्ञानवर्धक आलेख

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 10 Sep, 2020 | 1 min read

आपने अक्सर फार्म भरते समय भाषा वाले कॉलम में vernacular शब्द पर चिह्नित किया होगा?क्या आपने कभी थोड़ा रुककर सोचा है कि vernacular यानि क्या?

Vernacular का शाब्दिक अर्थ है 'असभ्य भाषा' या 'देहाती बोली'।ये तो आपसब जानते ही हैं कि अंग्रेजों ने विश्वभर के जिन देशों का जमकर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण किया है उनमें से भारत भी एक है।शोषक होने के नाते उनमें थी दुनिया भर की अकड़ और दंभ कि उनकी हर चीज़ सर्वश्रेष्ठ है, बाकी सब असभ्य।इसी दंभ में उन्होंने हमारी भाषाओं को असभ्य की उपाधि दे डाली थी।

लेकिन हमारी भाषाएँ न तो असभ्य हैं और न अविकसित।हिन्दी समेत तमाम भारतीय भाषाओं का अपना एक वैज्ञानिक स्वरूप है जो भाषा विज्ञान के सभी मापदंडों पर खरा उतरता है।

बात अगर हिन्दी की करें तो इसके प्रत्येक वर्ग को उच्चारण क्षेत्र के आधार पर बांटा गया है।स्वर वर्णों का उच्चारण क्रमशः अ,आ कंठ से, इ ई तालु से,ऋ मूर्द्धा से,उ ऊ ओष्ठ से, ए ऐ कंठतालु से, ओ औ कंठ और ओष्ठ की सहायता से किए जाते हैं।

व्यंजन वर्णों में से कवर्ग कंठ से,चवर्ग तालु से, टवर्ग मूर्द्धा से,तवर्ग दंत से ,पवर्ग ओष्ठ से और तीनों श,ष,स तालु ,मूर्द्धा और दाँत की सहायता से उच्चारित किये जाते हैं।इसका व्याकरण भी पूर्णतः विकसित और निश्चित नियमों वाला है जबकि पश्चिमी भाषाएँ अपवादों की माता हैं।

इतना ही नहीं, भाषायी स्वरूप इतना तरल और सहजग्राह्य है कि हर भाषा को आत्मसात कर लेती है, कोई मनोमालिन्य नहीं, पूर्वाग्रह नहीं।

उर्दू, अरबी, फारसी आदि तो खैर सदियों से घुले-मिले हैं हिन्दी में लेकिन अंग्रेजी को भी हमने उतने ही प्रेम से स्वीकार लिया है।

लेकिन तकलीफ तब होती है जब आप केवल खुद को उच्चशिक्षित साबित करने के लिए अंग्रेजी के शब्दों का जबरन अधिकाधिक प्रयोग करने लगते हैं।जैसे - मेरे हेड में पेन हो रहा है।

मेरे वार्डरोब में हर कलर के क्लोथ्स हैं।

कठिन शब्दों को तो जाने दें,हमने आसान शब्दों के भी अंग्रेजी विकल्पों को प्राथमिकता दी है।क्या कलर रंग से अधिक सुंंदर शब्द है? क्या भेद difference से कहीं अधिक आसान शब्द नहीं?

ये तो बस कुछ उदाहरण भर हैं लेकिन ऐसे हजारों जबरन ठूंसे गए शब्दों से हमने अपनी भाषा का स्वाभाविक प्रवाह बोझिल बना रखा है।

भाषाएँ हमारी माता सरीखी हैं जिनकी गोद में हम पले बढ़े हैं।क्या माता का ऐसा तिरस्कार शोभनीय है?आप विश्वपटल पर अपनी पहचान अंग्रेजी बताएंगे कि हिन्दी?

कुछ हिन्दीभाषी अपनी ही भाषा का मजाक हँस हँसकर उड़ाते हैं।जैसे कि रेल को 'लौहपथगामिनी' कहना।अरे,इसके लिए संस्कृत तक में रेलयान शब्द मान्य है पर आपको तो अपनी भाषा का उपहास उड़ाने की आदत पड़ी हुई है।

अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित होने के कारण वैसे भी हमारे बच्चों की पकड़ अपनी भाषाओं से ढीली हो गई है।अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है, इससे इनकार नहीं कर सकते लेकिन हम अभिभावकों का कर्तव्य है कि हम उन्हें अपनी भाषा की सही शिक्षा दें।ये हमारी विरासत है जिसे संजोना हमारा कर्तव्य है और ये कोई एक दिन के प्रचार का विषय नहीं ,जीवनशैली का हिस्सा होना चाहिए।

विश्वास करें इतना मुश्किल भी नहीं है यह सब, अनुगामी नहीं, स्वाभिमानी बनें।आधे अधूरे अंग्रेज नहीं ,पूर्ण गौरवशाली भारतीय बनें।आपसबों को हिन्दी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ!


©अर्चना आनंद भारती

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    बेहद ज्ञानवर्धक आलेख लिखा आपने दी।

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद प्यारे भाई ,बहुत स्नेह तुम्हें

  • Neha Srivastava · 3 years ago last edited 3 years ago

    बेहतरीन आलेख❤❤

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    हृदयतल से आभार मैम

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