महबूब शहर

सच,ऐसा कुछ भी तो ख़ास नहीं इस शहर में लेकिन मैं शायद अपना एक हिस्सा सा इस शहर में छोड़ आया हूँ...एक मीठी सी प्रेम कहानी

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 01 Feb, 2021 | 1 min read
#love story

मदुरै... सुदूर दक्षिण भारत का शहर,आप कहेंगे कि देश के प्राचीनतम शहरों में से एक इस शहर में ऐसा क्या ख़ास है?

सच,ऐसा कुछ भी तो ख़ास नहीं पर मैं इस शहर में शायद अपना एक हिस्सा सा छोड़ आया हूँ।मेरी नौकरी की पहली पोस्टिंग इसी शहर में हुई थी।एक बेरोजगार युवा और चाहता भी क्या?

मैं उत्तर भारतीय लड़का रोजीरोटी के जुगाड़ में चला तो आया यहाँ, पर एक तो भाषा की दिक्कतें, ऊपर से नितांत अपरिचित जगह... एक अजीब सी उदासी ने मुझे घेर लिया।अलागार कोविल - ये मंदिर मेरे दफ़्तर से महज एक किलोमीटर की दूरी पर था तो मेरे अकेलेपन ने इसे अपना साथी बना लिया।मैं रोज़ शाम को निरुद्देश्य सा टहलता इस मंदिर के प्रांगण में आ बैठता।

मंदिर का मुग्ध करता मंत्रोच्चारण, बीचोंबीच बना तालाब और तालाब के बीच में बना सुनहरा कमल,ये सब मेरे मन को असीम शांति देते।

सब ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन शांत झील में कंकड़ मार दिया किसी ने।मैं मंदिर के आंगन में खोया सा बैठा था कि अचानक एक दक्षिण भारतीय लड़की हल्के नीले रंग का लहंगेनुमा रेशमी परिधान पहने वहाँ से गुजरी।उसके साँवले सौंदर्य में जाने क्या आकर्षण था कि मैं उसे देखता रह गया।बड़ी बड़ी बादामी आँखें, तीखी नाक और कमर तक बलखाते घुंघराले बाल, सच कहूँ तो साँवले रंग का सौंदर्य उस दिन पहली बार जाना मैंने।

फिर तो ये नित्य का क्रम बन गया, उसकी एक झलक की आशा में मैं रोज़ वहाँ आ बैठता पर वो मोहतरमा फिर नज़र नहीं आईं।मेरे कुंवारे सपनों को पंख लगाकर उसका यूँ उड़ जाना... आह,एक अजीब सी कसक सी उठी थी दिल में।ख़ैर, उस दिन दफ़्तर में फाइलों में सिर घुसाए बैठा था कि एक हल्की सी गहमागहमी से तंद्रा भंग हुई।सहकर्मियों ने बताया कि मेरे बगल की टेबल पर एक नई लड़की की नियुक्ति हुई है।और मेरे आश्चर्य की सीमा न रही जब देखा कि ये तो वही मंदिर वाली लड़की थी।लक्ष्मी... हाँ,यही नाम था उसका।

हम धीरे धीरे मित्रता की कच्ची डोर से बंध गए।वह तमिल मिश्रित अंग्रेजी में बोलती और मैं टूटी फूटी अंग्रेजी में।उसने मुझे रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले तमिल शब्द भी सिखाए।वह मितभाषिणी थी और मैं संकोची पर दिनोंदिन प्रगाढ़ होती मित्रता ने शीघ्र ही हमें एहसास करा दिया कि बोलने के लिए भाषा ज़रूरी नहीं, संवादों का आदान प्रदान आँखों से भी होता है।हम घंटों अलागार कोविल के प्रांगण में बैठे रहते।

जाने कब मेरे मन में प्रेम का एक नन्हा सा अंकुर फूट पड़ा और एक दिन मैंने तय कर लिया कि लक्ष्मी से प्रेम निवेदन ज़रूर करूंगा।

उस दिन मैंने एक सोने की अंगूठी खरीदी थी और जेब में रखकर दफ्तर चला आया था।पर लक्ष्मी उस दिन आई ही नहीं।सहकर्मियों ने बताया था कि उसके पिताजी की तबीयत अचानक से बिगड़ जाने के कारण उसे जाना पड़ा।मेरे अंदर जैसे कुछ छन से टूटा था।

ख़ैर! मैं चुपचाप उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा।पंद्रह दिनों का यह अंतराल सदियों सा लंबा लगा था मुझे।उस दिन भी मैं गुमसुम सा बैठा था जब लक्ष्मी लौटकर आई थी।गले में वेत्ति (दक्षिण भारतीय मंगलसूत्र),माथे पर कुंकुम लगाए ये कोई और ही लक्ष्मी थी।मैं अवाक सा खड़ा रह गया था,मेरी आँखें अनजाने ही अंगारे बरसाने लगी थीं।

हताशा में एक बार फिर मैं अलागार कोविल के प्रांगण में खड़ा था... शायद इस बार भगवान से अपनी अधूरी प्रेम कहानी की शिकायत करने।तभी धीरे से किसी ने आवाज़ दी थी - 'इंगे वा'(इधर आओ)...मैं चौंककर मुड़ा था। सामने लक्ष्मी खड़ी थी।

आँसू भरी आँखों से लक्ष्मी ने अपनी तमिल मिश्रित अंग्रेजी में जो कहा उसका सार यही था कि बीमार पिता ने बेटी का हाथ अपने बचपन के मित्र के बेटे में सौंपकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी।उसने मुझे हमारी मीलों की सांस्कृतिक और सामाजिक दूरी का हवाला देते हुए सुबकते हुए कहा था कि हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।

' नहीं ' मैं बिलख पड़ा था।उसने मुझे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन मेरी नज़रों में वो अब एक बेवफ़ा थी।लक्ष्मी, अलागार कोविल, वैगई नदी और मदुरै शहर ये सब मुझे अचानक एकदम अजनबी से लगने लगे।मैंने तबादले का अनुरोध पत्र लगा दिया और वापस अपने शहर लौट आया।आज सालों बाद हालांकि मुझे लगता है कि उसके पाँवों में संस्कारों की बेड़ियाँ थीं जिस कारण उसने प्रेमी और पिता में से पिता को चुना था पर तब इतनी परिपक्वता नहीं थी मुझमें।

इस हादसे को एक ज़माना गुजर चुका है पर मोहब्बत की ये कसक आज भी मुझे चैन से जीने नहीं देती।सच तो ये है कि हमारा समाज ऐसी बहुत सी मरी हुई कहानियों के बीच में ज़िंदा है।कहीं आपकी भी कोई ऐसी कहानी तो नहीं?


मौलिक एवं अप्रकाशित

अर्चना आनंद भारती


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ARCHANA ANAND

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    सधा हुआ लेखन

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    हार्दिक आभार सखी

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