गुलज़ार ज़रा मुझसे कह दो

मेरे प्रिय कवि एवंं शायर गुलज़ार को समर्पित मेरी काव्यांजलि

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 23 Jul, 2020 | 1 min read
#Inspiration

गुलज़ार ज़रा मुझसे कह दो


गुलज़ार ज़रा मुझसे कह दो,ये नगमें जो तुम गढ़ते हो।

किन आँखों से मन की भाषा,इतने विस्तार से पढ़ते हो?


कुछ जागी रातों के किस्से, कुछ आँसू भरी शामल शामें

कुछ दर्द छुपे अनजाने से,जो रहते हमसब हैं थामे

किस तरह भला इन शब्दों को,इतने आराम से कहते हो?


है स्याही भी, है कलम भी,है कागज़ भी,पर शब्द नहीं

हर शब्द कहीं खो जाता है, हम रह जाते नि:शब्द कहीं

केवल स्याही ही होती है, या आँसू से भी गढ़ते हो?


ये शब्द तुम्हारे रहते हैं कितना अनुभव विस्तार लिए

उन अनकथ,कोमल भावों का, कितना अनंत संसार लिए

जब हो जाता है मौन मुखर,उस सन्नाटे को पढ़ते हो?


गर किसी रोज हम मिल पाएँ,तो तेरी कलम चुराऊँ मैं

कुछ अपनी बातें कह-सुनकर,आराम से फिर सो जाऊँ मैं!

मौलिक एवंं सर्वाधिकार सुरक्षित

©अर्चना आनंद भारती


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ARCHANA ANAND

archana2jhs

Comments

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  • Neha Srivastava · 3 years ago last edited 3 years ago

    Bahut khub👌👌

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत धन्यवाद मैम

  • Sumita Sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    Khoobasoorat

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद मैम

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