सोशल स्टेटस

पहले प्यार की प्यारी सी कहानी

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 07 Jun, 2020 | 1 min read
#Social issues

"ऐसे क्या देख रहे हो?"धरा ने व्योम को अपलक अपनी ओर निहारते देख चुहल की।

"तुम नीले सूट में क़यामत ढा रही हो यार, नज़र ही नहीं हटती।"व्योम ने हँसते हुए कहा था।

      व्योम और धरा एक ही कॉलेज में पढ़ते थे।धरा एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की अध्ययनशील लड़की थी और व्योम एक उच्च मध्यमवर्गीय परिवार का महत्वाकांक्षी लड़का।दोनों को पुस्तकों से बड़ा लगाव था।लाइब्रेरी से शुरु हुआ परिचय पहले दोस्ती में बदला और दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में।

       दोनों एक दूसरे के साथ समय गुजारने के बहाने ढूंढते।धरा का निष्कपट व्यवहार जहाँ व्योम को आकर्षित करता वहीं व्योम का उन्मुक्त व्यवहार धरा को।समय तेजी से बीतता गया।वैसे भी जब हम प्रेम में होते हैं तो समय बीतते देर नहीं लगती।दोनों ने बी कॉम की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर ली थी।व्योम ने आगे एमबीए में दाखिला लिया था जबकि धरा के माता - पिता ने हैसियत का हवाला देते हुए आगे पढ़ाने से इनकार कर दिया था।

      व्योम अपने पारिवारिक व्यवसाय को ऊँचाइयों पर ले जाना चाहता था जबकि धरा बस व्योम के साथ एक छोटे से घर और खुशहाल जीवन के सपने देखती।धरा जब भी शादी के लिए कहती, वह टाल जाता।

       "व्योम, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती।तुम समझते क्यों नहीं?"आख़िर एक दिन धरा ने हारे हुए स्वर में कहा था।

"बस थोड़ा इंतज़ार और कर लो धरा,मुझे अभी अपने कैरियर को संभालना है।अपना सोशल स्टेटस बनाना है।"

       पर धरा का इंतज़ार लंबा होता जा रहा था।व्योम अपनी ही धुन में चलता हुआ धरा से दूर होता चला गया था।धरा के माता-पिता को व्योम और धरा के संबंधों की जानकारी थी पर इतना अमीर लड़का उनकी हैसियत से बाहर था।आख़िरकार हारकर उन्होंने एक अच्छा लड़का देख कर धरा की शादी कर दी।धरा शादी कर ससुराल चली गई और व्योम ने अपने काम में ख़ुद को झोंक दिया।

       आज सालों बाद व्योम अपनी कंपनी का सीईओ था।बिजनेस मीटिंग के सिलसिले में शिमला आया था।अपने आलीशान होटल की बालकनी में कॉफी के घूँट भरता हुआ व्योम शिमला की खूबसूरती को अपलक निहार रहा था।सड़क पर आते-जाते युगल उसके मन में एक कसक सी छोड़ जाते।तभी उसकी नज़र खिड़की के बाहर एक छरहरी सी लड़की पर पड़ी,साथ में दो निहायत ही खू्बसूरत बच्चे।व्योम को वो लड़की जानी-पहचानी सी लगी।वो फ़ौरन सीढ़ियाँ उतरता हुआ नीचे चला आया था।लेकिन थोड़ी ही दूरी पर ठिठक गया।

       "अरे,ये तो धरा थी।" हल्के गुलाबी सूट में वही व्योम की सीधी-सादी,सुंदर सी धरा।उसकी धड़कनें तेज़ हो गई थीं।व्योम उसकी ओर चित्रखिंचित सा बढ़ चला था कि तभी एक भारी मर्दाना आवाज़ सुनाई दी थी।

      "चलें?"एक हैंडसम से व्यक्ति ने धरा के कंधे पर हाथ रखकर पूछा था।व्योम के मन में ईर्ष्या की एक लहर सी उठी थी।वो अपनी जगह पर काठ सा हो गया था।

      धरा अब नारीत्व की गरिमा से भरी और भी सुंदर हो गई थी।बच्चों के साथ खिलखिलाती, पति से बतियाती धरा उसकी नज़रों से ओझल हो चुकी थी।व्योम आज भी धरा के सोशल स्टेटस तक नहीं पहुँच पाया था।

मौलिक एवं काल्पनिक

अर्चना आनंद भारती


    



       


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