किसान उगाता है तो देश खाता है

किसानों का मानना है कि इस कानून के द्वारा चोर दरवाजे से कृषि क्षेत्र में निजीकरण का प्रवेश कराया जा रहा है जिसके दीर्घकालिक परिणाम अच्छे नहीं होंगे।किसानों और कृषि कानून के बीच में चल रहे अंतर्द्वंद्व पर एक ज्वलंत आलेख

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 10 Dec, 2020 | 1 min read
#Current affairs

'श्वानों को मिलता दूध - वस्त्र ,भूखे बालक अकुलाते हैं

माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर , जाड़ों की रात बिताते हैं '

         राष्ट्रकवि दिनकर ने जब यह पंक्तियाँ लिखी होंगी तब शायद उन्होंने सोचा भी न होगा कि लगभग 5 दशकों बाद भी देश में किसानों की स्थिति उतनी ही दयनीय रहेगी।

किसानों के हित के नाम पर वोट मांगने वाले नेता भी जब सत्ता में आ जाते हैं तो चमचमाती कारों और बंगलों की चकाचौंध में किसानों को भुला बैठते हैं।उनके लिए किसान वोट बैंक से अधिक कोई हैसियत नहीं रखते।

जब हम सब अपने अपने घरों में रजाईयों में दुबके रहते हैं तब कड़कड़ाती ठंड में ये किसान घुटनों तक पानी में डूबे अपने खेतों की, फसलों की देखभाल में जुटे होते हैं।महीनों तक धूप, बारिश ,ठंड झेलकर फसलों को वे तैयार करते हैं लेकिन स्वयं आजीवन अभावग्रस्त रह जाते हैं।

खाद्यान्न के मामले में भारत अगर आत्मनिर्भर है तो इसका बहुत बड़ा योगदान किसानों को जाता है।बढ़ती जनसंख्या का बोझ ,घटती कृषि योग्य भूमि ,बढ़ती महँगाई और आंशिक या पूर्ण रूप से प्रकृति आधारित कृषि ,इन तमाम चुनौतियों के बाद भी ये निस्पृह भाव से डटे रहते हैं।

हाल में सरकार द्वारा पारित कृषि सुधार कानून ने एक नए आंदोलन को जन्म दे दिया है।आइए जानें कि कृषि सुधार कानून आख़िर हैं क्या?


1. कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य कानून 2020 - इस कानून के तहत किसानों को एपीएमसी मंडियों से बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी रहेगी।किसान अपनी फसल राज्य के बाहर भी बेच सकेंगे।

       कृषि विशेषज्ञों की मानें तो ये कानून मंडियों की ताबूत पर आख़िरी कील साबित होगा।भारत के 80 % किसानों के पास आज भी 2 हेक्टेयर से कम ज़मीन है।ऐसे साधनहीन किसान जो अपनी फ़सलों की बिक्री के लिए स्थानीय मंडियों पर निर्भर हैं, ये कानून उनके लिए मुश्किल का सबब बनकर आया है।

लोगों का यह भी मानना है कि सरकार इस बहाने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को ख़त्म करने में जुटी है।


2.कृषक कीमत आश्वासन और अनुबंधित कृषि - यह कानून किसानों को सीधे बड़ी कंपनियों ,बड़े थोक एवं खुदरा विक्रेताओं से कांट्रैक्ट पर जुड़ने की सुविधा देता है।इसमें किसानों को पहले से ही तय दामों पर फ़सल बेचनी होगी।

      किसानों द्वारा सबसे ज्यादा विरोध इसी कानून का हो रहा है।विशेषज्ञों की मानें तो ये चोर बाज़ार से निजीकरण का प्रवेश है।क्योंकि कीमतें पहले से तय होंगी तो किसान का पक्ष कमजोर होगा।किसी विवाद की स्थिति में मामला कंपनियों तक जाएगा जबकि पहले किसान सीधे कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते थे।


3.आवश्यक वस्तु संशोधन कानून - इस कानून में आलू ,प्याज ,दलहन ,तिलहन आदि मुख्य खाद्य पदार्थों को आवश्यक सूची से हटाने का प्रावधान है।सरकार का तर्क है कि इससे कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा।

    विशेषज्ञ मानते हैं कि इस कानून से असामान्य परिस्थितियों में खाद्यान्नों की कीमतें अनियंत्रित हो जाएंगी जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ेगा।साथ ही कृषि जैसा मूलभूत ढांचा धीरे - धीरे निजी कंपनियों के हाथों में चला जाएगा।


ज़ाहिर है कि पहले से ही बदहाल किसान अब और बदहाली नहीं चाहते।दूसरी बात ये कि सरकार ने इस अध्यादेश को पास करने में जो तत्परता दिखाई है वह संदेह के घेरे में है।सरकार को चाहिए कि वो लोगों के मन में व्याप्त संदेह को दूर करे और यथासंभव परिवर्तन करे क्योंकि किसानों की समृद्धि में ही देश की खुशहाली निर्भर करती है ,क्योंकि किसान उगाता है तो देश खाता है।अशेष,


©अर्चना आनंद भारती








   

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