" ना तू रास आया ना तेरा शहर
ना ये आबोहवा रास आयी
ना ये चकाचौंध रास आयी
ना रातो को भागती जिंदगी रास आयी
रोंदी जा चुकी है उम्मीद मेरी
टूट चुके हैं सपने सारे
भरोसे के बिखरे टुकड़ों को इकट्ठा करके
चल दिया हूं मैं बोरी बिस्तर बांध कर के
रहम कर ए खुदा
कुछ पैरों ने नाप दी जमीन सारी
और कुछ का हिला तक नहीं जमीर
भूख से भी बड़ी हिम्मत लेकर
प्यास से बड़ी चिंता लिए
निकल पड़े हैं कुछ पैर
अपने घर गांव जाने को
अपनों के बीच मरने को शायद
टेक टेक कर माथे मंदिर मस्जिद पर
बुझ चुका हूं मै एसे जी कर
पहुंचा दे मुझे मेरे गांव की पाल पर
जहा जेब से बड़े दिल होते है
जहा की हवा में अपनापन
और मिट्टी में पसीना होता है
ना तू रास आया ना तेरा शहर
ना ये आबोहवा रास आयी ""
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