शीर्षक-"नकाबों से अनुराग"(कविता)
जीवन के पथ पर अनेकों मिले
कुछ थे मेहरबां तो कुछ को गिले
कंचन सी काया प्रफुल्लित वदन
मुखरित लगे उसके सरसिज- नयन
अपनी ही छाया लगी वो मुझे
सुखद लौ से सुलगे,जो अरमा बुझे
नरम दिल कली सी कई उसमें खूबी
अजब शै थी वो मोह में उसके डूबी
समय ने मगर चाल ऐसी चली
अता ना पता वो गई किस गली?
मुखौटा लगाकर वह दे गई दगा
सोया मेरा मन अचानक जगह
यादों में मन मेरा डूबा उतर आया
भाया नहीं फिर मुझे अपना साया
जिसे मैंने चाहा था खुद से भी ज्यादा
जुदा हम ना होंगे किया था ये वादा
उन्हीं सेमोहब्बत की जाने क्यों रीझे?
छिपे थे सभी हा! नकाबों के पीछे
दिखाई दिये जो वो चेहरे थे नकली
मुझको टोन से असली सूरत की
मुखौटों से असली सूरत थी बदली
नकाबों के पीछे का जब राज जाना
बदला है इंसां मेरे दिल ने माना
ये पुतला गजब गलतियों का ठिकाना
मिथ्या का बुनता रहे ताना-बाना
सच को छुपा कर रखे जब तलक
निश-दिन उठे उसके दिल में कसक
फिर भी दीवाना मस्ताना है इंसां
मुखौटों को ओढ़े फिरता है तन्हा
रंग बिरंगी मुखौटों का फैशन
लगाकर थिरकतेऔर होते मगन मन
बदलते समय का अजब राग है
नकाबों से सबको ही अनुराग है
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स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्लीबदला है इंसां मेरे दिल ने माना
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