बालक वीर

बालकों को बचपन से ही सद्व्यवहार करने और निडर रहने की सीख देना पालकों का कर्तव्य है।

Originally published in hi
Reactions 0
425
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 08 Apr, 2022 | 1 min read

स्वरचित लघु कथा

शीर्षक-" बालक वीर"

- आपके साथ कौन है बेटा?

-मम्मी ई इ इ थीं ईं ई,पता नहीं कहाँ गईं?

बस कंडक्टर द्वारा पूछने पर सात वर्षीय बालक वीर बोलता हुआ रुआंसा हो गया।

- कहाँ जाना है आपको?

- मम्मी के पास।

- उन्हें हम कैसे ढूंढेगे बेटा?

- कंडक्टर अंकल!यह मेरा स्कूल आई कार्ड है। मेरी मम्मी टीचर हैं बच्चों को पढ़ाती हैं सेंट्रल स्कूल में। बस-एस्कॉर्ट भी हैं। हमारी स्कूल-बस

मूलचंद फ्लाईओवर के पास खराब हो गई थी।

रोड पर

एक बूढ़ी मां को रोड पार कराकर जैसे ही मैं लौटा,तो भीड़ में मुझे लगा नीली साड़ी वाली मेरी मम्मी ही हैं,जो बस में चढ़ी थीं।गलती से उनके पीछे पीछे मैं भी उसी बस में चढ़ गया।

-अकेले.. इस तरह.. आप डरे नहीं?

-मम्मी पापा कहते हैं बहादुर बालक कभी डरते नहीं,हिम्मत से काम लेते हैं।

-प्लीज अंकल ! मेरी मम्मी को ढूंढकर ला दीजिये।

- अरे तुम तो बहुत बहादुर बच्चे हो। हम आपको आपकी मम्मी के पास जल्दी ही पहुंचाएंगे।

वीर की मम्मी को कंडक्टर ने फोन करके ढाढस बधाया और उन्हें मदद का आश्वासन दिया।अंतिम बस स्टॉप से पुनः वापसी में उन्हें सूचित करके बालक को सुरक्षित घर पहुंचा दिया।

वीर की स्कूल प्राचार्या जी ने भी मंच पर उसे बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित भी किया.


लेखिका- डा.अंजु लता सिंह, नई दिल्ली

 ई मेल-anjusinghgahlot@gmail.com




0 likes

Published By

Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

anjugahlot

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.