वीडियो प्रतियोगिता प्रविष्टि “रेडियो वीक” शीर्षक-रेडियो”(कविता)

रेडियो सबसे पहला लोकप्रिय मनोरंजन -उपकरण है.

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 17 Feb, 2024 | 1 min read

स्वरचित कविता( गीतात्मक)

शीर्षक-"रेडियो बजता था"


रेडियो बजता था लग जाती थी गानों की झड़ी-

मीठी आवाज सुनकर मिलती थी खुशी भी बड़ी.


सुरीले वाद्य की ध्वनि ही जगाती थी हमें

तिथि,दिन,माह,समय घोषिका बताती हमें

चौपाइयां,भजन,सबद सभी मन भाते थे

गीत फरमाइशों के हम भी गुनगुनाते थे

मुशायरे में उर्दू ,फारसी गजब ढाती

गजल अदब से श्रोता के दिलों में मुस्काती

पढ़ाई में न मन लगे था,बोर लगती बड़ी

झूमता रहता था मन,रह जातीं किताबें पड़ी

रेडियो बजता था लग जाती थी गानों की झड़ी...

मीठी आवाज सुनकर मिलती थी खुशी भी बड़ी.



सुबह उठते ही घर में होता भक्ति का आलम-

कानों में गूँजता रहता था वन्देमातरम,

विविध-भारती का कार्यक्रम वो बंदनवार-

बड़ी मुश्किल से मिले था फुर्सत-ए इतवार,

सुनकर संगीत मधुर लगती थी हर भोर बड़ी.

रेडियो बजता था लग जाती थी गानों की झड़ी...

मीठी आवाज सुनकर मिलती थी खुशी भी बड़ी.


अनादि मिश्र की खबरें सुने बिन चैन कहाँ?

अमीन सयानी की आवाज़ का जादू था जवां,

सीलोन रेडियो भाता था सुबह-शाम हमें-

रात-दिन के मनोरंजन का न खुमार थमे, 

छाया-गीतों में खनकती सरस-सुरों की लड़ी-

सुने बिना न रहते हम हवामहल की कड़ी.

रेडियो बजता था लग जाती थी गानों की झड़ी...

मीठी आवाज सुनकर मिलती थी खुशी भी बड़ी...


'संगीत-सरिता' लुभाती 'बिनाका गीत माला'-

विज्ञापनों ने कितना ज्ञान हमको दे डाला, 

मरफी रेडियो के बेबी का ही तो जादू था-

तन थिरकता था सदा मन पर नहीं काबू था,

समय मिलाते रेडियो से, न देखे थे घड़ी-

लेटकर सुनने से आती थी गहरी नींद बड़ी,

कोई भी दिन न जाता,जिसमें नहीं डाँट पडी.

रेडियो बजता था लग जाती थी गानों की झड़ी...

मीठी आवाज सुनकर मिलती थी खुशी भी बड़ी...


पापा मम्मी की एनीवर्सरी गजब की हुई-

फिलिप्स रेडियो छोटा सा गिफ्ट लेकर गई, 

बेटी से लेते नहीं माँ ने कहा धीमे से-

पापा ने पर लगा लिया था मुझको सीने से,

रात-दिन सुनते थे सिरहाने रखकर ट्रांजिस्टर- 

मीठी यादों में डूब जाते थे पापा अक्सर,

उन्हें यूं देखकर हो जाती थी मैं खुश भी बड़ी-

वक्त ने छीनकर आँखों में छोड़ी अश्रु- झड़ी.

रेडियो बजता था लग जाती थी गानों की झड़ी...

मीठी आवाज सुनकर मिलती थी खुशी भी बड़ी...



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रचनाकार-

डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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