पेपरविफ मंच द्वारा आयोजित प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रेषित मेरा स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित एवं अप्रसारित लेख-
मेरी प्रविष्टि…
शीर्षक- "आपदाएं भेदभाव नहीं करतीं,बल्कि मानवता को एकजुट करती हैं."
इस वसुधा पर यदा-कदा आकस्मिक रुप से आने वाली आपदाएं हमेशा ही विनाशकारी लीलाएं दिखाकर विश्व में तहलका मचा देती हैं,फिर भी कभी न हार मानने वाला मनुष्य अपनी भरपूर ऊर्जा और ताकत से इन प्रतिकूल परिस्थितियों का डटकर मुक़ाबला करता है.
मानवता एकजुट होकर इन विपदाओं से जूझती है.ऐसे में लोगों में परस्पर किसी भी तरह का कोई भेदभाव नजर नहीं आता.धर्म,जाति,रंग,वेशभूषा,भिन्न-भिन्न बिरादरी,गरीब-अमीर, शहरी-ग्रामीण के भेदभाव इन आपदाओं की विभीषिकाओं के सामने स्वयं ही तिरोहित हो जाते हैं.अपने और पराए के नकारात्मक भाव मन में उठते ही नहीं,बल्कि इंसानियत के नाते सभी मिलजुल कर एक हो जाते हैं. ऐसी विपदाओं के समय सहभागिता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करके सहिष्णु, दयालुऔर परोपकारी लोग पीड़ितों की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.
वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक एवं मानव -जन्य आपदाएं निरंतर बढ़ती चली जा रही हैं.
इनमें विशेषतःभूकंप,अतिवृष्टि,बाढ़,आकस्मिक रूप से आने वाले चक्रवाती तूफान,समुद्री सुनामी, भूस्खलन, पर्वतीय चट्टानों का खिसकना एवं बादल का फटना जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ मानव की स्वयं की गलतियों से फैलने वाली भयंकर महामारी जैसे-कोरोना, हैजा आदि से जान-माल की विनाशकारी हानि होती है.
ऐसी आपदाओं का लोगों पर काफी बुरा असर होता है. जीवन तहस-नहस हो जाता है. आहत,मृत,पीड़ित,बीमार और अंग-भंग की त्रासदी से ग्रस्त लोगों से परिस्थितियां भयावह भी हो जाती हैं.
आवागमन के रास्ते और सड़कें पूरी तरह से ध्वस्त हो जाते हैं, लोगों के घर-परिवार उजड़ जाते हैं. जब भयंकर बाढ़ का क़हर टूटता है,तो दृश्य मार्मिक हो जाते हैं.घर,धन और कीमती सामानों सहित कितने ही लोग बह जाते हैं. चारों ओर भय का साम्राज्य हो जाता है. ऐसे में पारस्परिक सौहार्द्र की भावना से लोग जब एक दूसरे की मदद करते हैं, तो इंसान दया और भलाई के भाव लेकर जी-जान से सहायता-कार्य में जुट जाता है.
शाश्वत सत्य यही है, कि कष्ट के ऐसे दौर में लोगों की सोई हुई इंसानियत जाग उठती है और उनकी आत्मा कुलबुलाकर उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाती है. साथ ही भाईचारे की भावना को भी बलवती कर देती है.
इस संपूर्ण मानव जगत में, जब-जब ऐसी मारक आपदाएं सिर उठाती हैं,तब -तब लोगों में दया और सहानुभूति के भाव जागते हैं और वे अपने कर्तव्य का पालन करते हुए इन जोखिमों को उठाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते.
इन प्रतिकूल परिस्थितियों और चुनौतियों का सामना करने के लिये सदैव ही इस धरती पर मानवीयता का भाव उजागर हुआ है.
आजकल भीषण साइबर-क्राइम के हमले भी मानवता के लिये कलंक साबित हो रहे हैं,जो कि स्वयं मानव द्वारा मानव पर लादी गई छद्म-आपदा है.
प्राकृतिक आपदाओं के मुख्य कारण हैं- पर्यावरणीय-प्रदूषण,वृक्षों की अंधाधुंध कटाई,पहाड़ी चट्टानों का कटाव, कृषि-भूमि का दुरुपयोग, बहु मंजिला इमारतों का निर्माण,कूप,ताल,जोहड़, सरोवर आदि का खात्मा, अनियंत्रित शहरीकरण,प्लास्टिक कचरे का जमावड़ा,मॉल- संस्कृति का विस्तार एवं परमाणु शस्त्रों का प्रयोग आदि.
यही कारण है,कि विकसित विश्व का सपना धराशायी हो रहा है और प्रकृति अपने प्रकोप से मानव को बार-बार सचेत कर रही है.
विदेशों में जाकर हम वहाँ के स्वच्छ परिवेश और स्वस्थ पर्यावरण की भूरि-भूरि प्रशंसा तो करते हैं, पर अपने देश में वापस आकर लापरवाही बरतते हुए अपने घर में तो सफाई रखना चाहते हैं,लेकिन बाहर पड़े हुए कूड़े के ढेर,उद्यानों एवं सड़कों के किनारे फैली गंदगी को देखकर भी लापरवाह रहते हैं. कूड़ेदान का प्रयोग करने में भी कोताही बरतते हैं.
ऐसे प्रदूषित परिवेश में जैविक आपदाएं आना स्वाभाविक ही है. सावधानी रखकर एकजुटता से इनका सामना किया जा सकता है.
कहते हैं "दु:ख सभी को मांझता है", "विपत्ति सबको एकजुट कर देती है" मानवता का भाव लेकर ही इन त्रासदियों से निपटा जा सकता है.
आपदाएं धरती पर कभी किसी का कोई परिचय नहीं मांगती,बल्कि सबको समान रूप से तबाह करती हैं.
विडंबना तो देखिये,कि इन्हीं आक्रामक होती हुई भीषण आपदाओं ने विपरीत परिस्थितियों में हमेशा मानवता को जोड़ने का काम किया है.
इसका ज्वलंत उदाहरण है-हाल ही में सन २०२०-२१में विश्व में फैली विभीषिका “कोविड-१९का समय”,जब घर के अंदर रहकर ही लोगों ने एक दूसरे को भरपूर मदद पहुँचाकर परस्पर सेवा भाव कायम रखने का सबक दिया.
स्वयंसेवकों के सेवाकार्य,समाजसेवी एवं धार्मिक संस्थाओं के लंगर-आयोजन,भले लोगों द्वारा ऑक्सीजन सिलेंडर देकर की गई मदद आदि नेकदिल इंसानियत का प्रभावी उदाहरण बनी.
डिजिटल दुनिया में कोरोना के कठिन-काल में लोगों ने अपने विचार और सुझाव ,ऑनलाइन कार्यक्रमों में भाग लेकर, बोलकर,लिखकर एवं अन्य तरीकों से व्यक्त किये एवं स्वयं को सुरक्षित रखते हुए सक्रिय होकर सबका ध्यान रखा. साथ ही आपसी संबंधों को मधुर बनाने का प्रयास किया. विपरीत परिस्थितियों के अतिरेक और कोरोना की भीषण-आपदा ने ही उन्हें ऐसा जुझारू और सराहनीय प्रयास करने के लिये प्रेरित किया.
आपदाएं हमेशा ही पुनीत-मानवता को पुकारती हैं,जहाँ किसी को भी,कहीं भी,किसी भी तरह का कोई आपसी भेदभाव नजर नहीं आता.धर्म,जाति,रंग,वेशभूषा और बिरादरी के भेद प्राकृतिक आपदाओं एवं विभीषिकाओं के सामने स्वयं ही तिरोहित हो जाते हैं. अपने-पराए के नकारात्मक भाव मन में उठते ही नहीं,बल्कि इंसानियत के नाते सभी एकजुट हो जाते हैं. ऐसी विपदाओं के समय में सहभागिता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करके परोपकारी लोग पीड़ितों की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.
हाल ही में अगस्त सितंबर-2025 में उत्तराखंड में बादल फटने से बाढ़ और भूस्खलन की आपदा से हुए विनाश से निपटने के लिये लोगों और संस्थाओं ने एकजुट होकर पीड़ित लोगों की भरपूर मदद करते हुए इंसानियत का परिचय दिया.
हेलीकॉप्टरों द्वारा दवाइयां और भोजन-सामग्री सहित अन्य सहायक सामग्री वितरित की गईं. जरूरत के अनुसार मदद हेतु मानव शक्ति भी उपलब्ध कराई गई.
घायलों को अस्पताल ले जाना, डूबते हुए लोगों को बचाना, बेघर लोगों को सुरक्षित जगहों पर बसाना जैसे काम सक्षम लोगों ने बेझिझक होकर किये.
फसलें चौपट हो जाने के कारण पहाड़ी इलाकों में लोगों
को कष्टप्रद परिस्थितियों का सामना करना पड़ा.
सामूहिक रूप से एकजुट होकर लोगों ने मानवीयता की सारी खूबसूरती और सोच को दैनिक क्रियाओं में शामिल कर दिया था, परिणाम स्वरूप इस भीषण विपदा ने मानव जगत को उसके अस्तित्व का भान कराया, उसे चिंतनशील बनाया.
कोरोना के समय भी लोगों ने अपने भीतर छिपी हुई योग्यताओं एवं कला-कौशलों को, घर के भीतर रहकर ही बाहर निकाला और ऑनलाइन इलेक्ट्रिक उपकरणों के माध्यम से विश्व स्तर पर स्वयं को जोड़ने का प्रशंसनीय कार्य किया. प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझकर खुद को ऊपर उठाने का जज्बा सबके दिलो- दिमाग और तन-मन में जगाया.
ऐसे डरावने समय में भी, जबकि मौत का तांडव सरेआम हो रहा था, कोरोना की चपेट में आकर अनगिनत जानें चली गईं,लेकिन हिम्मत न हारने वाले एकजुट होने वाले लोगों ने आशा और विश्वास के साथ मुस्कुराते हुए कैंडल मार्च निकाला, दीप जलाए, तालियां बजाईं, निराकार ईश्वर के प्रति श्रद्धा और आस्था दिखाते हुए आस्तिकता के भाव जगाए और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिये आगे आए.
मजबूतआपदा-प्रबंधन हेतु सरकारी प्रयासों के साथ ही मानव समुदाय को भी आपदा से निपटने हेतु पूर्व-तैयारी कर लेनी चाहिये.
वैसे भी आपदाएं विश्व के लिए चुनौती हैं.नुकसानदायक भी हैं.
हमारे देश में क्रमशःसन 1999 में उड़ीसा का तूफान, 2001 में गुजरात का भूकंप,2007 में इंडोनेशिया की सुनामी, 2013 में केदारनाथ का जल प्रलय,2014में भूस्खलन, 2024 में चक्रवाती तूफान का प्रलय जैसी आपदाएं आकर तबाही मचाकर गईं.
हमें इन आपदाओं से सबक तो लेना ही होगा.
"वैसे भी संकट से उपजी संवेदनाएं अनमोल होती हैं"
आपत्ति के समय सबसे पहले स्थानीय लोग ही मददगार साबित होते हैं.
आपदाएं खतरों के रूप में आती हैं, लेकिन"खतरों के खिलाड़ी" भी कभी अपनी हार नहीं मानते और इनसे डटकर जूझते हैं.
"ये आपदाएं भेदभाव नहीं करतीं,बल्कि मानव समाज को एकजुट कर देती हैं."
ऐसी आपदाओं के समय सहभागी बनकर नेक दिल मानव-समाज सहानुभूति, सद्भाव, दया और सेवा का प्रदर्शन करते हुए पीड़ितों की मदद करता है और मानवता का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है.
एंबुलेंस सेवा, अग्निशमन सेवा,घायलों की प्राथमिक चिकित्सा जैसी जरूरी सहायता पीड़ितों को त्वरित राहत पहुँचाकर लोगों को सुकून देती है.
कोविड-19 के समय भी ऐसी ही मानवता की मिसाल प्रस्तुत करने में लोग अग्रणी रहे.संवेदना की ताकत ने ही कीमती जानें बचा लीं. परहित भाव से भरे हुए दिलों ने सबका दिल जीत लिया. "वसुधैव कुटुंबकम"की उक्ति चरितार्थ हुई.
भारतीय सभ्यता और संस्कृति का इससे अधिक प्रशंसनीय उदाहरण भला क्या हो सकता है?
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लेखिका- डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
ई मेल-anjusinghgahlot@gmail.com
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