Titleसांता बनकर आऊं मैं (कविता)

सांताक्लाॅज बनकर मैं धरती पर सच्चे इंसानों की दुनिया बनाना चाहती हूँ।

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कविता(प्रतियोगिता हेतु)

स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता

शीर्षक-"सांता बनकर आऊं मैं"


इस क्रिसमस के सुखद पर्व पर,सांता बनकर आऊं।

मेरे मन में आस जगी है,गीत खुशी के जमकर गाऊं ।।

घूमूं गांव के गली,मुहल्ले,बालक बोलें बल्ले बल्ले।

मीठे स्वप्न सजा आंखों में,उनको गले लगाऊं ।।

इस क्रिसमस के...


जन्मदिन ईसा का मनहर,'क्रिसमस डे'मनता है हर घर।

खुशियों में डूबे रहते सब,मैं भी उतरूं उस धरती पर।।

बनकर अजब फरिश्ता बूढ़ा,कांधे झोली लटकाऊं।

दीन दुःखी की पीड़ा हर लूँ,सुख बांटूऔर मुस्काऊं।।

इस क्रिसमस के...


जाकर हर एक दरवाजे पर,दीन-हीन की मदद करूँ ।

देकर उपहारों को क्रम से,हर्षित भीगे नयन करूँ ।।

रोटी,कपड़ा,रहने को घर,सबके हिस्से कर जाऊं।

"बनो दयावान" इंसान सच्चे दिल से,समझाऊं।।

इस क्रिसमस के...


बच्चे खुद ही होते भगवन,राह तकें फिर भी मेरी।

टाॅफी,चाकलेट,मेवे और घंटी की लगती ढेरी।।

क्रिसमस-ट्री को खूब सजाकर,जग को जगमग कर जाऊँ।

सुख-वैभव सबको वितरित कर,सबका दुःख हर सुख पाऊं।।


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 रचयिता- डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली













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