Titleस्वरचित कविता शीर्षक-"कुछ तो लोग कहेंगे"

समाज को हमेशा ही लोगों की परवाह रहती है.

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 03 Dec, 2023 | 1 min read

स्वरचित कविता 

शीर्षक-"कुछ तो लोग कहेंगे"


गांव में ब्याही मेरी मम्मी- 

पापा का संग साथ दिया,

सुगढ़ नार बनकर जीवन में-

हरदम प्रेरक काम किया.

 

दादी बाबा की इज्जत का- 

ध्यान रखा दोनों ने खूब,

बेटी के पैदा होते ही- 

जाने खुशी गई क्यों रूठ?


ताना दिया बड़े बाबा ने-

लक्ष्मी का अपमान किया,

मात-पिता के अरमानों पर- 

सख्त कुठाराघात किया.


चलो चलेंगे दूर शहर में- 

गुजर बस अब वही करेंगे,

ताना मारा है अपनों ने- 

"कुछ ना कुछ तो लोग कहेंगे".


पापा की बातें सुन-सुन कर-

मम्मी मेरी हुईं उदास,

सोच रहीं,बेटी होने पर- 

बातों में क्यों घुले खटास?


मम्मी ने अनुकरण किया- 

पापा के अनुसार चलीं,

घर में तीन बहन हम आईं-

लाड़-प्यार से बढ़ी पलीं.


दो भाई फिर घर-आंगन की- 

शोभा बने, मिलीं बधाई,

"आओ गांव में मिलने सबसे"

दादाजी की चिट्ठी आई.


कब तक दूर रहोगे हमसे- 

कैसे हम यह दर्द सहेंगे?

इंतजार करती हैं आंखें-

सोचो तो,क्या लोग कहेंगे?


कैसा पक्षपात था जालिम- 

विगत जमाना निर्मम था,

किसको,कब,क्या लोग कहेंगे? 

सबसे बड़ा यही गम था.


 निश-दिन जीवन चक्र चला-

 उम्मीदों ने करवट बदली,

 साक्षरता का ध्येय लिये फिर-

 तीनों बेटी घर से निकलीं.


विकट बवाल मचा,बाबा ने-

इस निर्णय का किया विरोध 

सुनकर हा! क्या लोग कहेंगे?

कहने लगे दिखाकर क्रोध.


पापा ने परवाह नहीं की-

मम्मी का भी बढ़ा हौसला,

कदम ना पीछे खींचे अपने- 

अपनों को यह खूब खला.


शैशव से ही लिंग-भेद का- 

कभी ना हमको भान हुआ,

लाड़-दुलार मिला समुचित ही- 

पग-पग पर सम्मान हुआ.


प्रगति पंथ पर चलकर मैंने-

मां बाबा का नाम किया,

पढ़-लिखकर आगे बढ़कर ही 

खुद भी सबको ज्ञान दिया.


पापा का कहना था,हरदम- 

अपना पथ तुम स्वयं चुनो 

कैसे,क्यों,क्या लोग कहेंगे?

उलझन का न जाल बुनो.


इस समाज में कुछ ना कुछ तो-

कहते रहते हैं वाचाल, 

ध्यान न दो उनकी बातों पर

सदा चलो अपनी ही चाल.

 ______

स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता

रचनाकार- डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली


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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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