रसोड़ा

रसोई घर में काम करने वाली, सभी व्यवसायों के हुनर खुद में समेटे हुए होती है।

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Anita Bhardwaj
Anita Bhardwaj 31 Jan, 2021 | 0 mins read
#1000poems

रसोड़ा


रसोड़े में मैं थी,

मेरी तनहाई थी,

रसोड़े में मैंने

मेरी अलग दुनिया बसाई थी।


जहां बर्तनों से विभिन्न प्रकार की

संगीतमय धुन बनाती,

संगीतकार मैं थी।


भांप जांच कर,

कड़ाही का तापमान बताती,

वैज्ञानिक मैं थी।


इतने आटे में कितनी

रोटियां बनेगी ये अंदाजा लगाती,

गणितज्ञ मैं थी।


रसोईघर में राशन को

चींटियों,कोकरोच से सुरक्षित कैसे रखना है ये हिसाब लगती

रक्षामंत्री भी मैं थी।


कोरोनाकाल में जब सब घर बैठ गए,

सबको व्यस्त रखने के लिए

मट्ठी,पूरी बिलवाती,

रोजगार केंद्र भी मैं थी।


जलती हुई रोटी को देख,

बढ़ती हुई गर्मी को देख,

कविता बनाती

कवयित्री भी मैं ही थी।


अब कोई पूछे तुमसे

रसोड़े में कौन था,

तो बता देना

रसोड़े में मैं थी।

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