मां की सासू मां

औरत ही औरत का सच्चा सहारा बन सकती है ।

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Anita Bhardwaj
Anita Bhardwaj 19 Dec, 2020 | 1 min read

" बेटा!! ये आदमी तो औरतों को लड़वाकर अपनी सत्ता कायम रखते हैं। उनकी बातों में आकर क्या लड़ना। असल ज़िंदगी में तो औरत ही औरत का सहारा होती है। चाहे वो मां के रूप में हो, चाहे बहन, चाहे बेटी, चाहे सास, चाहे ननद, चाहे देवरानी जेठानी।" - मां की सासू मां ने कहा।


मां की शादी 13 साल की उम्र में हो गई थी। तब पिता जी की उम्र तकरीबन 15 साल रही होगी।

मां के शहर तक जाने के लिए तो बस चलती थी परन्तु उससे आगे गांव तक बैलगाड़ी, या तांगा ही चलता था।

मां शादी से पहले कभी अपने गांव से बाहर गई ही नहीं थी।

4 भाइयों की लाडली बहन थी, तो कभी नाना ने उन्हें उनकी नानी के घर तक नहीं जाने दिया था।

गांव में एक प्राइमरी स्कूल था वो भी बस लड़कों के लिए तो कभी स्कूल तक भी नहीं गई थी मां।


शादी हुई तो मां ससुराल जाने की खुशी में सारा काम खुद ही करवा रही थी, आज पहली बार गांव की सीमा के पार जा रही थी।

मां की बारात 2 दिन रुकी गांव, तीसरे दिन विदा होते होते रात हो चुकी थी।

मां को विदाई के वक़्त नींद आ गई थी तो , उनकी बुआ ने उन्हें गोदी में उठा कर बारात वाली बस में बिठाया था।

पिता जी भी दोस्तों के साथ बैठने की ज़िद्द में दुल्हन के साथ ना बैठकर बस की पिछली सीट पर दोस्तों के साथ ताश खेलने बैठ गए थे।


बारात पहुंची , मां की सासू मां ने स्वागत किया।

सब देख रहे थे - अरे फूलों!! इतनी दुबली पतली छोरी। वंश कैसे बढ़ाएगी?


मां की सासू मां ने कभी अपने लिए तो किसी को जवाब नहीं दिया था पर मां के लिए जरुर बोली -" अरे!! अभी आई है। खूब खिलाऊंगी, पिलाऊंगी अपनी बेटी को ,अपने आप तगड़ी हो जाएगी।"


सबने मुंह सिकोड़ लिया, लो भला!! सास के घर भी कोई बहू तगड़ी हुई है कभी!!

ससुराल तो चक्की है, आओ और आते ही दो पाटों की तरह पिसते रहो।


मां की खुशी अब तलक तो डर में बदल चुकी थी। सब औरतें अपनी तरह तरह की बातें बनाकर उस तेरह साल की बच्ची को अपने तराजू में तोल रही थी।

धीरे धीरे मेहमान गए , मां की सासू मां ने खाना बनाया और बहू बेटे को खिलाया।


पिता जी ने आते ही बोल दिया, अब मैं बैठक में नहीं सोऊंगा मुझे भी कमरा चाहिए।


मां की सासू मां ने मां को अपने साथ सुलाया। मां को रात को नानी की याद आई और रोने लग गई।

दादी ने बहुत समझाया , पर मां ने एक ना सूनी। फिर दादा जी ने धमकाया - अब सो जाओ , कल छोड़ आयेंगे।


फिर मां दादी से चिपक कर सोई। अगले दिन दोनो सास बहू खेत जाने की तैयारी में लग गई। आते वक़्त दोनो गाय के लिए घास की गठरी लेकर आए।


घर आकर मां जोर से चिल्लाई - सासू मां!! देखो मुझे सांप ने काट लिया , कितना खून बह गया !! देखो मेरे कपड़े!!"


दादी जल्दी से मां को अंदर लेकर गई -" क्या तू इससे पहले महीने से नहीं हुई??"


मां - " महीना क्या होता है मुझे नहीं पता। ये खून बंद करो। मैं मरने वाली हूं मुझे तो सांप ने काट लिया!!"


दादी -" नहीं बेटा!! ऐसा होता है। तुम मेरी बात सुनो मैं बताती हूं।"


मां -" नहीं!! तुम्हे क्यू नहीं काटा फिर, सासू मां?"


दादी -" बेटा !! ये सबके साथ होता है। चुप हो जा। तुझे आंगनवाड़ी वाली चाची के पास ले जाऊंगी वो समझाएगी।"

और सासू मां नहीं मां बोला कर, लेे दूध पी ले थोड़ा और सो जा।


तभी मां की चाची सास आई, अरी!!! बहू ऐसे बेसुध क्यू पड़ी है??? पेट से है क्या??


दादी -" नहीं नहीं अभी तो बच्ची है। थक गई खेत से आए थे।"


चाची सास -" अरे इतना सिर ना चढ़ा बहू को!! 13 साल की उम्र में मेरा बेटा भी हो गया था। "


दादी -" अभी कच्ची उम्र है, कच्चे मटके में पानी भरना कौनसी अच्छी बात है?"


चाची -" अरे !! मतलब बहू को छोरे के साथ ना सोने देती तुम जीजी??"


दादी -" ना अभी नहीं!! मेरे साथ जो हुआ कच्ची उम्र में मेरी बहू के साथ नहीं होने दूंगी।"


चाची -" अरे !! जब मां बाप ने ना सोची इतनी तो जीजी तुम क्यों इतना सोच रही हो?? तुम तो सास हो !!"


दादी -" मै सास नहीं इसकी दूसरी मां ही हूं।"


मां दादी कि बातें सुन रही थी , जो डर मां के दिल में सास के लिए बैठा हुआ था। सब ख़तम हो गया। और मां अपनी दूसरी मां के गले मिलकर खूब रोई।


तब दादी ने समझाया -" एक औरत को औरत ही समझ सकती है। आदमी तो औरत को बहलाता है कि बस मैं ही हूं तुझे समझने वाला। औरत ही दूसरी औरत का असली सहारा है। आज अगर मैंने तुझे सहारा नहीं दिया तो बुढ़ापे में तू कैसे मेरा सहारा बनेगी??


ये तो मन का वहम है कि बेटे सहारा होते है बुढ़ापे का ,असल में तो बहू सहारा बनती है बुढ़ापे का। तू तो फिर भी मेरी बेटी है।"


दादी ने मां का खूब साथ दिया इतना की वो अपनी सगी मां का प्यार भी भूल गई। और सासू मां के रूप में मां को मिली अपनी दूसरी मां।


सचमुच इंसानियत और समझदारी किसी डिग्री से नहीं आती।अगर सब औरत ऐसा सोचे की जो हमारे साथ हुआ वो अगली पीढ़ी के साथ ना हो तो कोई बेटी विदा होते वक़्त ना रोए। अगर औरत ही औरत का सहारा बने तो ये वृद्धाश्रम जैसी दीमक भी ख़तम हो जाए।


आप भी अपने विचार जरुर लिखे।

आपकी स्नेह प्रार्थी

अनीता भारद्वाज




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Anita Bhardwaj

anitabhardwaj

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    beautifully presented

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Bahut achi kahani. Aisi samajh har Ghar mein ho

  • Anita Bhardwaj · 3 years ago last edited 3 years ago

    जी शुक्रिया आपका

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