कन्यादान

कन्यादान एक रस्म है, पर बेटी को दान कि वस्तु समझना क्या सही है!!

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Anita Bhardwaj
Anita Bhardwaj 29 Jan, 2021 | 1 min read

कन्यादान


जिस रिश्ते की शुरुआत ही दान से हुई,

उसमें मैं सम्मान कैसे पाऊंगी बाबा,

मेरी जगह जो तुम्हारे दिए दान दहेज को पूछेंगे,

उनके घर मैं कैसे रह पाऊंगी बाबा!


हर त्योहार पर शगुन के बहाने,

महंगे तोहफों की आस लगाए रहेंगे,

क्या वो दान में दी हुई,

तुम्हारी बेटी की इज्जत कर पाएंगे बाबा!


दान पेटी में डाले हुए रूपए,

चले जाते हैं अंधेरे पिटारे में,

तुम्हारी दान दी हुई बेटी के सपने भी,

यूंही पड़े मिले मिलेंगे उनके घर के किसी किनारे में बाबा!


ये दान दी हुई कन्या का तमगा

मेरे माथे से हटा दो बाबा,

कन्यादान की जगह कन्याविवाह

कहने की रस्म चला दो बाबा!


मेरी बेटी शादी के बाद भी,

मेरी बेटी ही रहेगी,

ये कहकर मेरा मान बढ़ा दो बाबा,

कन्यादान की जगह

कन्याविवाह कहने की रस्म चला दो बाबा!!


#1000poems

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Anita Bhardwaj

anitabhardwaj

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Shubhangani Sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर रचना

  • Anita Bhardwaj · 3 years ago last edited 3 years ago

    जी शुक्रिया

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