जन्माष्टमी

वेदों और उपनिषदों की व्याख्या करना बड़ा मुश्किल है, और संसारी जीवों को तो उसका अर्थ भी नहीं उतरता। इसलिए वेद जिनकी सांसें हैं, उन्ही श्रीभगवान ने आविर्भूत होकर गीता कर प्रचारक के रूप में श्रुति का अर्थ समझाया, और आश्चर्य यह कि इसे उपनिषदों और वेदों का निचोड़ माना गया। यहां आदि शंकराचार्य को अद्वैत मर दिखता है तो श्रीरामानुजाचार्य को विशिष्ट अद्वैत तो श्रीमध्व आचार्य को द्वैत दिखता है। सभी मत और सम्प्रदाय यहां आकर अपनी पूर्णता को प्राप्त हो जाते हैं। श्रीभगवान जब कहते हैं कि तुम हर मार्ग से मेरी ही आराधना करते हो, तो मन से सभी संशय और भय समाप्त हो जाते हैं। श्रीभगवान कहते हैं कि यह सारा जगत मुझमे वैसे ही गूंथा है जैसे धागे में मणि रहती है, क्योंकि मुझसे अलग तो कुछ है ही नहीं, तो सारी संकीर्णता और भेदभाव की दीवार गिर जाती है। गीता के वाक्य, श्रीकृष्ण की वज्र के समान गंभीर और महती वानीसब के बंधन तोड़ देती है और सभी को परम् पद का अधिकारी बना देती है। पलायन तो उनके शब्दकोश में नहीं था। कर्मयोगियों में सर्वश्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने उपदेशों को जिया, और कहा कि कर्म किए बिना कोई नहीं रह सकता, कर्म करो लेकिन उसका विज्ञान समझो, कर्म जम के करो लेकिन फल की चिंता न करो, उलझ मत जाओ, कर्म का एकमात्र उद्देश्य है आत्मशुद्धि, इसलिए चिंता न करो, श्रीभगवान की शरण मे आ जाओ और वह तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर देंगे। जिन्हें राजसूय यज्ञ में मेहमानों के जूते साफ करने में भी आनंद आता है, और अपने भक्त का रथ हांकने में भी, जिन्हें मिट्टी खाने में मजा आता गई और गरीब सुदामा के सूखे चावल भी, ऐसे महानतम श्रेष्ठतम प्रियतम अद्भुत आश्चर्य और विरोधाभास से भरे हुए साकार और निराकार से परे श्रीकृष्ण ही मेरी गति हों, मेरे आश्रय हो, और मैं अनन्तकाल तक उनका दास रहूं। जहां जहां जाऊं करूं तेरी सेवा तुम सम ठाकुर और न देवा।।

Originally published in hi
Reactions 0
481
Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 0 mins read

वेदों और उपनिषदों की व्याख्या करना बड़ा मुश्किल है, और संसारी जीवों को तो उसका अर्थ भी नहीं उतरता। इसलिए वेद जिनकी सांसें हैं, उन्ही श्रीभगवान ने आविर्भूत होकर गीता कर प्रचारक के रूप में श्रुति का अर्थ समझाया, और आश्चर्य यह कि इसे उपनिषदों और वेदों का निचोड़ माना गया। यहां आदि शंकराचार्य को अद्वैत मर दिखता है तो श्रीरामानुजाचार्य को विशिष्ट अद्वैत तो श्रीमध्व आचार्य को द्वैत दिखता है। सभी मत और सम्प्रदाय यहां आकर अपनी पूर्णता को प्राप्त हो जाते हैं। श्रीभगवान जब कहते हैं कि तुम हर मार्ग से मेरी ही आराधना करते हो, तो मन से सभी संशय और भय समाप्त हो जाते हैं। श्रीभगवान कहते हैं कि यह सारा जगत मुझमे वैसे ही गूंथा है जैसे धागे में मणि रहती है, क्योंकि मुझसे अलग तो कुछ है ही नहीं, तो सारी संकीर्णता और भेदभाव की दीवार गिर जाती है।


गीता के वाक्य, श्रीकृष्ण की वज्र के समान गंभीर और महती वानीसब के बंधन तोड़ देती है और सभी को परम् पद का अधिकारी बना देती है।


पलायन तो उनके शब्दकोश में नहीं था। कर्मयोगियों में सर्वश्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने उपदेशों को जिया, और कहा कि कर्म किए बिना कोई नहीं रह सकता, कर्म करो लेकिन उसका विज्ञान समझो, कर्म जम के करो लेकिन फल की चिंता न करो, उलझ मत जाओ, कर्म का एकमात्र उद्देश्य है आत्मशुद्धि, इसलिए चिंता न करो, श्रीभगवान की शरण मे आ जाओ और वह तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर देंगे।


जिन्हें राजसूय यज्ञ में मेहमानों के जूते साफ करने में भी आनंद आता है, और अपने भक्त का रथ हांकने में भी, जिन्हें मिट्टी खाने में मजा आता गई और गरीब सुदामा के सूखे चावल भी, ऐसे महानतम श्रेष्ठतम प्रियतम अद्भुत आश्चर्य और विरोधाभास से भरे हुए साकार और निराकार से परे श्रीकृष्ण ही मेरी गति हों, मेरे आश्रय हो, और मैं अनन्तकाल तक उनका दास रहूं।


जहां जहां जाऊं करूं तेरी सेवा

तुम सम ठाकुर और न देवा।।


0 likes

Published By

Aman G Mishra

aman

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.