कौए को दंड:कहानी

Originally published in hi
Reactions 0
427
Aman G Mishra
Aman G Mishra 28 Sep, 2019 | 1 min read

कौए को दंड


एक बार देवराज इंद्र पृथ्वी की ओर देखते हुए हाथ जोड़कर नमस्कार कर रहे थे। उस समय वहाँ उनका पुत्र जयंत भी उपस्थित था। वह विस्मित होकर बोला, ‘‘पिताश्री, आप किसे प्रणाम कर रहे हैं?’’

 


इंद्र बोले, ‘‘पुत्र! संसार के कल्याण के लिए भगवान् विष्णु अयोध्या के राजा दशरथ के घर श्रीराम के रूप में अवतरित हुए हैं। मैं उन्हीं भगवान् राम को प्रणाम कर रहा हूँ। इन दिनों वे अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट पर्वत पर निवास कर रहे हैं। उनके आगमन से पृथ्वी पुण्यमयी हो गई है। जयंत, तुम भी उनके दर्शन करो। इससे तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा।’’

 

‘‘जैसी आपकी आज्ञा, पिताश्री।’’ यह कहकर जयंत चित्रकूट की ओर चल पड़ा।

 


उस समय श्रीराम कुटी के निकट बैठे अपना धनुष ठीक कर रहे थे। सीता पुष्पों की माला गूँथ रही थीं। लक्ष्मण कंद-मूल लेने वन में गए हुए थे।

 


श्रीराम की जटाएँ और गेरुए वत्र देखकर जयंत सोचने लगा —‘ये वनवासी साधारण मनुष्य की भाँति प्रतीत हो रहे हैं। ये कदापि भगवान् विष्णु के अवतार नहीं हो सकते। पिताजी से अवश्य कोई भूल हुई है अथवा इन्होंने स्वयं को भगवान् के रूप में प्रचारित कर रखा है। ये अपनी रक्षा नहीं कर सकते, फिर भला सृष्टि का कल्याण कैसे करेंगे! मैं अभी परीक्षा लेकर इनके सत्य को संसार के समक्ष स्पष्ट कर दूँगा।’

 


श्रीराम की साधारण वेशभूषा ने जयंत को भमित कर दिया। उसने बिना सोचे-समझे भगवान् की परीक्षा लेने की ठान ली। अपने इस मूर्खतापूर्ण कार्य को संपन्न करने के लिए उसने कौए का रूप धारण कर लिया। फिर सीता के पैर पर चोंच मारकर तेजी से उड़ गया।

 


प्रहार इतना तीव्र था कि वहाँ से रक्त की धारा बहने लगी। दर्द की अधिकता से सीता की आँखों से आँसू निकल आए।

 


सीता को इस प्रकार दर्द से कराहते देखकर श्रीराम के क्रोध का ठिकाना न रहा। उन्होंने उसी समय एक तिनके को उठाया और उसे कौए की ओर फेंक दिया। तिनका ब्रह्मात्र के समान शक्तिशाली होकर जयंत के प्राण लेने को उद्यत हो उठा। उसका अहंकार खंडित हो गया और वह अपने प्राण बचाता हुआ एक-एक कर ब्रह्माजी, श्रीविष्णु और शिवजी की शरण में पहुँचा। परंतु श्रीराम जिस पर कुपित हो जाएँ, उसे भला कौन शरण दे सकता था!

 


अंत में जयंत अपने पिता इंद्र के पास गया और उन्हें सारी घटना कह सुनाई।

 


तब तक काल रूपी तिनका भी जयंत का पीछा करते हुए इंद्रलोक पहुँच चुका था। इंद्र ने उसे भगवान् राम की शरण में जाने का परामर्श देते हुए कहा, ‘‘जयंत! गर्ववश तुमने भयंकर अपराध किया है। अब तुम्हारे प्राणों की रक्षा केवल श्रीराम ही कर सकते हैं। इसलिए तुम उन्हीं की शरण में जाओ। भक्त-वत्सल भगवान् राम तुम्हें अवश्य क्षमा कर देंगे।’’

 


कौआ रूपी जयंत उसी समय भगवान् श्रीराम की शरण में गया और अपने अपराध के लिए क्षमा माँगने लगा। श्रीराम का हृदय पिघल गया और वे मधुर स्वर में बोले, ‘‘जयंत! मैं तुम्हारा अपराध क्षमा करता हूँ। किंतु यह तिनका अभिमंत्रित है। कार्य पूर्ण किए बिना इसका लौटना असंभव है। इसलिए अपने प्राण बचाने के लिए तुम्हें अपने किसी एक अंग का बलिदान देना होगा।’’

 


तब जयंत के कहने पर भगवान् श्रीराम द्वारा अभिमंत्रित तिनके ने उसकी एक आँख फोड़ दी। इस प्रकार जयंत के अपराध को क्षमा कर भगवान् राम ने उसके प्राण बचा लिये। कहते हैं कि तभी से कौआ जाति कानी हो गई।

0 likes

Published By

Aman G Mishra

aman

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.