पहिए का योगदान

Originally published in hi
Reactions 0
415
Aman G Mishra
Aman G Mishra 03 Sep, 2019 | 1 min read

मानव इतिहास में पहिए के योगदान को नकारा नही जा सकता पर अगर कोई और आविष्कार उसकी तुलना करने योग्य है तो वो "मोबाइल" ही हो सकता है.. "अतिथि देवो भव :" से अब हम "मोबाइल देवो भव:" के संस्कारों पर स्थगित हो चुके है.. घर परिवार के छुट्टी वाले दिन आज कल कोई पिकनिक या घूमने जाने की बात नही करता... लोग अपनी ही उम्र के लोगो से ही बात करने तक सीमित हो चुके है.. बच्चे अपने दोस्तों से नये नये एप्स और गेम्स की बात में मशगूल है, तो किशोर-किशोरियाँ फैशन सेल और सिंबल को लेकर, युवा वर्ग दो तबकों में बँट चुका है सिंगल और कपल | सिंगल वाले लोग अपना समय निकालने के लिए ट्रेवलिंग, मूवी, डेटिंग या पॉर्न की खोज में लगें है और कपल वाला वर्ग हमेशा की तरह एक दूसरे में गुम है | इस पर समय और तकनीक का महज इतना ही प्रभाव पड़ा है कि जो कपल 50 के दशक में एक दूसरे के साथ पढ़ाई के नोट्स बदली करता रहा, 80 के दशक में गलबाहिया डाले सिनेमा में लीन हो गया | 2000 तक आते आते कॉफ़ी शॉप्स और डेटिंग्स काफ़ी आम हो गया | युवा लोगों के इसी क्रमश: विकास के कारण ही आज के माता पिता अपने बच्चो के बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के साथ सहज हो पाएँ है |


खैर, मुद्दे की बात, इन सभी वर्गों में एक ही टूल है जो सभी को जोड़े हुए है.. मोबाइल | कभी सोचता हूँ, अगर मोबाइल, खास तौर से वो स्मार्ट वाला मोबाइल नही होता तो क्या वो स्मार्ट वाला गुण इंसानो में ही बरकरार रह पाता या फिर भी सब इसी तरह चल रहे होते.. ? लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी, ये है कमाल की चीज़. क्या नही है इसमे.. देखा जाए तो तकरीबन सौ उपकरणों के ताने बाने को जैसे एक ही तार में पिरो दिया हो | अब इंसान एक कालकुलटेर, विडियो कैमरा, रिकॉर्डिंग यूनिट, वॉकमॅन, दसियों ऑडियो कैसेटस्, कॅलंडर, हज़ारों किताबें, बड़ा सा BSNL का फ़ोन, टॉर्च, नाम और फ़ोन नंबर वाली डायरी, पोर्टेबल गेम्स , फोटो एलबंस, अख़बार, नक्शे, घड़ी कम्पास और भी ना जाने क्या के अफ़लातून, सब एक साथ उठाए हुए अच्छा थोड़े ही लगेगा... तो बनाने वाले ने एक छोटा डिवाइस बना दिया जैसे अलादीन का जादुई चिराग, बस ज़रा सा घिसो और जो इस्तेमाल करना हो मिल जाएगा.. तुरंत | 

कभी मुझे पचासों फोन नंबर याद रहते थे, लोगों के पते और पिन कोड तक याद रहते थे, सालों पहले की भी याददाश्त ऐसी थी मानों कल ही बात हो, पर आज कल कुछ ज़्यादा याद नही रहता, हो सकता है ये मेरे ही दिमाग़ में फितूर हो, मगर कुछ युवाओं से, जिनसे मैने बात की यही समस्या उनको भी थी, और उसपर अख़बार में आती सुर्खियाँ, "ब्लू व्हेल, पबजी - गेम लगातार खेलने के कारण किशोरों में आक्रोश का बढ़ता व्यवहार और उसके बुरे नतीजे"| आज कल माता पिता पैदा होते ही बच्चे को मोबाइल थमा देते है "क्या करें छोड़ता ही नही, ना दें तो रोता ही रहता है" , मैं ग़लती नही निकाल रहा, मगर इसे एक शॉर्ट कट की तरह बच्चों को थमाने के ही ये परिणाम प्रतीत होते है.. अकेलापन और अवसाद| 


"मानव एक सामाजिक पशु है", इस बात से अगर सामाजिक ही निकल जाएगा तो उसमे पशुओं के ही गुण बचेंगे ना, और मानव के सामाजिक बने रहने के लिए उसे लगातार एक दूसरे से मेल मिलाप रखना होगा.. और यही मूल विषय है आज के इस लेख का, वो सभी बातें या काम जो हमें लोगों से अधिकाधिक मिलने से रोकें उनका विरोध करें उनका बहिष्कार करें.. जैसे मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल, कभी गौर से देखे कि आपका स्क्रीन टाइम कितना आ रहा है, और उतने देर में कितने लोंगों से आप जुड़ सकते थे? या अगली बार जब आप ऑनलाइन शॉपिंग करें तो एक बार ज़रूर सोचिए यदि यही सामान आपने दुकान जा कर लिया होता तो आप कितने लोगों से मिले होते ? पर हाय रे मोबाइल, इसके मुकाबले हमे बाकी किसी चीज़ मे रस ही नही आता, क्या मिलेगा उन अंजान लोगों से मिलकर, कौन से मेरे जानकार है? आज तक भी तो उनसे नहीं मिला तो कौन सा पहाड़ टूट गया? ये बहस अनवरत है और हमेशा नई भी | हर बार लोग दोनो और खड़े होंगे और लड़ रहे होंगे, पर एक चीज़ जो कोई नही देख रहा है, मेरे जैसे कितने लोग है जो पहले इसके विरोध में खड़े थे और आज इसके पक्ष में.. बदलाव तो आ रहा है | 


चलो आप भी इसके बारे में सोचना और कुछ विचार आए तो बताना जो मैं किंचित भूल गया हुंगा.. 


और ऐसे तपते हुए विचार लेकर जल्द ही आउँगा


आपका..

0 likes

Published By

Aman G Mishra

aman

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.