सपनो की उड़ान ( आत्मबल)

कर्म फल की प्रधानता।।

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Akhilesh  Upadhyay
Akhilesh Upadhyay 22 Jul, 2020 | 1 min read

आशंकाओं से दूर सुबह सुबह मेरी माता - जी की ध्वनी ( टेर के समान ) मेरी नींद को खण्डित कर देती है...

 सारे काम की सूची ,नींद में भी विचार करने में विवश कर देती थी।

चलो अच्छा है ! 

आज फिर जल्दी जल्दी काम के पश्चात् कुछ बेहतर करने का प्रयास करूंगा ...

ओह! (अफ़सोस )

आज की ताजा खबर - " चाबहार बंदरगाह के निर्माण में ईरान ने चीन से मिलाया हाथ"।

अरे अरे ! 

पूरी मनोदशा ही बदल गई मेरी....

हमेशा कुछ नया करने की सोच , मैं खुद के लिए चुनौतपूर्ण समझता हूं।

 आपका पूरा दिन आपकी चित्त , मनोदशा और कार्यप्रणाली पर निर्भर करता है...

वास्तविकता में ही प्रकाश की लव का कोई अर्थ निकलता है ... ना की इच्छा मात्र से आप कुछ हासिल कर सकते है।

नींद पर विजय प्राप्त करना हर किसी के वश में नहीं होता है ...लेकिन शुक्रगुजार हूं मैं अपने परिवाजनों का , जिनकी कटाक्ष रूपी बातें सुबह मुझे आलस्य से निकलने में मदद करते है ..

गुस्सा तो बहुत आता है परन्तु ज्ञात है मुझे बिना इनके मेरे अन्तर्मन के दूसरे आलस्य अवतार को समझाया नहीं जा सकता है।।

"यह क्रियात्मक पथ है जिसमें वस्तुस्थिती कुछ और ही प्रतीत होती है।"

जो विशेष रूप से नष्ट होते हुए चराचर सभी रूपों में नाशरहित कर्म फल को प्रधानता प्रदान करता है। 

क्रमवार प्रतिबिम्बित प्रति दिन का लेखा जोखा तैयार करके मैंने फिर एक बार अपने सपनों को पूरा करने के ध्येय से एक कदम आगे बढ़ाया , इन सबके लिए मेरे पूरे परिवार का समर्थन और विस्वास मुझे सांत्वना देता है...

 बुजुर्गों का भी हमारे जीवन में एक अहम किरदार होना .....

दादा जी के बोल वचन , दादी मां की फटकार भी बहुत काम आती है ।

एक मध्यम वर्गीय परिवार के लिए कुछ बड़ा हासिल करना कठिनाई पूर्ण होता है ।

मेरे वैचारिक दृष्टिकोण से सपनों को पूरा करना ज़रूरी नहीं बल्कि आपने उसपर कितनी मेहनत की ये बल देता है,

आपकी एक पहल आपको एक अलग पहचान दिलवा सकती है ...

पिता जी की बीमारी , माता जी का त्याग और बहन की पढ़ाई भी कहीं ना कहीं आत्मबल को और मजबूत बना देती है ...

बस आशा की यही एक अंतिम किरन को मुझे किसी ना किसी तरह से जलाएं रखना है ....

जिम्मेदारियां जो कभी मेरी बड़ी बहन ने खुद अपने ऊपर ले रखी है उन्हें इस ज़िम्मेदारी से मुक्ति दिलाकर उन्हें भी इस विरह से निजात दिलाने की लालसा अन्तर्मन को झकझोर कर रख देती है...

वाह! ..वाह!..

कितना मनोरम दृश्य होगा जब मैं खुद अपने पैरो पर खड़ा हो जाऊंगा ।

कभी कभी खुद को समय ना दे पाना मेरे सपनो की राह में बाधा ज़रूर डालते थे ....

दिन भर का काम और उस पर थकान , सब कुछ सही नहीं कहा जा सकता था। 

मेरी आत्मसंतुष्टि मेरी सपनो को खोखला नहीं होने देती ।

थकान कितनी भी हो रात की नीद से लड़ झगड़कर खुद को निर्दोष साबित करने में माहीर हूं... मैं!

सुबह की शुरुआत मेरे पिछली रात को दोषमुक्त कर दे इसीलिए लगातार खुद को अद्यतन करना ।

एक पंक्ति का चित्रण करना उचित है ....

कर्तव्य पथ पर अडिग रह , 

न कर व्यथा, सिंह नाद कर ।

     चल विचल अधर तन, परिश्रम कर ,

     मन चंचल नील ,नवल किशोर कर।।

जीवन की अंतिम आस और उस पर अमल करना ज़रूरी है इसीलिए लगातार अग्रसर होकर मैंने स्वयं को सराहा और मजबूती से सब कुछ खेल जाऊं ...

इस उम्मीद के साथ हर रोज़ हालातो पर विचार करता हूं।।

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Akhilesh Upadhyay

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