शीर्षक - ज़िन्दगी एक खेल

GAMING MANIAC...

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Akhilesh  Upadhyay
Akhilesh Upadhyay 22 Jul, 2020 | 1 min read
#GAMING MANIAC#

संकीर्ण विचार जब जीवन के आनंद को समेटने या फिर भंग करने की कोशिश करते है तो सबसे पहले इंसान अपनी गलतियों पर फूट - फूट कर रोता है।

तत्पश्चात उसे भी अपनी चित्रस्थिरताको मन रूपी बादलों के बीच से स्रावित करना अति आवश्यक प्रतीत होता है।

गोधूली बेला - मेरे मन में भी सवालों के समागम से निकली तीक्ष्ण बाणों के समान घायल कर देने वाली बातें , दिल की धड़कन को लगातार बाधाओं में पिरो रहे थे।

मेरे ही शब्द मुझे चीर कर मेरी समाधि खोदने को तैयार थे अर्थात अब मन के अधीन मैं भी विवश होकर किसी सहयोग की अपेक्षा करने लगा।

अपेक्षित सहयोग ने मन की आकांक्षाओं को बल देकर आखिरकार एक सहयोग सुपुर्द किया।।

अब समय था बारिश की बूंदों के बीच एक मित्र के साथ कुछ खुशनुमा पलों की यादें ताज़ा करने को।

"ठहाके लगाते हुए उसने कहा तुम्हे हमेशा की तरह इस बार भी मुझसे हार का सामना करना पड़ेगा" , उत्तर देते हुए मैंने भी बादामी मुस्कान भरते हुए खेल को आगे बढ़ाने को कहा - " शतरंज की खेलो को समझना मेरे समझ से थोड़ा ऊपर था", खुशी इस बात की थी ' विपरीत छोर पर विराजमान इंसान भी मुझसे 02  कदम आगे ही था।।

चाय की चुस्कियों के बीच मैंने अपनी अहम चाल उसके समक्ष रखी ,

"वाह ! क्या बात" - हसते हुए उसने जवाबी चाल में मुझे फटकार मारी 

: स्तब्ध होकर मैं फिर एक बार गहरी सोच में डूब गया ; 

विनम्रता पूर्वक उसने कहा - मित्र !

             खेल को आगे बढ़ाओ....

मैंने भी बातों ही बातों में उसे अपनी समस्या की सारी वृतांत बताई।

खेल की अगली चाल और उसी समस्या से खुद को उबारने की कोशिश ने मुझे निजात दिलाई ।

उसने मुझे एक वक्तव्य का कटाक्ष देकर समझाया - 

" मन के हारें , हार है । मन के जीते जीत"।

मुझे शांत मन चित्त से काम लेना चाहिए ऐसा उसने समझाया ...

वास्तव में मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल चुके थे ; 

अथक प्रयास और प्रतिबद्ध होकर किसी भी कार्य प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है।

कोई भी खेल हो उससे हमें सीख ही मिलती है , कभी - कभी तो यही हमारा उपचार भी साबित होता है।

आनंद की लहर अंतर्मन को उजालों जगमग - जगमग कर दे ! 

बेशक शतरंज की खेल में उसने मुझे मात दे दी परन्तु उसके जितने की खुशी भी मेरी खुशी के आगे नतमस्तक हुई :" मुझे अनुभूति हुई"!

कब आना मुनासिब समझा जाए - जाते हुए उसने बतलाया ।


अब वो जा चुका था , मैं भी कई रातें हराम कर रखी थी ..."सोच में"।

आज की खेल का आनंद मैं सोने के बाद भी सपने में ले रहा था , बस फर्क यही था इस बार मैंने जीत हासिल की ।।।

अच्छा ! खेल का भी अपना एक महत्व है ...

" ज़िन्दगी जीने का जरिया होने से लेकर , ज़िन्दगी में होने का जरिया"!!!! 

 मैं अब बहुत ख़ुश हूं और जब भी समय मिलता है : खेलो के आनंद से वंचित नहीं रहता हूं।।।।

धन्यवाद्✍🏻✍🏻✍🏻

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~Akhilesh upadhyay 

@_just_akhi_

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Akhilesh Upadhyay

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