गणतंत्र

A poem on republic day

Originally published in hi
Reactions 0
333
Ajay goyal
Ajay goyal 26 Jan, 2022 | 1 min read



बेबस करते सपनों का, कभी अरमान नहीं रखना

गिरवी रख दे गौरव को, वह सम्मान नहीं रखना।

खुद के घर के खुद ही नौकर, ऐसी पहचान नहीं रखना

जीनी पड़े गुलामी की फिर से रातें

ऐसे 'चाँद' को अपना मेहमान नहीं रखना। 


कॉफी की चाहत में चाय चौपाटी की छोड़ न देना

वाशिंगटन के लालच में दिल्ली का दिल तोड़ नहीं देना। 

ले जाए राजपथ से तुमको भटकाकर

ऐसी राह पर अपने कदम मोड़ नहीं देना। 


स्वतंत्रता पायी पर स्वतंत्र पूरे से हुए नहीं 

मानस पर अभी भी पश्चिमी परछाई है। 

गणतन्त्र भी जनतन्त्र सा दिखता नहीं 

जेब पर भारी हर दिन मंहगाई है। 


देश के युवा उठ, आवाज़ अपनी बुलंद कर 

तुम कोई तोतले - हकले नहीं। 

प्रण कर कि भारत माँ फिर से कभी 

पश्चिमी हथकड़ियों में जकड़े नहीं।

0 likes

Published By

Ajay goyal

ajaygoyal

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.