खलील जिब्रान

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Abhishek Singh Tomar
Abhishek Singh Tomar 16 Sep, 2019 | 1 min read

प्रस्तावना-


संसार के श्रेष्ठ चिंतकों में शुमार खलील जिब्रान का जन्म माउंट लेबनान के बिशेरी (वर्तमान रिपब्लिक ऑफ लेबनान) नामक गाँव में 6 जनवरी, 1883 को हुआ। उनकी माँ का नाम कामिला रहामी था, जो एक पादरी की बेटी थीं। उनके पिता का नाम खलील था, जो स्थानीय सुल्तान के मुलाजिम थे। उनके जन्म के समय कामिला की उम्र 30 वर्ष थी। खलील जिब्रान उनके तीसरे पति की पहली संतान थे। उनके जन्म के बाद कामिला के दो कन्याएँ और उत्पन्न हुईं, सन् 1885 में मरियाना तथा सन् 1887 में सुलताना।

 

अमेरिका जाने का फैसला-

 

सन् 1891 में जिब्रान के पिता को एक गबन के मामले में उनकी सारी चल-अचल संपत्ति जब्त करके जेल में डाल दिया गया। इस वाकये से परिवार की जिंदगी में एकाएक तूफान आ गया। गाँव भर में बदनामी हुई सो अलग। आर्थिक बदहाली और भुखमरी से त्रस्त कामिला ने तब अपने पूर्व पति के बेटे बुतरस पीटर के पास अमेरिका जाने का फैसला किया। खलील जिब्रान का सौतेला भाई बुतरस पीटर उम्र में खलील से छह साल बड़ा था।

 

बोस्टन में कामिला सेल्सगर्ल का काम करके परिवार पालने लगी। बाद में मरियाना और सुलताना भी उसके काम में हाथ बँटाने लगीं, जिससे परिवार का खर्च ठीक-ठाक चलने लगा। जिब्रान को बचपन से ही चित्रकला से प्यार था। उन्हें कागज नहीं मिलता तो घर के बाहर बर्फ पर बैठकर घंटों चित्र बनाते रहते।

 

शिक्षा-

 

गरीबी के कारण उनकी स्कूली शिक्षा देरी से शुरू हुई। 12 वर्ष की उम्र तक जिब्रान स्कूल नहीं जा सके। बाद में उन्हें प्रवासी के लिए खुले बोस्टन के क्विंसी स्कूल में उन्हें प्रवेश मिल गया। यहीं जिब्रान ने चित्रों के माध्यम से अपनी अध्यापिका फ्लोरेंस पीअर्स का ध्यान आकृष्ट किया। सन् 1897 में जिब्रान अरबी भाषा की पढ़ाई के लिए लेबनान गए। लेबनान में रहकर वे पढ़ाई के साथ-साथ चित्रकला का अभ्यास भी करते रहे।


अरबी पुस्तक प्रकाशन का सिलसिला-

 

उनकी पहली पुस्तक सन् 1905 में प्रकाशित हुई, जो अरबी में थी—‘नुब्था-फि-फन अल-मुसिका’। वह संगीत पर केंद्रित थी। सन् 1906 में उनकी दूसरी अरबी पुस्तक आई—‘अराइस अल-मुरुज’ (अंग्रेजी अनुवाद ‘द निम्फ्स ऑफ द वैली’) जिसमें तीन कहानियाँ थीं। इनमें वेश्यावृत्ति, धार्मिक दबाव व अंधविश्वास तथा दिखावटी प्रेम को विषय बनाया गया था। जिब्रान की तीसरी अरबी पुस्तक ‘अल-अरवाः अल-मुत्मर्रिदाः’ (अंग्रेजी अनुवाद ‘स्प्रिट्स रिबेलिअस’) मार्च 1908 में आई। अरबी में प्रकाशित होनेवाली उनकी अन्य पुस्तकें हैं—अल-अजनिहा अल-मुतकस्सिरा (अंग्रेजी अनुवाद ‘ब्रोकन विंग्स’, 1912), अल-मवाकिब (अंग्रेजी अनुवाद ‘द प्रोसेशंस’, 1919), अल-अवासिफ (अंग्रेजी अनुवाद ‘द टेंपेस्ट्स’ अथवा ‘द स्टॉर्म’, 1920), इरम, धात अल-इमाद (1921, अंग्रेजी अनुवाद ‘इरम, द सिटी ऑफ लोफ्टी पिलर्स), अल-बदाइ वाल-तराइफ (अंग्रेजी अनुवाद मार्वल्स ऐंड मास्टरपीसेज अथवा ‘द न्यू ऐंड द मार्वेलस’, 1923)।

 

अंग्रेजी पुस्तकें-

 

अंग्रेजी में प्रकाशित उनकी पुस्तकें हैं—द मैडमैन (1918), ट्वेंटी ड्रॉइंग्स (1919), द फोररनर (1920), द प्रोफेफेट (1923), सैंड ऐंड फोम (1926), किंगडम ऑफ द इमेजिनेशन (1927), जीसस, द सन ऑव मैन (1928), द अर्थ गॉड्स (1931), द वांडरर (1932), गार्डन ऑव द प्रोफेट (1933) तथा लजारस ऐंड हिज बिलविड (नाटक, 1933)। पहली अंग्रेजी पुस्तक के प्रकाशन से ही जिब्रान की गिनती अमरीका के स्तरीय साहित्यकारों में होने लगी थी।

 

जीवन को छूती रचनाएँ-

 

खलील जिब्रान की रचनाएँ मुख्यतः दैनिक जीवन के संदेश जैसी हैं, इसलिए वे हमारे जीवन को छूती-सी महसूस होती हैं। खलील जिब्रान की कथाओं में दैनंदिन जीवन का कोई-न-कोई प्रसंग मौजूद होता है, जो पाठक को सीधा जोड़ लेता है। उनकी सूक्तियाँ सीधे मर्म पर चोट करती हैं। यथा—

 

काश! मैं एक कुआँ होता, सूखा और झुलसा हुआ और मनुष्य मेरे अंदर पत्थर फेंकते, क्योंकि यह अच्छा है व्यय हो जाना, अपितु जीवित जलकर उद्गम बनना, जबकि मनुष्य उसकी बगल से गुजरें और उसका पान न करें। उनका मानना है कि आदमी का आकलन उसके कर्म तय करते हैं।

 

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से भेंट-

 

खलील जिब्रान अनेक बार गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से मिले। जिब्रान का कथन है, ‘‘उनकी वाणी ने मेरे भीतर बेचैनी भर दी। वे ईश्वर की पूर्ण कृति हैं।’’ भारतीय दर्शन ने भी खलील को गहरे प्रभावित किया। इसकी छाप उनकी सूक्तियों, भावकथाओं और बोध-कथाओं पर साफ देखी जा सकती है।

 

स्वभाव से नम्र, मौनप्रिय, भावुक, अच्छे श्रोता, स्त्री अधिकारों के पक्षधर और सकारात्मक आध्यात्मिक मार्गदर्शक जिब्रान के लेखन व चित्रण में मुसलिम, सूफी, बहाई, हिंदू और बौद्ध आध्यात्मिक दर्शन के साथ-साथ ईसा मसीह, मुहम्मद, ब्लेक, नीत्जे, कीट्स, यीट्स, व्हिटमैन, इमर्सन और अनेक तत्कालीन चित्रकारों व चिंतकों के विचारों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।


देहावसान-

 

अत्यधिक मदिरापान की लत से लीवर खराब हो जाने के कारण 10 अप्रैल, 1931 को 48 वर्ष, 3 माह, 4 दिन की अल्पायु में न्यूयॉर्क स्थित सेंट विंसेंट्स अस्पताल में कवि, कथाकार, चित्रकार, मूर्तिकार, लेखक, दार्शनिक, धर्म-अध्येता जिब्रान का देहावसान हो गया। उन्होंने 16 पुस्तकों की रचना की, जिनका अनुवाद संसार की 30 से अधिक अनेक भाषाओं में हो चुका है।

 

जिब्रान के जीवन में अनेक महिलाएँ आईं, लेकिन उन्होंने शादी नहीं की। इसकी वजह भी बताई। एक बार कुछ महिलाएँ जिब्रान से मिलने आईं। उन्होंने उससे पूछा, ‘‘अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’ वे बोले, ‘‘देखो, यह कुछ यों है कि अगर मेरी पत्नी होती और मैं कोई कविता लिख रहा होता या पेंटिंग बना रहा होता, तो कई-कई दिनों तक मुझे उसके होने की याद तक न रहती। और आप तो जानती ही हैं कि कोई भी अच्छी महिला इस तरह के पति के साथ लंबे समय तक रहना नहीं चाहेगी।’’

 

बारबरा यंग उनके आखिरी दिनों में उनके साथ रहीं। जिब्रान के देहावसान के समय बारबरा अस्पताल में उनके निकट ही थीं। उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने उनकी अंतिम इच्छानुसार उनकी पेंटिंग्स और दूसरी चीजों को लेबनान में उनके गृह-नगर बिशेरी स्थित उनके घर भिजवा दिया।

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