✍️ बिना सोचे समझे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।

किसी भी काम को करने से पहले एक बार कम से कम एक बार गंभीरता से विचार जरूर करना चाहिए कि इस काम का क्या परिणाम निकल कर आएगा।

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Tejeshwar Pandey
Tejeshwar Pandey 07 Jan, 2021 | 1 min read
#writer #god #life #care #selflove #thinkagood

"बिना सोचे जो कारज करे 

फिर जग में वो मूरख कहलावत है"

किसी देश में एक दयालु, प्रजावत्सल और ‌प्रतापी राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों ओर हरियाली और खुशहाली थी, कहीं भी कोई भी दुखी ना था। परंतु राजा का मुख्य प्रधान बहुत दुष्ट,मक्कार और अहंकारी था। एक दिन राजा के दरबार में एक साधु आया और राजा से बोला- राजन मैं आपको ज्ञान की एक बात बताऊंगा, लेकिन बदले में दस हजार स्वर्ण मुद्राएं लूंगा।

साधु की बात सुनकर राज दरबार के सारे दरबारी हंसने लगे और राजा से बोले महाराज यह साधु आपको ठगने की कोशिश कर रहा है, इसकी बातों में मत आइएगा। परंतु राजा बड़े जिज्ञासु और ज्ञान के प्रेमी थे। उन्होंने उस साधु को दस हजार स्वर्ण मुद्राएं दे दी और बोले- महात्मन अब आप मुझे वह ज्ञान की बात बताइए। साधु ने कहा- राजन मेरी ये बात गांठ बांध लिजिए कि बिना परिणाम सोचे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। राजा को यह बात बहुत अच्छी लगी, उसने इस वाक्य को अपने शयनकक्ष की दिवार पर लिखवा दिया।

राज्य में सब कुशल मंगल था कुछ दिन बितने के बाद एक बार राजा बीमार पड़ गए। राजा को बीमार देखकर मुख्य प्रधान के मन में राजगद्दी हथियाने की लालसा जगी । मुख्य प्रधान ने राजवैद्य को बुलवाया और बोले की तुम अगर राजा को विष देकर मार दो तो मैं तुम्हें एक लाख स्वर्ण मुद्राएं दूंगा और राजा बनने पर तुम्हें मुख्य प्रधान का पद भी देदूंगा । मुख्य प्रधान की बात सुनकर राजवैद्य पहले तो ना नुकूर की, लेकिन बाद में वह भी लालच में आ गया और उसने मुख्य प्रधान की बात मान ली। 

राजवैद्य ने राजा के शयन कक्ष में जाकर दवा के बदले विष का घोल तैयार किया और राजा को पिलाने ही वाले थे कि उनकी नजर दीवार पर लिखे उस वाक्य पर चली गई। बिना परिणाम सोचे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। राजवैद्य ने सोचा कि अगर इस विष के प्रभाव से राजा की मृत्यु हो गई तो उसे उसके पुरे परिवार सहित फांसी पर लटका दिया जाएगा। फिर एक लाख स्वर्ण मुद्राएं किस काम आएगी। यह बात सोचते ही राजवैद्य घबरा गए । राजवैद्य के चेहरे पर घबराहट देखकर राजा के मन में कुछ संदेह हुआ। उन्होंने राजवैद्य से बैदेही गंभीर और कड़क आवाज़ में बोले की तुम जरूर मुझसे कुछ छुपा रहे हो, जल्दी बताओ वरना अभी कारागार में डलवा दूंगा। राजा की गंभीर और कड़क आवाज सुनकर राजवैद्य डर गए और उन्होंने सारी बात बता दी। राजा ने राजवैद्य को तो माफ कर दिया, लेकिन मुख्य प्रधान को उसी क्षण फांसी पर लटकवा दिया।

आजकल अक्सर देखा जा रहा है कि लोग छोटी-छोटी बातों के लिए आवेश लोभ या जज्बात में आकर लड़ाई-झगड़े, चोरी, बेईमानी हत्या या आत्महत्या जैसे छोटे-बड़े अपराध कर रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अस्पतालों और जेलों में आर्थिक, शारीरिक और मानसिक कष्ट भोगना पड़ रहा है। 

इस कहानी से हमें यहीं सीख मिलती हैं कि कभी भी किसी भी काम को करने से पहले हमें अच्छी तरह सोच समझ लेना चाहिए। अन्यथा बाद में हमें पछताना पड़ सकता है या हो सकता है कि पछताने का मौका ही ना मिले। अतः इस कहानी के माध्यम से हम आपसे यही कहना चाहते हैं कि किसी भी काम को करने से पहले एक बार कम से कम एक बार गंभीरता से विचार जरूर करना चाहिए कि इस काम का क्या परिणाम निकल कर आएगा।

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Tejeshwar Pandey

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    उम्दा रचना

  • Tejeshwar Pandey · 3 years ago last edited 3 years ago

    जी शुक्रिया Sandeep जी

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