उन गुलाबी रेखाओं को जब मैंने पहली बार देखा, क्या होता है मां बनने का एहसास, मैंने महसूस किया।
भर दिया उसे मेरी जिंदगी को खुशियों के पाक रंगो से,
बेटा हो या बेटी, बस हो स्वस्थ, यही दुआ थी रब से। गूंजी खिलकारी जल्दी, नन्हे कदमों का हुआ था आगम, बेटी हुई है कहा डॉक्टर ने, खिल गया मेरा तन और मन।
बिना पायल छनक सुनाने देने लगी, उसका रोना लगा चूड़ी की खनक जैसा,सुंदर मेरे चेहरे पर मुस्कान आने लगी।
उसकी आँखों में झाँका तो पाया मैंने खुद को, बिलकुल मेरा प्रतिभा है वो, तुम जहां से देखो।
मेरी बेटी नहीं, मेरा अभिमान, मेरी शान है वो, है वो शैतान, पर नादान भी है वो।
दर्पण में देख, संवरती निखरती है वो, इतलाती हुई जब चलती है, मेरे बचपन की याद करती है वो।
कोई कहे एक बच्चा करलो और, बेटा होता अच्छा है, बनेगा वो बुढापे की लाठी, बेटी तो पराया धन है।
मैं लगता हूं उनकी छोटी सोच को बड़ा सा पूर्णवीरम, मुझे नहीं चाहिए कोई लाठी, मेरी बेटी रोशन करेगा मेरा नाम।
इसे मैं पढ़ाऊंगी, शिक्षा और काबिल बनाऊंगी, इसके सपनों के पंखो के निचे बन हवा, इसे उंची उड़ान मैं भरने दूंगी .
बेटे वंश बढ़ाए अगर, उसी वंश का मान रख रही है बेटी,
दुनिया रूपी समंदर में बेटी नहीं आने देती कोई बैर दरमियान।
मेरी कमज़ोरी है, मेरी हिम्मत भी है मेरी बेटी, मुझे समाज है सबसे बेहतर यही, मेरी सांसों की डोरी।
मुझे नहीं है बेटे की लालसा, मेरी बेटी ही मेरी रौनक है, छहरियां न है छोरों से कम, ये बात में घना दम है। फूलन सी प्यारी, सितार सी उज्जवल होती है बेटीयां, अबतो बस, यही है मेरी प्यारी सी दुनिया।
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