पापा, मेरे पापा

Self composed poem on Father's day

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Shweta Gupta
Shweta Gupta 19 Jun, 2022 | 0 mins read

पापा, एक शब्द जो दिल में भावनाओं की सुनामी बहा देता है,

एक नम जो चेहरे पर ख़ुशी का नूर चमका देता है.

बेटियां तो पापा की पारी होती है, सच ही कहते हैं,

चाहे बचपन में डर लगता था इनसे, पर पापा ही हम सबके फेवरिट होते हैं.

ऑफिस से आते हुए हमारे लिए चॉकलेट लाना, मुझे आज भी याद है,

कैसे मुझ रूठी को मानते थे, उस जादू की झप्पी का स्वाद आज भी मेरे पास है.

ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया था, साइकिल से गिरते थे अगर, उठकर बढ़ना है कैसे उन्होंने समझाया था,

डाँट में छुपा था उनके ढेर सारा प्यार, एक दोस्त, हमदर्द, मैंने सबसे पहले पापा में ही पाया था.

माँ की ममता तो है ही असीम, पापा की थपकी भी है बराबर,

कंधे पर बैठकर देखि उनके दुनिआ, सही गलत की परख सीखी उनके अनुभव सुनकर.

माँ का आँचल देता था गर्माहट तो पापा का पेट बनजाता था बिछउना,

घिरे रहते थे जिम्मेदारिओं से, पर कहते थे बस उम्मीद का साथ कभी ना छोड़ना.

माँ होती थी कभी बीमार, तो रोटी बनाकर हाथ से खिलते थे,

बिना झपकी लिए, हमारा ध्यान दिन रात वो रखते थे.

मेरी विदाई के वक़्त पापा रोये थे मुझसे गले लगकर, पहली बार था मैंने उन्हें टूटते देखा,

छूटा मेरा बाबुल का अंगना, पर ये रिश्ता ही है ऐसा जो साथ हैं वो मेरे हमेशा.

होगये रिटायर पर अब अपनी नातिन के साथ बच्चे बनकर पूरे दिन की ड्यूटी करते हैं,

दिखती है फिर वही झलक एक बार, जो मेरे बचपन की यादें ताज़ा करदेती हैं.

कभी उन पीली पड़ी तस्वीरों को एल्बम में देखती हूँ तो पलक झपकते ज़िन्दगी के सबसे सुनहरे पलों में खो जाती हूँ

,लौट आते काश वो दिन, भगवन से यही मांगने लगती हूँ .






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