मधुरिमा

अनुप्रास से अलंकृत करने की कोशिश में लिखी गई कविता।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 12 Feb, 2021 | 1 min read
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मृगनयनी सुकुमारी श्याम वर्णधारी, 
मधुरभाषणी बालिका मधुरिमा सबकी दुलारी।
मगरूर रह, आईने को एकटक निहार, 
मन मयूर को अल्हड़पन से भिगाती नचाती वह सुकुमारी।
मरीचि रवि की उसके अंगों पर बिखरती , 
मूँगा बन किरणें जग में फैल जाती। 
मनोहर चाँद आसमान छोड़ने की जिद करता, 
मंजूषा खोल होठों की मुस्कराती अनेक चाँद चेहरे पर टाँकती। 
मेघ घुमड़ घुमड़कर बरसने की जिद पर आता, 
मधु बातों का जब उसके मुख से झरता। 
मग भटक राही, फेरे उसके घर के करता, 
मंसूख कर सब कार्यक्रम, मधुरिमा की माला जपता। 
मंजुल सूरत निहार, आँखें बंद कर तृप्त हो लेता, 
मुनि जैसे तप कर, प्रेम साधना में लीन हो जाता।। 


स्वरचित © चारु चौहान



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